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    सरकारी स्कूल के बच्चों की कर रहीं काउंसलिंग और कॉपियां देकर मदद

    डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि उनके पति एसडीएम थे और जब स्कूलों में निरीक्षण के लिए जाते थे तो कई बार ऐसी स्थिति तक होती थी कि बच्चों के पास लिखने के लिए कॉपी तक नहीं हैं।

    By Gaurav TiwariEdited By: Updated: Tue, 25 Sep 2018 10:32 AM (IST)

    इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। आज की पीढ़ी दान की देने की परंपरा लगभग भूल चुकी है। युवा विदेशों में नौकरी कर अच्छे पैसे कमा लेते हैं, लेकिन वहां की संस्कृति में रच बस जाने के बाद हमारे यहां के संस्कारों से थोड़ा दूर हो जाते हैं। एक मां ऐसी भी है कि बच्चे विदेश में रहने के बाद भी संस्कारों से जुड़े रहें इसलिए खुद सामाजिक कार्य करती हैं और इन कार्यों के लिए बच्चों को दान देने के लिए प्रेरित करती हैं। साइकोलॉजिकल काउंसलर डॉ. अर्चना श्रीवास्तव स्कूली शिक्षा, पर्यावरण, निशुल्क काउंसलिंग आदि क्षेत्रों में अपनी सास के नाम से बनाए ट्रस्ट सावित्री चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से समाज को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रही हैं।

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    डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि उनके पति एसडीएम थे और जब स्कूलों में निरीक्षण के लिए जाते थे तो कई बार ऐसी स्थिति तक होती थी कि बच्चों के पास लिखने के लिए कॉपी तक नहीं हैं। सरकारी स्कूलों में बच्चों को किताबें तो निशुल्क मिल जाती हैं, लेकिन कॉपी नहीं मिलती हैं। इसे देखते हुए 2008 से हमने सरकारी स्कूलों में निश्शुल्क कॉपियां बांटने का काम शुरू किया। इस साल भी इंदौर में 14 सरकारी स्कूलों में निश्शुल्क कॉपियां बांटी हैं। डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि उनका बेटा सिंगापुर में आईटी इंडस्ट्री में है। वही इस ट्रस्ट के लिए दान देता है और हम सेवाकार्य करते हैं। शुरुआत में पति की जिस जिले में पोस्टिंग रही हम उसी शहर में यह काम करते रहे और अब कुछ सालों से इंदौर में यह कर रहे हैं। हर साल सरकारी स्कूल में बच्चों को एक लाख रुपए की कॉपियां वितरित की जाती हैं। इसके साथ ही अलग-अलग स्कूलों में जाकर हम बच्चों को सरकारी योजनाओं की जानकारी भी देते हैं जिससे उन्हें योजनाओं का लाभ मिल सके। कई बार जानकारी के अभाव में योजना का लाभ सही व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाता है। 

    घटनाओं को क्रम बढ़ा देता है इस दिशा में
    डॉ. श्रीवास्तव ने बताया कि कुछ सालों पहले उनका बड़ा एक्सीडेंट हुआ था। इस घटना के बाद एक-दो घटनाएं और घटी जिनके बाद लगा कि अब कुछ अच्छे सेवा कार्य करना चाहिए। मैं खुद का साइकोलॉजिकल काउंसलर हूं तो इसे ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकती हूं। आज के माहौल में साइकोलॉजिकल काउंसलिंग भी बहुत जरूरी है। बच्चे हों या बड़े, थोड़ा डिप्रेशन होने पर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। उन्हें यदि सही काउंसलिंग मिले तो ऐसे कदम उठाने से रोका जा सकता है। इसलिए मैं निशुल्क काउंसलिंग भी देती हूं। अपने स्तर पर काउंसलिंग देने के साथ स्कूलों और कॉलेजों में वर्कशॉप के जरिए भी बच्चों को हेल्थ व हाइजीन के लिए प्रेरित किया जाता है।