'अदाणी समूह को धारावी प्रोजेक्ट देने में की गई गड़बड़ी', याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
Dharavi Redevelopment Project धारावी पुनर्विकास परियोजना की टेंडर प्रक्रिया में अदाणी समूह को लाभ पहुंचाया गया यह आरोप लगाया गया था यूएई की एक कंपनी द्वारा जिसने पिछले टेंडर में प्रोजेक्ट के लिए सबसे अधिक बोली लगाई थी। कंपनी ने इसे लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिस पर कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाया। पढ़ें क्या है पूरा मामला।

पीटीआई, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई में धारावी पुनर्विकास परियोजना के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा अदाणी समूह को टेंडर दिए जाने के फैसले को बरकरार रखा। हाई कोर्ट ने कहा कि इस फैसले में कोई भी अनुचितता या गड़बड़ी नहीं थी।
मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने यूएई स्थित सेकलिंक टेक्नोलॉजीज कॉरपोरेशन द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार द्वारा परियोजना को अदाणी प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड को देने के फैसले को चुनौती दी गई थी।
2018 में मंगाए गए थे टेंडर
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सेकलिंक टेक्नोलॉजीज 2018 में इस परियोजना के लिए सबसे अधिक बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में उभरी थी, लेकिन उस वर्ष जारी किए गए टेंडर को बाद में सरकार ने रद्द कर दिया था। पीठ ने कहा कि कंपनी की याचिका में दम नहीं है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है।
हाईकोर्ट ने कहा, 'याचिका के समर्थन में दिए गए आधारों में दम नहीं है और इसलिए अधिकारियों की ओर से की गई कार्रवाई को चुनौती, जिसके तहत पहले की निविदा प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया था और नई निविदा प्रक्रिया का सहारा लिया गया था, विफल हो जाती है।' गौरतलब है कि अडानी समूह मुंबई के मध्य में 259 हेक्टेयर की धारावी पुनर्विकास परियोजना के लिए सबसे अधिक बोली लगाने वाले फर्म के रूप में उभरा था और 2022 की निविदा प्रक्रिया में 5,069 करोड़ रुपये की बोली के साथ इसे हासिल किया था।
कोर्ट ने कहा- नहीं हुआ था समझौता
वहीं, 2018 में जारी पहले टेंडर में याचिकाकर्ता कंपनी 7,200 करोड़ रुपये के साथ सबसे अधिक बोली लगाने वाली कंपनी थी। हालांकि, सरकार ने 2018 के टेंडर को रद्द कर दिया था और अतिरिक्त शर्तों के साथ 2022 में एक नया टेंडर जारी किया था। सेकलिंक टेक्नोलॉजीज ने सबसे पहले 2018 की टेंडर को रद्द करने और उसके बाद अदाणी समूह को 2022 का टेंडर देने को चुनौती दी थी।
कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि याचिकाकर्ता कंपनी 2018 की टेंडर प्रक्रिया में सर्वाधिक बोली लगाने वाली कंपनी थी, इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया। न्यायालय ने कहा, 'याचिकाकर्ता की बोली को उच्चतम घोषित किया गया था, फिर भी टेंडर दिए जाने पर कोई निर्णय नहीं लिया गया न ही कोई अवॉर्ड जारी किया गया था और न ही किसी समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।'
कोर्ट ने खारिज की टेंडर में गड़बड़ी की दलील
न्यायालय ने आगे कहा कि यह एक सुस्थापित सिद्धांत है कि निविदा प्रक्रिया में भाग लेने वाला बोलीदाता इस बात पर जोर नहीं दे सकता कि उसकी निविदा केवल सबसे अधिक या सबसे कम होने के कारण स्वीकार की जाए। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा 2018 की निविदा प्रक्रिया को रद्द करने के लिए दिए गए कारणों को उसकी राय में अस्तित्वहीन या अनुचित या किसी विकृति पर आधारित नहीं कहा जा सकता।
अदालत ने याचिकाकर्ता की इस दलील को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि 2022 की टेंडर की शर्तें एक विशेष कंपनी के अनुरूप बनाई गई थीं और उस समय तीन बोलीदाताओं ने भाग लिया था, जिनमें से दो तकनीकी रूप से योग्य पाए गए थे। वहीं, राज्य सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि निविदा पारदर्शी तरीके से दी गई थी और सबसे अधिक बोली लगाने वाले अदाणी समूह को कोई अनुचित लाभ नहीं दिया गया था।
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