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    टीकमगढ़: आस्था और संस्कृति संग स्वादिष्ट पकवानों से परिचित कराता बेमिसाल बुंदेलखंड

    By Jagran NewsEdited By: Yogesh Sahu
    Updated: Fri, 04 Aug 2023 07:20 PM (IST)

    बुंदेली एवं बुंदेलखंड शब्दों को सुनते ही हृदय में एक विशिष्ट बहुरंगी और सहृदय संस्कृति की तस्वीर बनती है। प्राकृतिक रुप से समृद्ध बुंदेलखंड में मानसून आते ही सौंदर्य में आया निखार पर्यटकों को बहुत पहले से लुभाता रहा है। जबकि यहां पर होम स्टे के साथ ही अब बुंदेली व्यंजन भी परोसे जा रहे हैं जो पर्यटकों को खूब भा रहे हैं।

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    टीकमगढ़: आस्था और संस्कृति संग स्वादिष्ट पकवानों से परिचित कराता बेमिसाल बुंदेलखंड

    मनीष असाटी/अब्बास अहमद (नईदुनिया)। बुंदेली एवं बुंदेलखंड शब्दों को सुनते ही हृदय में एक विशिष्ट बहुरंगी और सहृदय संस्कृति की तस्वीर बनती है।

    प्राकृतिक रूप से समृद्ध बुंदेलखंड में मानसून आते ही सौंदर्य में आया निखार पर्यटकों को बहुत पहले से लुभाता रहा है। जबकि यहां पर होम स्टे के साथ ही अब बुंदेली व्यंजन भी परोसे जा रहे हैं, जो पर्यटकों को खूब भा रहे हैं।

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    यह बुंदेलखंड के टीकमगढ़-छतरपुर और निवाड़ी जिले के पर्यटन का विशेष पहलू है कि यह विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद रहा है।

    जबकि देशी पर्यटक केवल धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से आते रहे हैं, परंतु अब शहर की भागदौड़ की जिंदगी से दूर होम स्टे ने पर्यटकों के लिए अपनी ओर खींचने को मजबूर किया है।

    परंपरागत रुप से झांसी-ओरछा, खजुराहो एवं आसपास के क्षेत्र पर्यटन मानचित्र पर आते रहे हैं, परंतु अब पर्यटन ग्राम लाड़पुराखास, सूर्यमंदिर मड़खेरा, बल्देवगढ़ किला, टीकमगढ़ का प्राकृतिक सौंदर्य व रियासतकालीन वास्तु जैसे बोतल हाउस, बावड़ियां, चंदेलकालीन तालाबों की श्रृखंला भी जिज्ञासु पर्यटकों को अपनी ओर खींच रही है।

    साथ ही साथ बान सुजारा बांध घुमंतुओं की पहली पसंद बनता जा रहा है। बल्देवगढ़ किले से आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण पर्यटन, इको टूरिज्म और अन्य विरासती किलों में पर्यटकों की रुचि देखी जा रही है।

    झांसी का किला में एक दर्जन से ज्यादा पर्यटन स्थल

    झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई के किले के अलावा भी कई अनछुए स्थल हैं, जो जिज्ञासु पर्यटकों को अपनी ओर खींच रहे हैं। जैसे महारानी लक्ष्मीबाई की कुलदेवी का मंदिर, जिसे महालक्ष्मी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

    इस मंदिर में झांसी की रानी सप्ताह में अपनी सहेलियों के साथ दो बार आतीं थीं। राजा गंगाधर राव द्वारा निर्मित बाराद्धारी, गंगाधरराव का समाधि स्थल, झोकनबाग स्मारक के साथ -साथ भगवान गणेश को समर्पित मंदिर, जहां रानी लक्ष्मीबाई का विवाह राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। कड़क बिजली तोप भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं।

    विदेशी पर्यटकों को लुभा रहा पर्यटन ग्राम लाड़पुरा

    मप्र के निवाड़ी जिले में ओरछा से 10 किमी दूर स्थित लाड़पुराखास गांव देशी ही नहीं विदेशी पर्यटकों को भी लुभा रहा है, जहां पर पर्यटकों को बुंदेली कल्चर देखने को मिलता है।

