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    ये है आदिवासी बहुल आलीराजपुर का मथवाड़...जहां मतांतरण के कारण बदल गया आबादी का गणित

    Updated: Mon, 10 Nov 2025 04:48 PM (IST)

    आलीराजपुर के मथवाड़ में मतांतरण से जनसंख्या का स्वरूप बदल रहा है। गांव की कई बस्तियों में 50% से अधिक लोगों ने धर्म बदल लिया है। गरीबी और लालच के कारण मतांतरण हो रहा है, जिससे पारंपरिक त्योहारों की रौनक कम हो गई है। पेसा अधिनियम के तहत ग्राम समितियां संस्कृति बचाने की कोशिश कर रही हैं।

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    सघन वन क्षेत्र से घिरा गांव मथवाड़।

    डिजिटल डेस्क, इंदौर। आदिवासी बहुल जिला आलीराजपुर के दक्षिण में गुजरात-महाराष्ट्र की सीमा से लगे सुदूर पहाड़ी क्षेत्र मथवाड़ में जनसंख्या के धार्मिक स्वरूप में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। यहां मतांतरण के जरिए डेमोग्राफी (जनांकिकी) बदलने का सिलसिला जारी है।

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    गांव की कुल 12 फलियों (बस्तियों) में से पांच पूरी तरह मतांतरित हो चुकी हैं, जबकि शेष में यह प्रक्रिया लगातार बढ़ रही है। अब तक 50 फीसदी से अधिक लोग धर्म बदल चुके हैं, जिससे कभी पारंपरिक त्योहारों की ढोल-नगाड़ों वाली गूंज से भरा यह इलाका अब दो हिस्सों में बंट गया है — एक अपनी जड़ों से जुड़ा, दूसरा नए मत की ओर अग्रसर।

    ग्राम पंचायत के आंकड़ों के मुताबिक अब तक 82 परिवारों ने ईसाई धर्म अपनाया है, हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है। पंचायत के निर्णयों और सामाजिक आयोजनों में भी यह बदलाव साफ नजर आने लगा है।

    लालच और दबाव में हुए मतांतरण

    स्थानीय निवासी दिलीप पटेल के अनुसार, जामनिया, मालवड़ी, धनबयड़ी, भाला और माकड़ आंबा फलिया की पूरी बस्तियां मतांतरित हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि धर्म परिवर्तन करने वाले अधिकतर लोग गरीबी, बीमारी या दबाव के कारण ऐसा कर रहे हैं। इन्हें शिक्षा, इलाज और आर्थिक मदद का लालच दिया गया।

    सरपंच भलसिंह ने बताया कि भाला और जामनिया फलिया में दो चर्च बने हैं — एक करीब 12 वर्ष पहले और दूसरा पांच वर्ष पूर्व। स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, पहले हर घर में देवी-देवताओं की पूजा होती थी, लेकिन अब कई घरों में पारंपरिक आराधना बंद हो गई है। बच्चों के नाम और संस्कार भी बदलने लगे हैं।

    पेसा अधिनियम के तहत संस्कृति बचाने की कोशिश

    पेसा अधिनियम के तहत गठित ग्राम समितियां अब केवल विकास योजनाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि संस्कृति और परंपरा की रक्षा में भी जुटी हैं। पेसा जिला समन्वयक प्रवीण चौहान ने बताया कि जिले की 609 ग्राम सभाएं अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस दिशा में सक्रिय हैं।

    वहीं, जनजाति विकास मंच के जिला प्रमुख गोविंद भयड़िया ने कहा कि 'घर वापसी अभियान' और पारंपरिक पर्वों के पुनर्जीवन की शुरुआत की गई है। पंचायतें भी धार्मिक संतुलन बनाए रखने और बाहरी प्रभावों पर निगरानी रख रही हैं।

    क्या है पेसा अधिनियम

    पेसा (PESA) यानी अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत का विस्तार अधिनियम, जो आदिवासी समुदायों को सुशासन, पारंपरिक संसाधनों पर नियंत्रण और स्थानीय विवादों के समाधान का अधिकार देता है। यह अधिनियम आदिवासी समाज की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान की रक्षा में अहम भूमिका निभाता है।


    मथवाड़ एक नजर में
    -5,982 आबादी
    -3,330 पुरुष
    -2,652 महिलाएं
    -12 फलिया
    -4 हजार मतदाता लगभग
    -2 निर्मित चर्च