मिट्टी नहीं, सपनों से उगाई सफलता की फसल; प्रधानमंत्री ने भी सराहा
जबलपुर के युवा किसान वासु शुक्ला ने एरोपोनिक्स तकनीक से मिट्टी रहित आलू के बीज का उत्पादन कर कृषि क्षेत्र में नवाचार किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके इस प्रयास को सराहा है। वासु नियंत्रित वातावरण में आलू के बीज तैयार कर रहे हैं, जिससे उत्पादन और गुणवत्ता में वृद्धि हुई है। वे इन बीजों को देश के कई राज्यों और अफ्रीका में भी निर्यात कर रहे हैं, जिससे किसानों को काफी लाभ हो रहा है।

अतुल शुक्ला, जबलपुर। कृषि को अक्सर परंपरा का क्षेत्र माना जाता है पर जब सोच में नवाचार और हौसले में जुनून शामिल हो जाए तो खेती विज्ञान और तकनीक का प्रतीक बन जाती है। ऐसा ही कर दिखाया है जबलपुर (मध्यप्रदेश) के युवा कृषक वासु शुक्ला ने। उन्होंने हाल में दिल्ली में धान-धन योजना में आयोजित प्रदर्शनी में मिट्टी रहित आलू की सीड के शोध को रखा तो उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देखा और सराहा। एरोपोनिक्स तकनीक से वह नियंत्रित वातावरण में बिना मिट्टी के आलू बीज का उत्पादन करने के साथ इसे देश में कई राज्यों और विदेश में भी बेच रहे हैं। साथ किसानों को भी खेती की इस आधुनिक तकनीक का प्रयोग करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
युवा किसान जबलपुर के कटंगी में करीब आधा एकड़ भूमि में एरोपोनिक्स तकनीक यानी मिट्टी रहित आलू के बीज का उत्पादन कर रहे हैं। वासु शुक्ला बताते हैं कि उनकी यह परियोजना पारंपरिक खेती से बिल्कुल अलग है। इस तकनीक से में पौधों की जड़ें मिट्टी या पानी में नहीं, बल्कि पोषक तत्वों से युक्त हवा से पोषण लेती हैं।
इस तकनीक में कम पानी, कम जगह और बिना रोगों के बीज उत्पादन संभव है। शुक्ला कहते हैं कि हमने आलू बीज उत्पादन को पूरी तरह नियंत्रित वातावरण में किया है। इससे न केवल उत्पादन बढ़ा, बल्कि बीज की गुणवत्ता भी कई गुना बेहतर हुई। वे इस समय अपनी कटंगी फार्म पर हर साल करीब साढ़े चार लाख मिट्टी रहित आलू के सीड तैयार कर इसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात और पंजाब के किसानों को दे रहे हैं। इतना ही नहीं इन आलू के सीड को अफ्रीका में भी निर्यात किया जा रहा है।
वासु बताते हैं कि हम जो सीड तैयार करते हैं, वह एक तरह के छोटे आलू ही होते हैं। एक आलू से लगभग 12 आलू निकलते हैं, जो बढ़ते जाते हैं। एक सीट करीब छह से सात रुपये का जाता है। इस सीड को किसान अपने खेत में लगाने के बाद सीड की जनरेशन तैयार करना है। वासु इस समय देश- विदेश के डेढ़ सौ से ज्यादा किसानों से सीधे जुड़े हैं, जो इनसे सीड खरीदते हैं। वे बताते हैं कि हमारे इस शोध का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जो जनरेशन सीड पहले पांच से छह साल में तैयार होता था, वह अब छह माह में तैयार हो रहा है।
प्रधानमंत्री ने दी जैन आलू की संज्ञा
वासु ने बताया कि पूसा संस्थान दिल्ली में प्रदर्शनी के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वासु के इस नवाचार को देखा और सराहा। पीएम ने इस तकनीक से तैयार बीज को 'जैन आलू' नाम से संबोधित किया था। और इसे भारत की कृषि शक्ति का प्रतीक है। कहते हैं कि यह पल मेरे जीवन का सबसे खास पल था और मुझे यह खेती में नई अनुसंधान करने के लिए प्रेरित करेगा। उन्होंने बताया कि इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के युवा यदि तकनीक और कृषि को जोड़ दें, तो आने वाले समय में दुनिया हमारे माडल को अपनाएगी। यही बात मेरे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है।
आइटी की नौकरी छोड़, कृषि अनुसंधान पर जोर
2016 में चेन्नई से बीटेक करने के बाद वासु ने बेंगलुरु में एक आइटी कंपनी में दो साल तक सेवाएं दीं। कोविड के दौरान जबलपुर आ गए और पिता धर्मेंद्र शुक्ला और माता मीना शुक्ला के साथ अपने निजी स्कूल में काम करने लगे। इस दौरान उन्हें कृषि क्षेत्र से जुड़ने का मौका मिला। एक कार्यशाला में एरोपोनिक्स तकनीक की जानकारी लगी और फिर कटंगी के ग्राम दोहरा में करीब आधा एकड़ जमीन ली और अपना फार्म बनाया, जहां पर मिट्टी रहित आलू के सीड तैयार करना शुरू किया। 2023 में यह काम शुरू किया और धीरे-धीरे यह बढ़ता गया। साल भर में तैयार आलू के सीड से 31 लाख रुपए तक की आमदनी हो जाती है।

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