    होम स्टे में चार पाई, बुंदेली वास्तु, रहन सहन एवं व्यंजनों को आनंद प्राप्त होता है। इस गांव में महिलाएं ई-रिक्शा चलाकर पर्यटकों को आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य एवं ग्रामीण परिवेश से अवगत करातीं हैं।

    इस गांव की विशेषता यह भी है कि यहां से ओरछा के चतुर्भुज मंदिर का दीदार भी हो जाता है और यह गांव बेतवा तट से बहुत दूर नहीं है। नदी से कल-कल करतीं हुईं झरने की आवाजें होम स्टे में ठहरे पर्यटकों के कानों में गूंजती हैं।

    मध्यप्रदेश की अयोध्या ओरछा

    ओरछा एक ऐसा अनूठा पर्यटन स्थल है, जो प्राकृतिक ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व रखता है। साथ ही ओरछा से जुड़ी भगवान रामराजा सरकार की कहानी देशी-विदेशी हर तरह के पर्यटकों को अभिभूत करती है एवं लोगों को अपनी धार्मिक आस्थाओं के प्रति निष्ठा रखने की सहज प्रेरणा देती है।

    स्थानीय चतुर्भुज मंदिर, जहांगीर महल, उंटखाना, मूर्तिविहीन लक्ष्मी मंदिर, कंचना घाट, छतरियां सहित बेतवा नदी में रिवर राफ्टिंग ओरछा को पर्यटन को हर पहलू से परिपूर्ण करती है।

    ओरछा में नवनिर्मित पुल और उसके समांतर राजशाही पुल यहां आए हुए पर्यटकों को अपने पूर्वजों के इतिहास से जोड़ने को वरवश मजबूर करता है। जिसे पर्यटक अपने कैमरे कैद करते हुए नजर आते हैं।

    सूर्यमंदिर मड़खेरा व उमरी

    टीकमगढ़ जिले की पुरातात्विक विरासतों में शामिल मड़खेरा एवं उमरी के सूर्यमंदिर अब पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने लगे हैं। इ

    समें टीकमगढ़ शहर मुख्यालय से 15 किमी दूर स्थित मड़खेरा गांव स्थित सूर्यमंदिर अपने विशिष्ट स्थापत्य के साथ-साथ स्थानीय लोगों की धार्मिक आस्था का प्रतीक है।

    साथ ही शहर से 35 किमी दूर बड़ागांव धसान के समीप उमरी में स्थित सूर्यमंदिर अपनी ओर पर्यटकों को लुभा रहा है।

    बुंदेलखंड का केदारनाथ 'जटाशंकर धाम'

    छतरपुर मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर जटाशंकर धाम है। यह स्थान चारों तरफ से विंध्य पर्वत श्रृंखला पर्वतों से घिरा है। इसे बुंदेलखंड का केदारनाथ धाम कहते हैं।

    यहां पर्वत से जटाओं की तरह बहने वाली जलधाराएं ऐसी दिखती हैं, जैसे भगवान शिव की जटाओं से गंगा बह रही हो। बहती जलधारा के कारण इसका नाम जटाशंकर है।

    मंदिर में तीन छोटे-छोटे जल कुंड हैं, जिनका जल कभी खत्म नहीं होता। इन कुंडों के पानी का तापमान हमेशा मौसम के विपरीत होता है।

    देश में विदेश जैसा एहसास 'खजुराहो'

    खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच हुआ। चंदेलों की राजधानी रहे खजुराहो में सबसे महत्वपूर्ण भगवान शिव का मंदिर है, जिसे कंदरिया महादेव के नाम से भी जाना जाता है।

    इस मंदिर का निर्माण चंदेल शासक विद्याधर ने करवाया था। खजुराहो का लक्ष्मी मंदिर अपनी शानदार कला के लिए जाना जाता है।

    यह मंदिर लक्ष्मण मंदिर के ठीक सामने है। खजुराहो में पाश्चात्य शैली में बने मंदिरों की अद्भुत कला को निहारने यहां देश- विदेश से लोग आते हैं।

    मोती सा चमकता नीले पानी का 'भीम कुंड'

    छतरपुर मुख्यालय से 77 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम बाजना में प्राकृतिक भीम कुंड है। कुंड का पानी गहरा नीला है। इससे इसे नीलकुंड भी कहते हैं।

    पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों के अज्ञातवास के दौरान चलते-चलते पांचाली को प्यास लगी थी। पानी की खोज में पांडवों ने काफी प्रयास किए।

