NCP में उलटफेर से स्पष्ट संकेत; लोकसभा हो या विधानसभा अब सुप्रिया ही बांटेगी टिकट, अजित सिर्फ नेता प्रतिपक्ष
अजित के हाथ में टिकट बांटने की शक्ति नहीं रहेगी तो पार्टी कैडर में उनका महत्त्व भी धीरे-धीरे जाता रहेगा। राकांपा में अब तक कोई भी प्रदेश अध्यक्ष रहा हो लेकिन प्रदेश के महत्वपूर्ण मामलों में अंतिम निर्णय अजित पवार का ही रहता आया है।

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई: सुप्रिया सुले और प्रफुल पटेल को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उन्हें बधाई देते हुए अजित पवार ने कहा है कि वह राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। उन्हें हमेशा से राज्य की राजनीति में रुचि रही है। मैं इसी में खुश हूं। लेकिन, सुप्रिया सुले को मिली नई जिम्मेदारियों के बाद अजित पवार के हाथ में ये जिम्मेदारियां कितने दिन रहेंगी कहा नहीं जा सकता।
सुप्रिया की मर्जी से मिलेंगे टिकट
शरद पवार ने ऐसा करके पार्टी के कैडर को भी संकेत दे दिया है कि अब चुनाव में टिकट सुप्रिया सुले की मर्जी से मिलेंगे, न कि अजित पवार की मर्जी से। जबकि अब तक ऐसा नहीं था। लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, कुछ बड़े नामों पर फैसले को छोड़ दिया जाए तो बाकी टिकट बंटवारा अजित पवार के हाथ में ही था। यही कारण था कि जब 2019 में अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस के साथ उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो माना जा रहा था कि अजित के बांटे टिकट से विधायक बनने वाले नेता उन्हीं के साथ जाना पसंद करेंगे। उस समय पवार को बगावत थामने में खासी मशक्कत करनी पड़ी थी। ये स्थिति दोबारा न आए, इसके लिए ही सुप्रिया सुले को सेंट्रल इलेक्शन अथारिटी का अध्यक्ष बनाया गया है। अब टिकट बंटवारे पर अंतिम मुहर सुप्रिया की लगेगी। इसलिए, पार्टी विधायक दल में अजित पवार के वर्चस्व का सवाल ही पैदा नहीं होगा।
पार्टी ने अजित के कद पर सवाल?
जब अजित के हाथ में टिकट बांटने की शक्ति नहीं रहेगी तो पार्टी कैडर में उनका महत्त्व भी धीरे-धीरे जाता रहेगा। राकांपा में अब तक कोई भी प्रदेश अध्यक्ष रहा हो, लेकिन प्रदेश के महत्वपूर्ण मामलों में अंतिम निर्णय अजित पवार का ही रहता आया है, क्योंकि शरद पवार ने अपने परिवार में उन्हें ही अपने बाद और अपने विकल्प के रूप में हमेशा आगे बढ़ाया।
1991 में जब शरद पवार को नरसिंहराव की सरकार में मंत्री बनने के लिए केंद्र की राजनीति में जाना पड़ा तो अपनी बारामती की विधानसभा सीट वह अजित पवार को ही सौंपकर गए थे। फिर जब उनकी राज्य की राजनीति में वापसी हुई तो उन्होंने बारामती लोकसभा सीट पर भतीजे अजित पवार को चुनवाकर संसदीय सीट भी परिवार के पास ही रखी। उस समय तक सुप्रिया सुले का राजनीति में प्रवेश भी नहीं हुआ था। बाद में सीनियर पवार खुद को पूरी तरह से राष्ट्रीय राजनीति का 'मैटीरियल' समझने लगे।
अजित पवार के हाथ से फिसलती पावर!
2001 में मनाए गए अपने भव्य जन्मदिन समारोह में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की उपस्थिति में स्वयं प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जताई, तभी से तय हो गया था कि राज्य की राजनीति उन्होंने भतीजे अजित पवार को सौंप दी है। तब से अजित पवार चार बार उप मुख्यमंत्री बन भी चुके हैं। लेकिन शनिवार को जब शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के साथ ही सेंट्रल इलेक्शन अथारिटी का अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिया तो यह साफ हो गया कि अब राज्य भी अजित पवार के हाथ में नहीं रहेगा।
मैं भाई-भतीजावाद की राजनीति से दूर नहीं जा सकती
सुप्रियाएक दिन पहले ही राकांपा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाई गई सुप्रिया सुले ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा है कि वह वंशवाद या भाई-भतीजावाद की राजनीति से भाग नहीं सकतीं, क्योंकि वह एक राजनीतिक परिवार में पैदा हुई हैं। सुप्रिया कहती हैं कि मुझे शरद पवार एवं प्रतिभा पवार की बेटी होने पर गर्व है। मैं इससे क्यों भागूं। सुप्रिया ने यह सवाल भी उठाया कि वंशवाद की राजनीति पर बात करते समय संसद में मेरे प्रदर्शन पर बात क्यों नहीं की जाती। संसद में मेरे प्रदर्शन को देखें। अब संसद मेरे पिता, चाचा या मेरी माता द्वारा तो चलाई नहीं जाती।
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