नोटबंदी को लेकर दायर याचिका को बांबे हाई कोर्ट ने किया खारिज, कहा- RBI के फैसलों में दखल देने से बचें अदालतें
बांबे हाई कोर्ट ने आरबीआइ के अधिकारियों पर गड़बड़ियों का आरोप लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस ए एस गडकरी और जस्टिस शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने आठ सितंबर को मनोरंजन राय की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के दौरान आरबीआइ के कुछ अधिकारियों द्वारा की गई गड़बडि़यों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी।

मुंबई, पीटीआई। बांबे हाई कोर्ट ने मंगलवार को 2016 की विमुद्रीकरण (नोटबंदी) नीति के दौरान आरबीआइ के अधिकारियों पर गड़बड़ियों का आरोप लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि अदालतों को आरबीआइ के मौद्रिक नियामकीय ढांचे में दखल देने से बचना चाहिए।
आरबीआइ का काम एक वैधानिक कार्य: कोर्ट
जस्टिस ए एस गडकरी और जस्टिस शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने आठ सितंबर को मनोरंजन राय की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने 500 और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने के दौरान आरबीआइ के कुछ अधिकारियों द्वारा की गई गड़बडि़यों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी।
आदेश में कहा गया है कि यह याचिका और कुछ नहीं बल्कि आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर याचिकाकर्ता ने माना है कि यह एक घोटाला है। हाई कोर्ट ने कहा कि वैध निविदा जारी करने में आरबीआइ का काम एक वैधानिक कार्य है, जिसे विशेषज्ञ समितियों का समर्थन प्राप्त है। इसे कमजोर आधार पर सवालों के घेरे में नहीं लाया जा सकता है।
मौद्रिक नियामक ढांचे में दखल देने से बचे अदालत: बांबे हाई कोर्ट
पीठ ने कहा, 2016 में जारी विमुद्रीकरण की अधिसूचना नीतिगत फैसला था। कोर्ट ने कहा कि यह सही है कि एक धारणा है कि जो नीतिगत फैसला लिया गया था वह वास्तविक है और जनता के हित में है जब तक कि अन्यथा न पाया जाए।
पीठ ने कहा कि इस बात पर विवाद नहीं किया जा सकता है कि आरबीआइ हमारे देश की अर्थव्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और अदालतों को मौद्रिक नियामक ढांचे में दखल देने से बचना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा कि उसकी राय में जांच या जांच की मांग करने का कोई आधार नहीं है।
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