जल संरक्षण में मिसाल कायम कर रहीं महिलाएं, नदी में बोरी बंधान से 110 गांवों को मिल रही संजीवनी
मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में 110 गांवों की 4000 महिलाएं जल संरक्षण अभियान चला रही हैं। चंदन नदी व अन्य जल स्रोतों पर बोरी बंधान से गर्मी में जल संकट कम हुआ है। महिलाओं ने 8000 से अधिक पौधे लगाए जिससे पर्यावरण को भी लाभ मिला। इस सामूहिक प्रयास से किसानों और मवेशियों को जल उपलब्धता सुनिश्चित हुई जिससे सवा दो लाख की आबादी लाभान्वित हो रही है।
गुनेश्वर सहारे, बालाघाट, जागरण। घरेलू कामकाज की जिम्मेदारी के साथ महिलाएं जल संरक्षण की दिशा में भी कदम बढ़ा रही हैं। ‘जल ही जीवन है’ के संदेश के साथ मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के वारासिवनी और कटंगी क्षेत्र में बड़े स्तर पर महिलाएं इस कार्य में पूरी शिद्दत के साथ जुटी हैं। यहां एक-दो नहीं, बल्कि 110 गांवों की चार हजार महिलाएं अभियान के रूप में लोगों में जल संरक्षण की अलख जगा रही हैं। उनका मकसद साल भर जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ भीषण गर्मी में मवेशियों और वन्यजीवों की प्यास बुझाने में मदद करना भी है।
परामर्शदाता सावित्री राणा बताती हैं कि चंदन नदी किनारे कटंगी के बाहकल गांव में उनका पूरा जीवन बीता है। नदी से रेत खनन होने से कटाव बढ़ता था। गर्मी में नदी सूख जाती थी। इससे नदी किनारे गांवों में पेयजल की समस्या बनती थी। इस समस्या को दूर करने के लिए 2012 में आर्थिक योजना व सांख्यिकी विभाग के बीच सेतु का कार्य कर रहे मप्र जन अभियान परिषद से जुड़ीं। इसके बाद उन्होंने नदी-नालों पर बोरी बंधान करने के दौरान जल संरक्षण का महत्व समझा और युवतियां और महिलाओं को इस अभियान से जोड़ने के लिए उन्हें निरंतर जागरूक करती रहीं। शुरुआत में दो से ढाई सौ महिलाएं जुड़ी थीं।
जागरूकता का परिणाम यह है कि अभी तक चार हजार महिलाएं इस अभियान से जुड़ चुकी हैं। महिलाओं को जोड़ने के लिए घर-घर चौपाल भी लगाई जाती है।
भीषण गर्मी में पानी की कमी नहीं होती महसूस
इस अभियान से जुड़ीं सत्यवती नगपुरे, दीक्षा तुरकर और मुस्कान पारधी कहती हैं, इस वर्ष कटंगी में 42 गांवों में 63 स्थानों और वारासिवनी के 38 गांवों में 47 स्थानों पर बोरी बंधान किए गए हैं। इससे भीषण गर्मी में भी पानी की कमी महसूस नहीं होती, बल्कि नदी और नालों के किनारे वाले गांवों के हैंडपंपों व कुओं का जलस्तर बेहतर स्थिति में रहता है। साथ ही इस अभियान के तहत महिलाएं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी कार्य कर रही हैं। इतने गांवों में दस वर्ष के भीतर आठ हजार से अधिक पौधे रोपे हैं, जो कई जगह पेड़ में बदल गए हैं।
"जल संरक्षण करने के लिए सावित्री राणा युवतियों व महिलाओं को चौपाल लेकर जानकारी देती हैं। जिसका परिणाम है कि नदी, नालों पर बोरी बंधान करने महिलाएं मिल कर आगे आई हैं। वह जल का महत्व समझ रही हैं। बोरी बंधान करने से इसका लाभ गर्मी के दिनों में मवेशी, वन्यजीवों की प्यास बुझती है। साथ में किसानों को खेती करने में लाभ मिल रहा है।" अंजू डोंगरे, परामर्शदाता, मप्र जन अभियान परिषद।
वरदान है चंदन नदी, सवा दो लाख की आबादी को मिल रहा लाभ
जल की उपलब्धता की दृष्टि से चंदन नदी किसानों के लिए वरदान है। खरीफ, रबी सीजन की फसलों के अलावा सब्जी और गन्ने के लिए भी यह संजीवनी है। इसका उद्गम स्थल कटंगी के अंबा माई नहलेसरा से है। नदी दो तहसील के 61 गांवों से होकर करीब 92 किमी बहते हुए बावनथड़ी नदी में मिलती है।
- नदी में बोरी बंधान किए जाने से यहां बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिला है।
- किसान खेतों में सब्जियां, गन्ना और धान उगा रहे हैं। नदी में सहायक नदी के अलावा नाले भी मिले हैं।
- 110 गांवों में इसका असर देखने मिल रहा है। इन गांवों की करीब सवा दो लाख की आबादी को इसका सीधा लाभ मिल रहा है।
महिलाओं का बोरी बंधान का यह सामूहिक प्रयास सिर्फ चंदन नदी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इन गांवों के बरसाती नालों का जल संरक्षित करने बोरी बंधान किया गया है। इतना ही नहीं महिलाओं के समूह ने इन बरसाती नालों को बारहमासी जलस्त्रोत के रूप में बदलने का कार्य भी प्रारंभ किया है ताकि नदी के साथ ही जंगल से निकले बरसाती नाले भी बोरी बंधान के जरिए वर्ष भर पानी से भरे रहें।
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