Tiger Love story: जानें क्या है सीता और चार्जर की अनूठी प्रेम कहानी, जिसे सुनते ही रोमांचित हो जाते हैं पर्यटक
अनूठी प्रेम कहानी है बाघिन सीता और बाघ चार्जर की। ये दोनों जंगल में उस तरह जिए और मरे मानो दोनों ने एक साथ जीने-मरने की कसम खाई थी। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटक आज भी दोनों की प्रेम कहानी को सुनकर रोमांचित हो जाते हैं।

संजय कुमार शर्मा, उमरिया। विपरीत स्वभाव के बावजूद गहरा प्यार। कुछ ऐसी ही अनूठी प्रेम कहानी है बाघिन सीता और बाघ चार्जर की। ये दोनों जंगल में उस तरह जिए और मरे, मानो दोनों ने एक साथ जीने-मरने की कसम खाई थी। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटक आज भी दोनों की प्रेम कहानी को सुनकर रोमांचित हो जाते हैं। सीता पर्यटकों को अलग-अलग पोज देती थी, चार्जर पर्यटकों की जिप्सी देखकर दहाड़ता था। चार्जर के जिप्सियों पर लपकने और आक्रामक स्वभाव के कारण गाइडों ने उसे चार्जर नाम दिया था।
दोनों की प्रेम कहानी फिल्मी नायक-नायिका की कहानी से अलग बिलकुल भी नहीं है। गाइड दिवाकर प्रजापति और कामता यादव बताते हैं सीता और चार्जर न होते तो शायद बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में आज 124 बाघ भी न होते। बांधवगढ़ में 1990 के आसपास सिर्फ यही दोनों शेष रह गए थे। दोनों ने साथ रहकर बाघों का कुनबा बढ़ाया। सीता पांच बार मां बनी और उसने लगभग 23 शावकों को जन्म दिया। आज बांधवगढ़ में जितने भी बाघ और बाघिन हैं, उनमें से ज्यादातर सीता और चार्जर के वंश के ही हैं।
सीता और बाघ चार्जर ने खुलकर जिंदगी को जीया
गाइड दिवाकर प्रजापति और कामता यादव बताते हैं कि सीता खूबसूरत और फोटोजेनिक बाघिन थी, जबकि चार्जर आक्रामक था। दोनों ने खुलकर जिंदगी जी। जब सीता ने शावकों को जन्म दिया, तब भी चार्जर बाघों के मूल स्वभाव के विपरीत कुनबे के साथ रहा। चार्जर ने सीता के शावकों के लिए शिकार भी किया।
चार्जर जब बूढ़ा होने लगा और उसकी आंखें कमजोर हो गईं तब सीता उसे अपने शरीर से छूकर रास्ता दिखाती थी। सीता शिकार करती थी और उसे खींच कर चार्जर को देती थी। 1998 में चार्जर लगभग 16 साल का हो चुका था और उसके दांत टूट गए थे। वन विभाग के अधिकारियों ने मगधी में चार्जर के लिए बाड़ा (इनक्लोजर) बनाया और सुरक्षा की दृष्टि से वहां रखा।
बाड़े के बाहर से सीता की पुकार सुनकर चार्जर व्याकुल होकर चहलकदमी करने लगता था। सीता की यह जुदाई उसे बर्दाश्त नहीं हुई और कुछ दिन बाद उसने दम तोड़ दिया। जहां चार्जर ने दम तोड़ा था, उस स्थान को लोग चार्जर पाइंट के नाम से जानते हैं। वर्ष 2000 में सीता का भी शिकार हो गया।
वर्जन
सीता खितौली मेटा पापुलेशन की सदस्य थी और चार्जर घुनघुटी मेटा पापुलेशन का। जब ये दोनों मिले तो इनमें वंशानुगत लक्षण पूरी तरह से अलग थे। यही कारण है कि इनसे उत्पन्न् संतानें लंबे समय तक जीवित रहीं। आज बांधवगढ़ में इनकी 11वीं पीढ़ी विचरण कर रही है।
-मृदुल पाठक, पूर्व फील्ड डायरेक्टर, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।