    पानी नहीं मिलने पर भीम ने अपनी गदा जमीन में मारी। इससे जमीन की कई परतें टूट गईं और पानी निकल आया।

    'रनेह फाल जल प्रपात', धुबेला का महाराजा छत्रसाल पुरा संग्रहालय

    रनेह फाल जल प्रपात: खजुराहो के पास राजनगर तहसील में केन नदी की सहायक नदी पर 98 फीट की ऊंचाई से रनेह फाल जल प्रपात से बहता पानी प्रकृति की गोद में जाने का अनुभव कराता है।

    छतरपुर से करीब 17 किलोमीटर नौगांव रोड पर ग्राम धुबेला में महाराजा छत्रसाल संग्रहालय है। यहां महाराजा छत्रसाल की विशाल प्रतिमा देखने को मिलती है, जिसमें वे राजा की पोशाक में घोड़े पर सवारी करते हुए नजर आते हैं।

    महाराजा छत्रसाल पुरातत्व संग्रहालय धुबेला में महाराजा छत्रसाल से जुड़े इतिहास को देख समझ सकते हैं।

    ऐसे पहुंचे : बुंदेलखंड आने के लिए बेहद आसान यात्रा

    बुंदेलखंड के इन रमणीय स्थलों तक पहुंचने के लिए यातायात के बहुत ही अच्छे साधन हैं। खजुराहो में एयरपोर्ट है। यहां दिल्ली से सीधी फ्लाइट है। जल्द ही बनारस से शुरू होने वाली है।

    रेलमार्ग से पहुंचने के लिए छतरपुर में रेलवे स्टेशन है। झांसी का रानी लक्ष्मीबाई रेलवे स्टेशन देश के हर कोने से जुड़ा है। शताब्दी, राजधानी और वंदेभारत ट्रेनों का यहां स्टापेज है।

    राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-36 के कारण पूरा बुंदेलखंड बहुत अच्छी तरह से जुड़ा है। खजुराहो के साथ-साथ छतरपुर जिला मुख्यालय पर अच्छे और सस्ते होटलों की बड़ी श्रृंखला है।

    यहां खजुराहो और छतरपुर में आपको पांच सितारा होटल की सुविधा भी मिलेगी। अंतरराष्ट्रीय बस स्टैंड होने से 24 घंटे यातायात की सुविधा मिलती है।

    चखें बुंदेली व्यंजनों का स्वाद

    बुंदेलखंड के निवाड़ी, टीकमगढ़ और छतरपुर जिले में इस लिहाज से प्रसिद्ध रहे हैं कि हर छोटे-बड़े गांव के कुछ स्थानीय व्यंजनों की ख्याति देश-विदेश में भी है।

    ऐसे में यहां पर पहुंचने वाले पर्यटकों को बुंदेली व्यंजनों को परोसा जाता है, जिससे वह बुंदेली व्यंजनों का लुत्फ उठाते हुए नजर आते हैं।

    यहां पर बुंदेली व्यंजनों में कढ़ी, पकोड़ा के साथ मीठे में जलेबी, मालपुआ, कलाकंद, रस खीर यहां की एक लोकप्रिय मिठाई है, जो दूध और बाजरा के साथ महुआ के फूलों के अर्क से बनती है।

    अन्य मशहूर व्यंजनों में पूरी के लड्डू, करौंदे का पकवान अनवरिया, थोपा बफौरी, महेरी, बरा, कोंच, कचरिया,, मगौरा, देवलन की दार, भात, बूरों, सतुवा, पपइया व घी समेत समूदी रोटी का महत्व है।

    ब्लागर्स एवं यू-ट्यूबर्स में छाई बुंदेली संस्कृति व बुंदेली पर्यटन

    शहर के शांतिनगर कालोनी निवासी मनीष जैन ने बताया कि बुंदेली संस्कृति एवं छोटे-छोटे दर्शनीय स्थल ब्लागर्स और यू-ट्यूबर्स में अत्याधिक प्रसिद्ध हैं, जो बुंदेली संस्कृति अपने शुद्धतम रुप में एवं समकालीनता को समेटे हुए रोचक तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं। इस माध्यम से बुंदेली परंपरा का प्रचार-प्रसार हो रहा है।