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    MP में भोपाल-जबलपुर हाईवे पर अनूठा नवाचार, वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए बिछाया 'रेड कार्पेट', धीमी गति से गुजरेंगे वाहन

    Updated: Sun, 14 Dec 2025 06:38 PM (IST)

    भोपाल-जबलपुर हाईवे पर NHAI ने नरसिंहपुर और जबलपुर के बीच वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व क्षेत्र में एक अभिनव तकनीक का उपयोग किया है। राजमार्ग पर पांच ...और पढ़ें

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    वन्यजीव क्षेत्र में बनी लाल सड़क।

    डिजिटल डेस्क, जबलपुर। मध्य प्रदेश में भोपाल से जबलपुर को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग-45 अब सिर्फ़ सफ़र का रास्ता नहीं, बल्कि नवाचार की पहचान बन गया है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने नरसिंहपुर–जबलपुर के बीच स्थित अति संवेदनशील वन्यजीव क्षेत्र में एक ऐसी तकनीक अपनाई है, जो यात्रियों की सुरक्षा के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा भी कर रही है।

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    वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व से गुजरने वाले इस हाईवे के करीब 2 किलोमीटर हिस्से को लाल रंग की विशेष उभरी हुई मार्किंग से सजाया गया है। सड़क पर की गई इस पांच मिमी मोटी ‘रेड लेयर’ पर वाहन के गुजरते ही हल्का झटका लगता है, जिससे ड्राइवर की रफ्तार अपने आप नियंत्रित हो जाती है।

    लाल रंग का मनोवैज्ञानिक असर

    सड़क पर बिछा यह लाल रंग यात्रियों को संकेत देता है कि वे एक ‘डेंजर ज़ोन’ में प्रवेश कर चुके हैं। यही कारण है कि वाहन चालक स्वाभाविक रूप से गति कम कर देते हैं। इसकी खूबसूरती और अनोखेपन से प्रभावित होकर स्थानीय लोग और यात्री इसे प्यार से ‘रेड कार्पेट रोड’ कहने लगे हैं।

     

    वन्यजीवों के लिए सुरक्षित रास्ता

    यहां पर 25 अंडरपास (पुलिया) बनाए गए हैं, ताकि बाघों समेत अन्य जंगली जानवर बिना किसी खतरे के हाईवे के नीचे से सुरक्षित आवाजाही कर सकें। यह इलाका पहले वन्यजीवों की लगातार मूवमेंट के कारण बड़ा ‘ब्लैक स्पॉट’ माना जाता था।

    122 करोड़ की सुरक्षा पहल

    करीब 122.25 करोड़ रुपये की लागत से तैयार की गई 11.96 किलोमीटर लंबी इस परियोजना में सड़क को 2 लेन से 4 लेन किया गया है। उद्देश्य साफ है—यात्रियों की जान बचाना और जंगल के निवासियों के लिए सुरक्षित गलियारा सुनिश्चित करना।

    क्या है ‘रेड रोड’ तकनीक?

    ‘रेड रोड’ की सतह टेबलटॉप जैसी हल्की उभरी हुई होती है। यह पारंपरिक स्पीड ब्रेकर से कहीं ज्यादा सुरक्षित है, क्योंकि इसमें अचानक ब्रेक लगाने की जरूरत नहीं पड़ती और वाहन की गति सहज रूप से कम हो जाती है।
    भोपाल–जबलपुर हाईवे पर यह पहल साबित करती है कि अगर तकनीक, संवेदनशीलता और सोच एक साथ आएं, तो सड़कें सिर्फ दूरी नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी तय करती हैं।