उज्जैन में भगवान कालभैरव को लगता रहेगा मदिरा का भोग, शराब प्रतिबंध के बाद भी निभाई जाती रहेगी पूजन की परंपरा
पुजारी पंडित ओम प्रकाश चतुर्वेदी ने बताया कि मंदिर में मदिरा से पूजन की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। कोरोना काल में भी यह जारी थी। प्रतिदिन सुबह छह बजे पट खुलने पर भगवान को मदिरा का भोग लगता है। उसके बाद सुबह 8.30 बजे आरती में फिर शाम छह बजे तथा उसके बाद रात 8.30 बजे आरती के समय भी मदिरा का भोग लगता है।

जेएनएन, उज्जैन। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा धार्मिक नगरों में शराब के विक्रय पर नए वित्तीय वर्ष से लगाए गए प्रतिबंध का असर उज्जैन स्थित भगवान कालभैरव की पूजन परंपरा पर नहीं होगा। मंदिर में भगवान को परंपरागत मदिरा का नियमित भोग लगेगा, वहीं नवरात्र में मदिरा की धार से नगर पूजा की परंपरा भी निभाई जाती रहेगी।
हालांकि, कालभैरव मंदिर के समीप मदिरा की शासकीय दुकान रहेगी या नहीं, इस पर अभी निर्णय होना है। कलेक्टर नीरज कुमार सिंह का कहना है कि शासन से जो निर्देश मिलेंगे, उसका पालन किया जाएगा।
मंदिर में मदिरा से पूजन की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है
बता दें कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश के 17 धार्मिक शहरों में शराब विक्रय पर पाबंदी लगाई है। इस निर्णय से संत, पुजारी, प्रबुद्धजन तथा भक्त खुश हैं, लेकिन प्रश्न है कि बाबा कालभैरव मंदिर में चली आ रही मदिरा पूजन की परंपरा का क्या होगा? पुजारी पंडित ओम प्रकाश चतुर्वेदी ने बताया कि मंदिर में मदिरा से पूजन की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है।
कोरोना काल में भी यह जारी थी। प्रतिदिन सुबह छह बजे पट खुलने पर भगवान को मदिरा का भोग लगता है। उसके बाद सुबह 8.30 बजे आरती में, फिर शाम छह बजे तथा उसके बाद रात 8.30 बजे आरती के समय भी मदिरा का भोग लगता है।
भोग के लिए इस दुकान को खुला रखा जाता है
मंदिर के पास स्थित शासकीय मदिरा की दुकान से पुजारी परिवार प्रतिदिन चार क्वार्टर मदिरा खरीदता है। पुजारी को मिलने वाले मानदेय में इसका खर्च शामिल रहता है। सिंहस्थ महापर्व के दौरान जब शहर में मदिरा की समस्त दुकानें बंद रहती हैं, भोग के लिए इस दुकान को खुला रखा जाता है।
नगर पूजा मार्ग पर सतत मंदिरा की धार लगाई जाती है
पुजारी ने बताया कि प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी पर शासन की ओर से उज्जैन में सुख-समृद्धि की कामना के लिए नगर पूजा की जाती है। कलेक्टर माता महामाया व महालया को मदिरा का भोग लगाकर नगर पूजा की शुरुआत करते हैं। इसके बाद शासकीय अधिकारी व कोटवारों का दल शहर के 40 से अधिक देवी व भैरव मंदिरों में पूजा अर्चना के लिए निकलते हैं। नगर पूजा मार्ग पर सतत मंदिरा की धार लगाई जाती है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।