Mosques in Bhopal: भोपाल में हैं छह सौ से ज्यादा मस्जिदें, इनमें एशिया की सबसे बड़ी और छोटी मस्जिद भी शामिल
एशिया की सबसे छोटी मस्जिद को ढाई सीढ़ी वाली मस्जिद शहर के हमीदिया अस्पताल परिसर में हैं। दरअसल नवाब भोपाल के किले फतहगढ़ की पहरेदारी करने वाले सुरक्षा कर्मियों के नमाज पड़ने के लिए किले की प्राचीर पर एक बुर्ज पर ही नमाज पढ़ने की व्यवस्था की गई थी।
भोपाल, मोहम्मद अबरार खान। पूरी दुनिया का मुस्लिम समाज रमजान माह में आम दिनों से ज्यादा इबादत में वक्त गुजारता है। इन दिनों में मस्जिदों की रौनक आम दिनों से ज्यादा बढ़ जाती है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मस्जिदों में रंगरोगन के साथ ही आकषर्क रोशनी भी गई है। इस्लाम में मस्जिदों को अल्लाह का घर माना जाता है।
रमजान माह में देर रात तक हो रही है तरावीह की नमाज
रमजान माह में आसमानी किताब कुरआन उतारा गया था, इसलिए पूरा समाज इन दिनों बड़ी संख्या में मस्जिदों में नमाज अता करने रोजा अफ्तार करने जमा होता है। इस दौरान सभी देश-दुनिया में अमन-चमन की दुआ करते हैं।
एशिया की सबसे छोटी व बड़ी मस्जिद
नवाबी दौर में बसी झीलों की नगरी भोपाल में 602 मस्जिदें हैं। इनमें ऐतिहासिक मस्जिदें 15 हैं, जिनका जिम्मा शाही औकाफ उठाता है। बाकी मस्जिदें औकाफे आम्मा के जिम्मे हैं। मध्य प्रदेश मसाजिद कमेटी के सचिव यासिर अराफात बताते हैं कि इस रिकार्ड के अलावा भी कुछ मस्जिदें शहर में हैं, जिनकी संख्या नहीं पता। वे हमारी सूची में शामिल नहीं, क्योंकि वे निजी संस्थाओं द्वारा संचालित हैं। उनकी देखरेख वे स्वयं ही करते हैं।
इनमें एशिया की सबसे छोटी व बड़ी मस्जिद शहर में हैं। एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद का दर्जा ताजुल मस्जिद को हासिल है, वहीं ढाई सीढ़ी वाली मस्जिद एशिया की सबसे छोटी मस्जिद है। यह मस्जिद गांधी मेडिकल कालेज के पास बने फतेहगढ़ किले के बुर्ज पर बनी है ।
नवाब शाहजहां बेगम ने कराया था ताजुल मसाजिद का निर्माण
भोपाल कई मायनों में खास है और यहां कई ऐसी जगहें हैं, जो न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे विश्व में मशहूर हैं। यहां आपको एक तरफ प्राचीन वास्तुकलाएं देखने को मिलेगी, तो दूसरी तरफ कई ऐतिहासिक चीजों को देखने का मौका मिलगा। इनें से एक है एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मस्जिद। शाहजांह बेगम (1844-1901) ने इसका काम शुरू करवाया था जो उनके जीवनकाल में पूरा न हो सका।
उनकी म्रत्यु के बाद उनकी बेटी सुल्तान जहां बेगम ने इसका निर्माण कार्य आगे बढ़ाया।। बताया जाता है कि पैसों की कमी के कारण बाद में इसका निर्नाण कुछ समय के लिए रुका भी था। सन् 1971 में भोपाल के मौलाना मोहम्मद इमरान खान नदवी और मौलाना सैयद हशमत अली साहब के प्रयासों से मस्जिद का निर्माण फिर से शुरू हुआ। सन् 1985 में इसका निर्माण कार्य मप्र शासन के सहयोग से पूरा हुआ था।
यह मस्जिद इस्लामी और मुगल शैली में निर्मित की गई है। इस मस्जिद पर तीन गुंबद बनाए गए हैं और दो बड़ी मीनार बनाई गई हैं। इस मस्जिद के आसपास बड़ा मैदान है और मस्जिद के सामने वजू के लिए तीन तालाब नुमा वुजू खाने बनाए गए हैं। संगमरमर के सफेद तीन गुंबद मस्जिद को और आकर्षक बनाते हैं।
मस्जिद ढाई सीढ़ी एशिया की सबसे छोटी मस्जिद
एशिया की सबसे छोटी मस्जिद को ढाई सीढ़ी वाली मस्जिद शहर के हमीदिया अस्पताल परिसर में हैं। दरअसल नवाब भोपाल के किले फतहगढ़ की पहरेदारी करने वाले सुरक्षा कर्मियों के नमाज पड़ने के लिए किले की प्राचीर पर एक बुर्ज पर ही नमाज पढ़ने की व्यवस्था की गई थी। ताकि दुश्मन पर हर समय नजर रखी जा सके। इस मस्जिद में पांच से सात लोग नमाज पढ़ सकते हैं।
नवाब दोस्त मोहम्मद खान ने अपनी बीवी, जिसका नाम फतह था, उसके नाम पर राजधानी के पहले किले फतहगढ़ का निर्माण कराया। निर्माण के समय बुर्ज पर जाने के लिए ढाई सीढ़ियां बनाई गई थीं। आने के रास्ते पर भी सीढ़ियों की संख्या ढाई है, इसलिए यह मजिस्द ढाई सीढ़ी की मस्जिद से प्रसिद्ध है। इस मस्जिद को शहर भोपाल की पहली मस्जिद का दर्जा भी हासिल है।