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    क्या भुजबल बदलेंगे अपना पाला, शरद पवार से मुलाकात के बाद राजनीतिक हलचल तेज

    Updated: Sat, 04 Jan 2025 05:30 AM (IST)

    उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की पार्टी राकांपा के वरिष्ठतम सदस्यों में से एक छगन भुजबल को इस बार मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिल सका है। वह इससे नाराज चल रहे ...और पढ़ें

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    छगन भुजबल शरद पवार के साथ मंच साझा करते दिखाई दिए (फोटो- एक्स)

     ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र में भारी बहुमत से भाजपानीत महायुति सरकार बनने के बाद वैसे तो राजनीतिक स्थिरता पर कोई शक नहीं किया जा सकता। लेकिन विभिन्न दलों में आंतरिक असंतोष कुछ नए गुल कभी भी खिला सकता है। इन्हीं में एक है राकांपा नेता छगन भुजबल के मन में पल रहा असंतोष।

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    खुलकर नाराजगी व्यक्त की थी

    उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की पार्टी राकांपा के वरिष्ठतम सदस्यों में से एक छगन भुजबल को इस बार मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिल सका है। वह इससे नाराज चल रहे हैं। अजीत पवार के प्रति वह अपनी नाराजगी खुलकर व्यक्त भी कर चुके हैं। तभी से यह आशंका भी जताई जा रही है कि वह राकांपा छोड़कर सत्तारूढ़ गठबंधन के ही दूसरे दल भाजपा में जा सकते हैं।

    शरद पवार के साथ मंच साझा करते दिखाई दिए भुजबल

    इन्हीं अफवाहों के बीच शुक्रवार को छगन भुजबल पहले पुणे के निकट चाकण में राकांपा (शरदचंद्र पवार) के अध्यक्ष शरद पवार के साथ मंच साझा करते दिखाई दिए। इसके कुछ देर बाद वह मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ उन्हीं के वाहन में यात्रा करते दिखाई दिए और सातारा जिले में आयोजित एक कार्यक्रम के मंच पर उनके साथ भी उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में दोनों नेता ने एक-दूसरे की तारीफ में कसीदे पढ़ते भी दिखाई दिए।

    दरअसल शरद पवार के साथ भुजबल का मंच साझा करना एक संयोग कहा जा सकता है। क्योंकि चाकण में आज महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की जयंती के अवसर पर सावित्रीबाई फुले एवं महात्मा फुले की प्रतिमाओं के अनावरण कार्यक्रम में दोनों नेताओं को एक साथ बुलाया गया था। वहां इन दोनों नेताओं के बीच बातचीत भी हुई। वास्तव में छगन भुजबल भी उसी माली समाज से आते हैं, जिससे महात्मा फुले एवं सावित्रीबाई फुले आते थे।

    ओबीसी की राजनीति में भुजबल बड़ा नाम

    भुजबल महात्मा फुले समता परिषद नामक एक सामाजिक संगठन भी चलाते हैं, जिसका बड़ा जनाधार महाराष्ट्र के अलावा कई और राज्यों में भी है। इस संगठन के जरिए वह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को संगठित करने का काम करते रहते हैं। ओबीसी की राजनीति में भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे गोपीनाथ मुंडे भी भुजबल को अपना नेता मानते थे।

    हाल के विधानसभा चुनाव से पहले जहां एक ओर मनोज जरांगे पाटिल मराठों को ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण दिलवाने के लिए आंदोलन कर रहे थे, वहीं भुजबल ने ओबीसी आरक्षण में एक प्रतिशत की भी कटौती न होने देने के लिए कमर कस रखी थी। माना जा रहा है कि चुनाव में मराठा बनाम ओबीसी ध्रुवीकरण करवाने में बड़ी भूमिका छगन भुजबल की रही है, और उसका लाभ भी अब सत्तारूढ़ गठबंधन महायुति को मिला है।

    भुजबल की नाराजगी के कई कारण

    छगन भुजबल के अपनी ही पार्टी के नेता अजीत पवार से नाराजगी के कई कारण हैं। पहला कारण है लोकसभा चुनाव में नासिक की सीट को एकनाथ शिंदे की शिवसेना के लिए छोड़ देना। जबकि भुजबल ने इस सीट से लड़ने की पूरी तैयारी कर ली थी। दूसरा कारण है अजीत पवार का उनके बजाय लोकसभा चुनाव हार चुकी अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को राज्यसभा में भेजना।

    फिर विधानसभा चुनाव में उनके भतीजे समीर भुजबल को पार्टी का टिकट न दिया जाना। और अब नासिक की अपनी परंपरागत येवला सीट से जीतकर आने के बाद स्वयं भुजबल को मंत्रिमंडल में स्थान न देना। इन सभी कारणों से नाराज भुजबल के मन में क्या चल रहा है, संभवतः यह अगले कुछ दिनों में स्पष्ट होगा।

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