बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य व ऑटिज्म के निदान में AI बनेगा सहायक, डॉक्टरों को देगा सटीक इलाज की दिशा
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) बच्चों के स्वास्थ्य क्षेत्र में नई उम्मीदें जगा रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि AI डॉक्टरों को बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और ऑटिज्म के निदान में मदद कर सकती है। AI आधारित उपकरणों से रोगों के पैटर्न का विश्लेषण कर सटीक निर्णय लिए जा सकते हैं। बच्चों में बढ़ रहे मोटापे और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के लिए संतुलित आहार और व्यायाम जरूरी है।

बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, ग्वालियर। तेजी से विकसित हो रही कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) अब बच्चों के स्वास्थ्य क्षेत्र में भी नई संभावनाएं खोल रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि एआई तकनीक डॉक्टरों को बच्चों की बीमारियों खासतौर पर मानसिक स्वास्थ्य और ऑटिज्म जैसी स्थितियों को समझने और उनके सटीक निदान में मदद कर सकती है।
यह बात दिल्ली के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डा. हरीश के. पेमडे ने ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज में आयोजित राष्ट्रीय चिकित्सा शिक्षा सम्मेलन में कही। उन्होंने बताया कि यदि डॉक्टर एआई आधारित उपकरणों और सॉफ्टवेयर का उपयोग करें, तो वे बच्चों के रोगों के पैटर्न, व्यवहार और लक्षणों का विश्लेषण कर अधिक सटीक निर्णय ले सकते हैं।
शुरुआती स्तर पर पहचान जरूरी
डा. पेमडे ने कहा कि बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं और ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में, इन रोगों की प्रारंभिक पहचान बेहद जरूरी है, जिसे एआई तकनीक की मदद से और भी आसान बनाया जा सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि डॉक्टरों को आधुनिक तकनीक का प्रशिक्षण लेकर चिकित्सा सेवाओं में एआई को अपनाना चाहिए, ताकि स्वास्थ्य सेवाएं अधिक प्रभावी और सुलभ बन सकें।
राष्ट्रीय चिकित्सा शिक्षा सम्मेलन का रविवार को समापन हुआ। सम्मेलन की थीम थी — चिकित्सा शिक्षा में उत्कृष्टता को आगे बढ़ाना : नवाचार, प्रेरणा और प्रभाव। इसमें देशभर से करीब 200 प्रतिभागी और 50 राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विशेषज्ञ शामिल हुए।
बदलती जीवनशैली से बढ़ रहीं नई स्वास्थ्य चुनौतियां
सम्मेलन में हैदराबाद की बाल रोग विशेषज्ञ डा. निर्मला चेरुकुरी ने कहा कि अब बच्चों में मोटापा, हाई बीपी, मानसिक तनाव और हृदय रोग जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। पहले जहां संक्रमण प्रमुख चुनौती था, अब ओवरवेट और हाइपरटेंशन जैसी समस्याएं आम हो रही हैं।
उन्होंने बताया कि बच्चों में मोटापे का सबसे बड़ा कारण खेलकूद की कमी और असंतुलित खानपान है। फास्ट फूड और प्रोसेस्ड भोजन की बढ़ती आदतें तथा अत्यधिक नमक का सेवन बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं। डा. चेरुकुरी ने अभिभावकों से अपील की कि वे बच्चों को संतुलित आहार, नियमित शारीरिक गतिविधि और समय-समय पर स्वास्थ्य जांच के लिए प्रेरित करें, ताकि आने वाली पीढ़ी इन बीमारियों से सुरक्षित रह सके।

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