'भोपाल में बगैर अनुमति नहीं काटा जाए एक भी पेड़...', हाई कोर्ट के सख्त आदेश की यह है वजह
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भोपाल में बिना अनुमति पेड़ काटने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने भोजपुर-बैरसिया रेलवे प्रोजेक्ट में पेड़ों की कटाई पर स्वतः संज्ञान लिया। सुनवाई में पता चला कि 8000 से अधिक पेड़ काटे गए। कोर्ट ने पर्यावरण नियमों की अनदेखी पर नाराजगी जताई और अधिकारियों को तलब किया। सरकार को प्रत्यारोपित पेड़ों की सैटेलाइट फोटो पेश करने के निर्देश दिए गए हैं।

मप्र हाईकोर्ट भवन (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। मप्र उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि कोर्ट की अनुमति के बिना राजधानी भोपाल में एक भी पेड़ न काटा जाए। मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर को होगी। इस दौरान कार्यपालक अभियंता पीडब्ल्यूडी, अंडर सेक्रेटरी, विधानसभा सचिवालय, एडमिनिस्ट्रेटिव अफिसर-कम-अंडर सेक्रेटरी, विधानसभा सचिवालय, आयुक्त नगर निगम भोपाल, प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर आफ फारेस्ट, प्रमुख सचिव, विधानसभा सचिवालय व महाप्रबंधक पश्चिम मध्य रेलवे व्यक्तिगत रूप उपस्थित रहेंगे।
कोर्ट ने लिया संज्ञान
दरअसल, हाई कोर्ट ने भोपाल के समीप भोजपुर-बैरसिया रेलवे प्रोजेक्ट अंतर्गत रोड निर्माण के लिए 488 पेड़ों की कटाई के समाचार पर संज्ञान लेकर जनहित याचिका के रूप में सुनवाई प्रारंभ की है। मामले की सुनवाई के दौरान यह तथ्य उजागर हुआ कि प्रकरण महज 488 नहीं बल्कि 8000 से अधिक पेड़ों की कटाई से जुड़ा है। इसी के साथ कोर्ट ने सख्ती बरतते हुए पेड़ों की कटाई और ट्रांसप्लांट करने पर रोक लगा दी।
यह रोक किसी भी विभाग, प्रोजेक्ट या सरकारी अनुमति पर प्राथमिकता से लागू होगी। साथ ही पर्यावरण संरक्षण कानून की अवहेलना को आड़े हाथों लेते हुए तल्ख टिप्पणी में कहा कि अब फाइलों से नहीं बल्कि अधिकारियों कोर्ट में बुलाकर वस्तुस्थिति जानी जाएगी। साथी ही ट्रांसप्लांट पेड़ों की फोटो भी देखी जाएगी।
एनजीटी के निर्देश दरकिनार
सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि सड़क चौड़ीकरण के लिए लोक निर्माण विभाग, रायसेन ने बिना अनुमति के 488 पेड़ काट दिए। नियमानुसार नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा जारी दिशा निर्देशों के तहत राज्य सरकार को पेड़ काटने से जुड़े मामलों के लिए एक कमेटी का गठन करना होता है। किसी प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटने की जरूरत हो तो उक्त समिति से अनुमति लेना अनिवार्य है। इस मामले में राज्य सरकार द्वारा गठित नौ सदस्यीय समिति या वृक्ष अधिकारी से कोई अनुमति नहीं ली गई है।
सरकार की तरफ से प्रस्तुत जवाब में कहा गया था कि कलेक्टर द्वारा 448 पेड़ों को स्थानांतरित करने की अनुमति दी गई थी। जिन पेड़ों को स्थानांतरित नहीं किया जा सका, उनसे 10 गुना अधिक पेड़ लगाए जाएंगे। इसके अलावा 253 पेड़ों का प्रत्यारोपण किया गया है।
इस मामले की विगत पिछली सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने याचिका में भोपाल निवासी नितिन सक्सेना से हस्ताक्षेपकर्ता बनने के आवेदन को स्वीकार करते हुए अपने आवेदन में कहा था कि तस्वीरों से स्पष्ट है कि किसी भी पेड़ को प्रत्यारोपित नहीं गया है। पेड़ों को पूरी तरह से काटा गया है और उसके तने जमीन में गड़े हुए हैं, जिनमें से कुछ में अंकुर निकलने लगे हैं।
हाई कोर्ट ने प्रत्यारोपित किए गए पेडो की जीपीएस के साथ सैटेलाइट फोटो पेश करने के निर्देश दे दिए। हस्तक्षेपकर्ता की ओर से बताया गया कि भोपाल में मंत्री-विधायकों के रेजिडेंशियल कांप्लेक्स बनाने के लिए 244 और पेड़ काटने की मांग की गई है। शिफ्टिंग की आड़ में पेड़ों को काटने का एक नया तरीका अपनाया गया है। पेड़ों को काटने की अनुमति लेना मुश्किल है और इसलिए पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने का एक प्रपोजल है, जिसके लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
राज्य सरकार की तरफ से बताया गया कि प्रदेश में कोई ट्री-ट्रांसप्लांटेशन पालिसी लागू नहीं है। फोटोग्राफ से पता चलता है कि ट्रांसप्लांटेशन का तरीका पेड़ की सभी टहनियों और पत्तियों को पूरी तरह से हटाना और पेड़ के तने को दूसरी जगह लगाना था। विधानसभा बिल्डिंग कंट्रोलर के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर द्वारा विधानसभा सेक्रेटिरिएट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी को 30 अक्टूबर, 2025 को कम्युनिकेशन कर बताया गया था कि रेजिडेंशियल कांप्लेक्स के कंस्ट्रक्शन के कारण, कई पेड़ रास्ते में आ रहे हैं और उन्हें हटाना पड़ रहा है। जिसके कारण बड़ी संख्या में टहनियों को काटा जा रहा है और भारी मात्रा में लकड़ी इकट्ठा की जा रही हैं।
कंस्ट्रक्शन के रास्ते में आ रहे पेड़ों से काटी गई इन टहनियों और लकड़ी का इस्तेमाल करने का अनुरोध किया गया है। जिससे स्पष्ट है कि किसी भी तरह से किसी पेड़ को बचाने या ट्रांसप्लांट करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। जहां तक ट्रांसप्लांटेशन का सवाल है, परिवहन के दौरान उनके जीवित रहने की संभावना नहीं है।

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