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    Anna Hazare: महाराष्ट्र सरकार की शराब नीति के खिलाफ अनशन पर नहीं बैठेंगे अन्ना हजारे

    By Sachin Kumar MishraEdited By:
    Updated: Sun, 13 Feb 2022 04:43 PM (IST)

    Anna Hazare सुपरमार्केट और किराना दुकानों में शराब की बिक्री की अनुमति देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने 14 फरवरी से प्रस्तावित अपनी भूख हड़ताल को स्थगित करने का फैसला किया है।

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    महाराष्ट्र सरकार की शराब नीति के खिलाफ अनशन पर नहीं बैठेंगे अन्ना हजारे। फाइल फोटो

    पुणे, प्रेट्र। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने सुपरमार्केट और किराना दुकानों में शराब की बिक्री की अनुमति देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले के खिलाफ 14 फरवरी से प्रस्तावित अपनी भूख हड़ताल को स्थगित करने का फैसला किया है। अहमदनगर जिले के हजारे के पैतृक गांव रालेगण सिद्धि में रविवार को ग्राम सभा का आयोजन किया गया। यहां अन्ना ने कहा कि मैंने ग्रामीणों से कहा कि अब राज्य सरकार ने कैबिनेट के फैसले को नागरिकों के सामने उनके सुझावों और आपत्तियों के लिए रखने का फैसला किया है और उनकी मंजूरी के बाद ही सरकार द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाएगा। इसलिए मैंने सोमवार की भूख को स्थगित करने का फैसला किया है। कुछ दिन पहले हजारे ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर कहा था कि राज्य के लोगों ने मांग की है कि सुपरमार्केट और वाक-इन दुकानों पर शराब की बिक्री की अनुमति देने वाली नीति को तुरंत वापस लिया जाए।

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    सुपरमार्केट में शराब की बिक्री हमारी संस्कृति को नष्ट कर देगीः अन्ना

    रविवार को अपने गांव में हुई बैठक के दौरान हजारे ने कहा कि शराब बेचने के लिए बीयर बार, परमिट रूम और दुकानें बहुत हैं, फिर सरकार इसे सुपरमार्केट और किराना स्टोर में क्यों बेचना चाहती है? अन्ना ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार के अधिकारियों के साथ चर्चा के दौरान मैंने उनसे कहा था कि मेरा राज्य में रहने का मन नहीं है, जिसके बाद सरकार ने अपने फैसले पर फिर से विचार करना शुरू कर दिया। हजारे ने कहा कि शराब महाराष्ट्र की संस्कृति नहीं है, यहां छत्रपति शिवाजी और संत तुकाराम कभी रहते थे। सुपरमार्केट में शराब की बिक्री हमारी संस्कृति को नष्ट कर देगी। हजारे ने कहा कि जब राज्य सरकार के अधिकारी उनसे मिलने आए तो उन्होंने उनसे कहा कि उन्हें शराब नीति पर निर्णय लेने से पहले लोगों के विचारों को ध्यान में रखना चाहिए था। यहां लोकतंत्र है, तानाशाही नहीं। इसलिए, नागरिकों से सुझाव और आपत्तियां आमंत्रित करने के बाद ही निर्णय लिया जाना चाहिए, और लोगों को अपने विचार रखने के लिए तीन महीने का समय दिया जाना चाहिए।