Loan Fraud Case: चंदा कोचर और उनके पति को मिली अंतरिम जमानत, कोर्ट से CBI को मिली फटकार
कोचर दंपत्ति को अंतरिम जमानत देते हुए अपने विस्तृत आदेश में उच्चन्यायालय की खंडपीठ ने सीबीआई को तगड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि हमारे संविधान में किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।

राज्य ब्यूरो, मुंबई। मुंबई उच्च न्यायालय ने आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर एवं उनके पति दीपक कोचर ऋण धोखाधड़ी मामले में अंतरिम जमानत दे दी है। साथ ही उनकी गिरफ्तारी के तौर-तरीकों पर सीबीआई को फटकार भी लगाई है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे एवं न्यायमूर्ति पी.के.चह्वाण की खंडपीठ ने कोचर दंपत्ति को अंतरिम जमानत देते हुए अपने 49 पृष्ठों के फैसले में कहा कि उनकी गिरफ्तारी कानून के प्रावधानों के अनुरूप नहीं थी। इस मामले में गिरफ्तारी का आधार सिर्फ जांच में असहयोग एवं पूरी तरह सही जानकारी नहीं देना बताया गया है। जबकि किसी मामले में गिरफ्तारी का अधिकार तभी है, जब किसी जांच अधिकारी के पास यह मानने का पर्याप्त कारण हो, कि गिरफ्तारी आवश्यक है, और व्यक्ति ने अपराध किया है।
उच्चन्यायालय ने सुनवाई के लिए छह फरवरी की तारीख तय की
अदालत ने कहा कि तथ्यों के अनुसार याचिकाकर्ताओं (कोचर दंपत्ति) की गिरफ्तारी कानून के प्रावधानों के तहत नहीं की गई। गिरफ्तारी करते समय धारा 41(ए) का पालन नहीं किया गया। इसलिए वे रिहाई के हकदार हैं। खंडपीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि याचिकाकर्ताओं को याचिकाओं पर सुनवाई लंबित रहने और अंतिम निस्तारण होने तक जमानत पर रहने का अधिकार है। इसके साथ ही उच्चन्यायालय ने सुनवाई के लिए छह फरवरी की तारीख तय की है। बता दें कि कोचर दंपत्ति को सीबीआई ने 23 दिसंबर, 2022 को गिरफ्तार किया था। दोनों ने अपनी गिरफ्तारी को गैरकानूनी और मनमाना बताते हुए उच्चन्यायालय में चुनौती दी थी, और अपनी अंतरिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी।
कोचर दंपत्ति को अंतरिम जमानत देते हुए अपने विस्तृत आदेश में उच्चन्यायालय की खंडपीठ ने सीबीआई को तगड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि हमारे संविधान में किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। वैयक्तिक स्वतंत्रता का संरक्षण करने एवं जांचकर्ताओं का उपयोग उत्पीड़न के साधन के तौर पर नहीं होने देने में अदालतों की भूमिका बार-बार दोहराई गई है।
करीब चार साल तक याचिकाकर्ताओं को नहीं किया गया सम्मन जारी
सीबीआई द्वारा दिसंबर 2017 में केस दर्ज किए जाने के बाद कोचर दंपत्ति न सिर्फ उसके सामने पेश हुए हैं, बल्कि उन्होंने सभी दस्तावेज और विवरण भी जमा किए हैं। 2019 से जून 2022 तक, करीब चार साल तक याचिकाकर्ताओं को न तो कोई सम्मन जारी किया गया, न ही प्रतिवादी संख्या एक, यानी सीबीआई ने उनसे कोई संपर्क स्थापित किया। गिरफ्तारी मेमो में यह भी नहीं बताया गया कि गिरफ्तारी करने की वजह क्या थी ?
लेनदेन के आधार पर ही सीबीआई ने चंदा कोचर लगाया आरोप
बता दें कि अगस्त 2009 में आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकान समूह के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत की कंपनी को 300 करोड़ रुपए का ऋण दिया था। यह ऋण पास करनेवाली समिति में खुद चंदा कोचर भी शामिल थीं। ऋण हाथ में आने के अगले ही दिन धूत ने उसी कंपनी से 64 करोड़ रुपए चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कंपनी में निवेश कर दिए थे। इस लेनदेन के आधार पर ही सीबीआई ने चंदा कोचर पर पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया है।
इसके अलावा चंदा कोचर के आईसीआईसीआई बैंक में महत्त्वपूर्ण पद पर रहने के दौरान ही बैंक से वीडियोकान समूह को 2009 से 2011 के बीच 1,875 करोड़ रुपयों के ऋण दिए गए, जोकि आईसीआईसीआई बैंक की नीतियों के विरुद्ध था। 2012 में ये सारा ऋण एनपीए (नान परफार्मिंग असेट) घोषित हो गया। जिसके कारण बैंक को 1,730 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा था।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।