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    केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री ने कहा- रूस और यूक्रेन के युद्ध के कारण भारत के स्टील व्यवसाय पर किसी तरह का फर्क नहीं

    By Priti JhaEdited By:
    Updated: Mon, 28 Feb 2022 12:17 PM (IST)

    कुलस्ते ने कहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण भारत में स्टील के आयात-निर्यात पर किसी भी तरह का फर्क नहीं पड़ा है। इसकी कीमतों में भवि ...और पढ़ें

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    केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते

    इंदौर, जेएनएन । केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण भारत में स्टील के आयात-निर्यात पर किसी भी तरह का फर्क नहीं पड़ा है। इस्पात के क्षेत्र में कार्य कर रहे उद्योगों को इसका थोड़ा बहुत फर्क पड़ सकता है। स्टील क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय है। इसकी कीमतों में भविष्य में हो सकता है कि थोड़ा बहुत फर्क पड़े लेकिन इस समय यह क्षेत्र प्रभावित नहीं है।

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    केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ग्लोबल फोर फार इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट द्वारा शहर के एक शिक्षण संस्थान में अंतरराष्ट्रीय रियल स्टेट कंस्ट्रक्शन और इंफ्रास्ट्रक्चर समिट में वे मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हुए थे। उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिकता इस समय यूक्रेन में फंसे बच्चों को वापस लाना है। अगर इस्पात को लेकर किसी तरह की परेशानी आई तो इसे लेकर भी सरकार ने सभी तैयारियां कर रखी है।

    उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के शुरुआत में जब पहला लाकडाउन लगा था मैंने सबसे पहले कहा था कि मजदूरों की परेशानी बढ़ेगी। मैंने उद्योगों को कई तरह की छूट देने का भी आग्रह किया था। इसके बाद से विकास के कार्यों की योजनाओं को और बेहतर तरीके से अंजाम दिया जा रहा है। कई लोग एक से दूसरे राज्य में काम करने के लिए जाते हैं। मैंने प्रदेश में रियल स्टेट की स्थिति की बेहतर करने के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि इसके लिए बेहतर सुविधाएं और माहौल बनाने की जरूरत है। मध्यप्रदेश की बात हर जगह होती है।

    फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि यहां पर्यटन का बड़ा क्षेत्र है और औषधियां भी पाई जाती है। इसके अलावा भी कई क्षेत्रों में आपार संभावनाएं है। उद्योगों को गति देने के लिए जरूरी है कि कच्चा माल उन्हें उपलब्ध कराई जाए। सामग्री को एक से दूसरी जगह ले जाना भी चुनौतीभरा होता है। कई बार देखने में मिलता कि कई क्षेत्रों में बड़े समझौते हो जाते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर बहुत कम ही प्रोजेक्ट मूर्त रूप ले पाते हैं।