'छोटी-छोटी बातों से हिंदुओं में पवित्र माने जाने वाला विवाह भी खतरे में', बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी?
बॉम्बे हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि वैवाहिक कलह समाज में एक समस्या बन गई है। पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातें जीवन बर्बाद कर देती हैं। कोर्ट ने कहा कि विवाह केवल सामाजिक अनुबंध नहीं बल्कि आध्यात्मिक मिलन है। वैवाहिक संबंधों को बेहतर बनाने के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है।

पीटीआई, मुंबई। दहेज उत्पीड़न के एक मामले को रद करने की मांग संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को टिप्पणी की कि ''विभिन्न कारणों से आजकल वैवाहिक कलह समाज में एक समस्या बन गई है। पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातें उनकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर देती हैं और हिंदुओं में पवित्र माने जाने वाला विवाह भी खतरे में पड़ जाता है।''
कोर्ट ने आगे कहा कि विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक मिलन है जो दो आत्माओं को एक साथ जोड़ता है। वैवाहिक संबंधों को बेहतर बनाने के इरादे से कई कानून बनाए गए, लेकिन लोग अक्सर उनका दुरुपयोग करते हैं। इसके परिणामस्वरूप परिवार के सदस्यों और बच्चों को मानसिक एवं शारीरिक उत्पीड़न, अंतहीन संघर्ष, वित्तीय नुकसान तथा अपूरणीय क्षति होती है।
कोर्ट ने खारिज की याचिका
कोर्ट ने एक व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करते हुए कहा कि हिंदुओं द्वारा पवित्र माने जाने वाले विवाह दंपती के बीच मामूली मुद्दों के कारण अब खतरे में हैं।
जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस एमएम नेर्लिकर की नागपुर पीठ ने आठ जुलाई के एक आदेश में कहा था कि वैवाहिक विवादों में यदि पुनर्मिलन संभव नहीं है तो इसे तुरंत समाप्त कर दिया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संबंधित पक्षों का जीवन बर्बाद न हो।
जानिए क्या था पूरा मामला
पीठ एक व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिसंबर, 2023 में उसकी अलग रह रही पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को रद करने की मांग की गई थी। अलग रह रहे दंपती ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने अपने विवाद को सुलझा लिया है और आपसी सहमति से उन्हें तलाक मिल गया है।
महिला ने कोर्ट के समक्ष क्या कहा?
महिला ने कोर्ट को बताया कि अगर मामला रद कर दिया जाता है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती है। कोर्ट ने मामला रद करते हुए कहा कि हालांकि भारतीय दंड संहिता और दहेज निषेध अधिनियम के दहेज उत्पीड़न और अप्राकृतिक यौन संबंध से संबंधित प्रावधान समझौता-योग्य नहीं हैं, फिर भी न्याय की रक्षा के लिए अदालतें कार्यवाही रद कर सकती हैं।
कोर्ट ने कहा कि पति पक्ष की ओर से कई लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करने की हालिया प्रवृत्ति को देखते हुए वैवाहिक विवादों को एक अलग दृष्टिकोण से देखना अनिवार्य हो गया है। इसने कहा कि यदि पक्षकार अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहते हैं और शांतिपूर्वक रहना चाहते हैं तो कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह उन्हें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करे।
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