...नहीं रहा ‘टीपू’, मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी गौरव था यह सफेद बाघ; कई महीनों से था बीमार
मध्य प्रदेश के मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी में 11 वर्षीय सफेद नर बाघ टीपू की मौत हो गई। पिछले तीन माह से उसका क्रॉनिक किडनी फेलियर का इलाज चल रहा था। टीपू की मौत के बाद अब सफारी में सिर्फ तीन ही सफेद बाघ बचे हैं जिससे इसकी शोभा कम हो गई है। डॉक्टरों की टीम ने पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार कर दिया है...

जागरण टीम, सतना। यह खबर वन्य प्राणियों से प्रेम करने वालों को निश्चित ही दुखी करेगी। कारण- मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी का गौरव समझे जाने वाले 11 वर्षीय सफेद नर बाघ टीपू ने आखिरकार मौत के आगे घुटने टेक दिए। उसकी मौत के बाद अब सफारी में सिर्फ तीन ही व्हाइट टाइगर बचे हैं।
दरअसल, विश्व की पहली ओपन व्हाइट टाइगर सफारी महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव व्हाइट टाइगर सफारी एवं जू मुकुंदपुर में मंगलवार को बड़ी दुखद घटना सामने आई है।
साल 2023 में राष्ट्रीय प्राणी उद्यान नई दिल्ली से मुकुंदपुर पहुंचा सफेद नर बाघ ‘टीपू’ की इलाज के दौरान मौत हो गई। टीपू की उम्र 11 वर्ष थी। जिसका बीते तीन माह से इलाज चल रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक, टीपू को अचानक क्रॉनिक किडनी फेलियर अटैक आने के कारण मौत हुई है। हालांकि, यह प्रारंभिक कारणों में शामिल है। वास्तविक वजह पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही स्पष्ट हो सकेंगी।
इस संबंध में जू डायरेक्टर रामेश्वर टेकाम ने बताया कि टीपू का लगातार उपचार किया जा रहा था। इसके लिए एसडब्ल्यूएफएच जबलपुर के डॉ. अमोल रोकड़े, वेटरनरी कॉलेज रीवा की वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक डॉ. कंचन वालवाडकर एवं बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. राजेश तोमर सहित विशेषज्ञ चिकित्सक लगातार स्वास्थ्य परीक्षण और पैथोलॉजी जांच कर रहे थे।
पिछले एक सप्ताह से उसकी हालत और बिगड़ गई थी, जिस पर उसे गहन चिकित्सा इकाई में रखा गया। बावजूद इसके मंगलवार को दोपहर 1:54 बजे उसने अंतिम सांस ली।
चिकित्सकीय दल ने पोस्टमार्टम कर अवयवों के सैम्पल जांच के लिए सुरक्षित किए। प्रारंभिक जांच में मृत्यु का कारण क्रोनिक किडनी फेल्युअर सामने आया। पोस्टमार्टम के बाद वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में टीपू का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
तीन माह से चल रहा था इलाज
टीपू को वर्ष 2023 में राष्ट्रीय प्राणी उद्यान नई दिल्ली से मुकुंदपुर लाया गया था। बीमार पड़ने के बाद उसका लगातार इलाज चल रहा था। जू डायरेक्टर रामेश्वर टेकाम के मुताबिक, टीपू का उपचार एसडब्ल्यूएफएच जबलपुर के डॉ. अमोल रोकड़े, वेटरनरी कॉलेज रीवा की वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक डॉ. कंचन वालवाडकर और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के वन्यप्राणी स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. राजेश तोमर की देखरेख में किया जा रहा था।
कम हो गई सफारी की शान
मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी वर्ष 2016 में जनता के लिए खोली गई थी। यहां सबसे पहले विंध्या नाम की मादा बाघिन को लाया गया था। इसके बाद राधा, रघु, सोनम और मोहन आए। विंध्या और राधा की उम्रदराज होने से मौत हो चुकी है। अब टीपू के निधन के बाद सफारी में सिर्फ तीन बाघ रघु, सोनम और मोहन ही रह गए हैं।
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