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    कुल देवता मानकर वर्षों तक की पूजा, बाद में निकला डायनासोर का अंडा; जांच में हुआ खुलासा

    By Jagran NewsEdited By: Amit Singh
    Updated: Tue, 19 Dec 2023 08:44 PM (IST)

    डायनासोर के अंडों के 256 जीवाश्म करीब 17 वर्ष पहले प्राप्त किए थे। ग्राम पाडल्या में ही डायनासोर फासिल्स जीवाश्म पार्क बनाया गया है। इस बीच विज्ञानियों को सूचना मिली कि कुछ और जीवाश्म गांव में मौजूद हैं जिनकी ग्रामीण पूजा करते हैं। इसके बाद इनकी पुन खोज शुरू की गई। यहां खेतों से खोदाई के दौरान निकली गोलाकार संरचनाओं को ग्रामीणों ने चमत्कार माना गया।

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    कुल देवता मानकर डायनासोर के अंडो की पूजा करते रहे ग्रामीण।

    जय तापड़िया, धार। मध्य प्रदेश में धार जिले के पाडल्या गांव में खोदाई के दौरान मिले जिन गोलाकार पत्थरों की ग्रामीण कुल देवता मानकर पूजा कर रहे थे, वे डायनासोर की टिटानो-सौरन प्रजाति के जीवाश्म (अंडे) हैं। इनके बारे में जब विशेषज्ञों को पता चला तो उन्होंने मौके पर जाकर जांच की। इसमें उनके डायनासोर के जीवाश्म होने की जानकारी सामने आई।

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    बता दें कि विज्ञानियों ने यहां विभिन्न क्षेत्रों में डायनासोर के अंडों के 256 जीवाश्म करीब 17 वर्ष पहले प्राप्त किए थे। ग्राम पाडल्या में ही डायनासोर फासिल्स जीवाश्म पार्क बनाया गया है। इस बीच विज्ञानियों को सूचना मिली कि कुछ और जीवाश्म गांव में मौजूद हैं, जिनकी ग्रामीण पूजा करते हैं। इसके बाद इनकी पुन: खोज शुरू की गई। यहां खेतों से खोदाई के दौरान निकली गोलाकार संरचनाओं को ग्रामीणों ने चमत्कार माना और अलग-अलग देवी-देवताओं के नाम से इनकी पूजा करने लगे।

    पाडल्या में भिल्लड़ बाबा का मंदिर बनाया और पटेलपुरा में भी इन्हें विराजित किया। वहां श्रद्धा के साथ हार-फूल, नारियल, टीका व तिलक लगाकर पूजते रहे। पाडल्या के वेस्ता मंडलोई ने बताया कि गोल पत्थर को विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग नाम देकर देवता जैसे पूजा जाता रहा। भिल्लड़ बाबा पर तो लोग बलि तक देते रहे। यहां मुर्गा और बकरे की बलि की प्रथा थी। पटेलपुरा में गोवंश के रक्षक के रूप में इन्हें पूजा जाता रहा।

    पाडल्या के अलावा झाबा, अखाड़ा, जामन्यापुरा, घोड़ा, टकारी आदि गांव में इस तरह से पूजा की गई। बीते दिनों बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट आफ पैलियो साइंस (बीएसआइपी ) लखनऊ के विशेषज्ञ और मध्य प्रदेश वन विभाग के अधिकारी यहां पहुंचे। उन्होंने गांवों के भ्रमण के दौरान उन गोलाकार पत्थरनुमा आकृति का विश्लेषण शुरू किया, जिन्हें पूजा जाता था। विशेषज्ञों ने पाया कि यह ग्रामीणों के कुलदेवता नहीं हैं, बल्कि डायनासोर के अंडे हैं। इसके बाद विशेषज्ञों ने ग्रामीणों को इसकी असलियत के बारे में जागरूक करना शुरू किया।

    निदेशक बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट आफ पैलियो एमजी ठक्कर ने बताया कि हम धार जिले को यूनेस्को द्वारा ग्लोबल जियो पार्क के रूप में मान्यता दिलाने की योजना बना रहे हैं। हम सभी जीवाश्मों और भू-विरासत स्थलों को संरक्षित करने का प्रयास करेंगे।