'महिला की ना का मतलब ना होता है', बॉम्बे HC ने दुष्कर्म के मामले में तीन व्यक्तियों को सजा को रखा बरकरार
बॉम्बे HC ने दुष्कर्म को समाज में नैतिक और शारीरिक रूप से सबसे निंदनीय अपराध बताते हुए कहा कि अगर कोई महिला नहीं कहती है तो उसका मतलब नहीं होता है। किसी महिला की तथाकथित अनैतिक गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। अदालत ने इस टिप्पणी के साथ तीनों व्यक्तियों की दोषसिद्धि को रद करने से इनकार कर दिया।

पीटीआई, मुंबई। मुंबई उच्चन्यायालय ने अपनी एक साथी के साथ दुष्कर्म के मामले में तीन व्यक्तियों को मिली सजा को बरकरार रखते हुए कहा है कि जब कोई महिला ‘ना’ कहती है, तो इसका मतलब ‘ना’ होता है। उसकी पिछली गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। लेकिन उच्चन्यायालय ने इस मामले में दोषियों को निचली अदालत से मिली आजीवन कारावास की सजा को कम करके 20 वर्ष कर दिया है।
न्यायमूर्ति नितिन सूर्यवंशी और न्यायमूर्ति एम.डब्ल्यू. चंदवानी की पीठ ने छह मई के अपने फैसले में कहा कि ‘नहीं का मतलब नहीं है’। पीठ ने दोषियों द्वारा पीड़िता की नैतिकता पर सवाल उठाने के प्रयास को स्वीकार नहीं किया। अदालत ने कहा कि महिला की सहमति के बिना किया गया यौन संबंध उसके शरीर, मन और निजता पर हमला है।
कोर्ट ने तीनों व्यक्तियों की दोषसिद्धि को रद्द करने से इनकार कर दिया
अदालत ने दुष्कर्म को समाज में नैतिक और शारीरिक रूप से सबसे निंदनीय अपराध बताते हुए कहा कि अगर कोई महिला 'नहीं' कहती है तो उसका मतलब 'नहीं' होता है। इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है और किसी महिला की तथाकथित अनैतिक गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। अदालत ने इस टिप्पणी के साथ तीनों व्यक्तियों की दोषसिद्धि को रद्द करने से इनकार कर दिया। लेकिन उनकी सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 20 वर्ष कर दिया है।
अपनी अपील में तीनों दोषियों ने दावा किया था कि महिला शुरू में उनमें से एक के साथ संबंध में थी, लेकिन बाद में वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगी। नवंबर 2014 में तीनों ने पीड़िता के घर में घुसकर उसे जबरन पास के एक सुनसान स्थान पर ले गए, जहां उन्होंने उसके साथ दुष्कर्म किया। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि भले ही एक महिला अलग हो गई हो और अपने पति से तलाक लिए बिना किसी अन्य व्यक्ति के साथ रह रही हो, तो भी कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे अपने साथ संभोग करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। अगर पीड़िता उसके और अन्य आरोपियों के साथ संभोग करने को तैयार नहीं है तो उसकी सहमति के बिना कोई भी यौन कृत्य बलात्कार माना जाएगा।
अदालत ने कहा कि एक महिला जो किसी विशेष अवसर पर किसी पुरुष के साथ यौन क्रियाकलापों के लिए सहमति देती है, वह उसी पुरुष के साथ अन्य सभी अवसरों पर यौन क्रियाकलापों के लिए सहमति नहीं देती है। उच्चन्यायालय ने कहा कि दुष्कर्म को सिर्फ़ यौन अपराध नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे आक्रामकता से जुड़े अपराध के तौर पर देखा जाना चाहिए। यह उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है। दुष्कर्म समाज में सबसे नैतिक और शारीरिक रूप से निंदनीय अपराध है, क्योंकि यह पीड़ित के शरीर, दिमाग और निजता पर हमला है। अदालत ने पीड़िता के लिव-इन पार्टनर पर हमला करने के लिए भी तीनों की सजा को बरकरार रखा।
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