अब रिटायर्ड जजों को नहीं देना होगा 'लाइफ सर्टिफिकेट', MP हाई कोर्ट से मिली राहत, सरकार ने वापस लिया आदेश
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्त जजों को बड़ी राहत दी है। अब उन्हें हर साल लाइफ सर्टिफिकेट जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी। पहले, उन्हें हर साल नवंबर में यह सर्टिफिकेट देना होता था। कोर्ट ने फार्मर जजेस वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार के आदेश को वापस लेने के बाद यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने सर्टिफिकेट जमा करने की अनिवार्यता को अव्यावहारिक बताया था।

मप्र हाईकोर्ट (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट की ओर से प्रदेश की अधीनस्थ अदालतों से सेवानिवृत्त जजों को बड़ी राहत मिली है। अब उन्हें हर साल लाइफ सर्टिफिकेट जमा कराने की झंझट से मुक्ति मिल गई है। पूर्व में उन्हें प्रतिवर्ष नवंबर माह में भत्तों के भुगतान के लिए लाइफ सर्टिफिकेट देना पड़ता था। सरकार ने इस संदर्भ में जारी आदेश वापस ले लिया है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने यह आदेश फार्मर जजेस वेलफेयर एसोसिएशन इंदौर के महासचिव गुलाब शर्मा और जेपी राव की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिकाओं में कहा गया था कि प्रदेश की निचली अदालतों से रिटायर होने वाले जजों को राज्य सरकार मेडिकल व घरेलू भत्तों का भुगतान करती है। राज्य सरकार के वित्त विभाग ने 13 दिसंबर 2024 को एक परिपत्र जारी किया था, जिसके तहत रिटायर्ड जजों को हर साल नवंबर महीने में उसी जिले में जाकर अपना लाइफ सर्टिफिकेट जमा करना होगा, जहां से वो रिटायर हुए हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अधिकांश रिटायर्ड जज सेवानिवृत्ति के बाद दूसरे राज्यों या विदेशों में रह रहे हैं, ऐसे में यह प्रक्रिया उनके लिए कठिन और अव्यावहारिक है।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से शासकीय अधिवक्ता अनुभव जैन ने कोर्ट को बताया कि विवादित परिपत्र अब पूरी तरह से वापस ले लिया गया है। सरकार के इस बयान को रिकॉर्ड में लेते हुए कोर्ट ने ‘लाइफ सर्टिफिकेट की अनिवार्यता’ को चुनौती देने वाली दोनों याचिकाओं का निपटारा कर दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय राम ताम्रकार, अधिवक्ता अविनाश कुमार और सतीश कुमार श्रीवास्तव ने पैरवी की।

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