टाइपिंग की गलती से एक साल जेल में रहा नवविवाहित बेगुनाह, एमपी हाईकोर्ट ने कलेक्टर पर लगाया दो लाख रुपये जुर्माना
मध्य प्रदेश के शहडोल में एक टाइपिंग की गलती के कारण 26 वर्षीय सुशांत बैस को एक साल से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत निरोध आदेश में असली आरोपी की जगह सुशांत का नाम दर्ज हो गया था। उच्च न्यायालय ने इस लापरवाही पर कलेक्टर को फटकार लगाते हुए सुशांत को दो लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।

जेल में युवक (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के 26 वर्षीय सुशांत बैस की जिंदगी एक साधारण सी टाइपिंग गलती ने उलट दी। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) निरोध आदेश में असली आरोपी नीरजकांत द्विवेदी की जगह जब शहडोल के कलेक्टर केदार सिंह के हस्ताक्षरित आदेश में सुशांत का नाम दर्ज हो गया, तो यह भूल सुशांत के लिए एक साल से ज्यादा की सजा बन गई।
चार सितंबर 2023 को उसे गिरफ्तार कर लिया गया और पूरे 370 दिन बाद, नौ सितंबर 2024 को हाई कोर्ट के आदेश पर वह जेल से बाहर आया। कोर्ट ने इस गंभीर लापरवाही पर कलेक्टर को अवमानना नोटिस जारी करते हुए सुशांत को दो लाख रुपये मुआवज़ा देने का निर्देश दिया।
बेटी ने पहला कदम रखा, तब सलाखों के पीछे था
अपनी 13 मार्च, 2024 को जन्मी बेटी अनाया का जिक्र करते हुए सुशांत की आवाज भर्रा जाती है। “मैंने अपनी बेटी को पहली बार घर लौटने के बाद देखा… वह अपने पहले कदम रख चुकी थी। कोई पैसा, कोई व्यवस्था मुझे वह समय वापस नहीं दिला सकती,” सुशांत कहता है।
जिंदगी तबाह हुई, घरवालों ने भी झेली मुश्किलें
नईनवेली दुल्हन के साथ गृहस्थ जीवन शुरू कर रहे थे सुशांत, लेकिन इस गलती ने सब कुछ थाम दिया। पत्नी अकेले संघर्ष करती रही, और माता-पिता ने कर्ज लेकर एक ऐसा मुकदमा लड़ा जिसे वे समझ भी नहीं पा रहे थे। सुशांत के मुताबिक, इस गलत कैद के चलते उसकी नौकरी की संभावनाएं भी धूमिल हो चुकी हैं।
कोर्ट का कड़ा रुख, सरकार को भी फटकार
सुशांत को जेल में डालने वाला कोई अपराध नहीं था, बल्कि अधिकारियों ने शुरुआत में इसे एक नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया के दौरान टाइपिंग की गलती बताकर टाल दिया था। लेकिन उच्च न्यायालय ने युवक को हुई मानसिक प्रताड़ना पर गंभीर रुख़ अपनाया। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की युगलपीठ ने राज्य सरकार की भी खिंचाई की और कहा कि वह निरोध आदेश को मंज़ूरी देने से पहले उसकी जांच-पड़ताल करने में विफल रही। इस मामले में अगली सुनवाई 25 नंवबर को होगी।

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