MP News: देवी अहिल्याबाई होलकर ने शिव भक्ति की जो धारा बहाई, वह निरंतर हो रही प्रवाहित
अहिल्याबाई होलकर ने देश भर में धार्मिक स्थलों पर मंदिरों का जीर्णोद्धार घाटों व कुएं-बावड़ी का निर्माण तो कराया ही साथ ही ज्योतिर्लिंगों की पूजा की विशेष व्यवस्था भी की। इसमें से रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पूजा के लिए अहिल्याबाई द्वारा स्थापित किए गए खासगी ट्रस्ट से ही गंगाजल पहुंचाया जाता।

इंदौर, जेएनएन । देवी अहिल्याबाई होलकर ने शिव भक्ति की जो धारा बहाई, वह निरंतर प्रवाहित हो रही है। फिर चाहे इंदौर के समीप बना गरुड़ तीर्थ देवगुराड़िया मंदिर हो या दक्षिण में स्थापित ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम मंदिर।इतिहास और आध्यात्म की ध्वजा थामे शहर से निकली परंपरा की गंगा रामेश्वर ज्योतिर्लिंग का अभिषेक कर रही है। होलकर शासनकाल में पूजा की जो परंपरा यहां शुरू की गई थी, वह आज भी निभाई जा रही है।
मालूम हो कि अहिल्याबाई होलकर ने देश भर में धार्मिक स्थलों पर मंदिरों का जीर्णोद्धार, घाटों व कुएं-बावड़ी का निर्माण तो कराया ही, साथ ही ज्योतिर्लिंगों की पूजा की विशेष व्यवस्था भी की। इसमें से कई व्यवस्थाएं समय के साथ थम गईं, लेकिन अभी तक जो परंपरा जारी है, उसमें रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पूजा के लिए अहिल्याबाई द्वारा स्थापित किए गए खासगी ट्रस्ट से ही गंगाजल पहुंचाया जाता है।
जानकारी हो कि खासगी ट्रस्ट द्वारा रामेश्वरम में अभिषेक के लिए वर्षभर अभिषेक के लिए गंगाजल पहुंचाया जाता है तो देवगुराड़िया मंदिर में आज भी शिवरात्र पर भक्तों का मेला लग रहा है। खासगी ट्रस्ट मंदिर के प्रबंधक ने कहा कि अहिल्याबाई के शासनकाल से ही यह परंपरा निभाई जा रही है। हिंदू नववर्ष के प्रारंभ होने पर करीब 20 लीटर गंगाजल ट्रस्ट द्वारा रामेश्वरम भेजा जाता है। इसका खर्च ट्रस्ट ही वहन करता है।
कैप्टन सीई लुआर्ड के 'इंदौर स्टेट गजेटियर 1896' में इस बात का उल्लेख है कि देवगुराड़िया में महाशिवरात्रि पर मेला लगता है। तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब द्वारा कंपेल के कानूनगो को मेले के हर दुकानदार से कर वसूली का अधिकार दिया गया था। इसी गजेटियर में उल्लेख है कि इंदौर होलकर रियासत में रेलवे (1874) का कार्य शुरू हुआ तो इसी पहाड़ी से खुदाई कर निर्माण सामग्री ले जाई गई और देवी अहिल्याबाई ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। 'महेश्वर दरबाराची बातमी पत्रे' में देवगुराड़िया के गरुड़ तीर्थ का पवित्र स्थल के नाम से उल्लेख मिलता है। यहां का शिवलिंग गुटकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। तत्कालीन होलकर राजा महाशिवरात्रि के मौके पर इस मंदिर में दर्शन करने आते थे। उन्हें गार्ड आफ आनर दिया जाता
इतिहासकार स्व. गणेश मतकर के संग्रह से उनके बेटे के अनुसार विवाह के बाद जब पहली बार अहिल्याबाई इंदौर आ रही थीं, तो वे पहले कंपेल में ही रुकी थीं। कंपेल तब परगना हुआ करता था और इंदौर कस्बा था। मांडू के सुल्तान से समझौते के तहत पेशवा ने मल्हारराव होलकर को यहां की सूबेदारी दी थी। जब पहली बार अहिल्याबाई कंपेल आई थीं, तब देवगुराड़िया शिव मंदिर में उन्होंने पूजा की थी। वे वहां अपनी सास गौतमाबाई के साथ पूजा करने जाती थीं और बाद में उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
इतिहास की जानकार शर्वाणी के अनुसार महेश्वर से शासन करने के दौरान जब भी अहिल्याबाई इंदौर आती थीं, तब उनका पड़ाव छत्रीबाग में होता था, लेकिन वे देवगुराड़िया मंदिर जरूर जाती थीं। वहां वे पहले से पूजा तो करती आ रही थीं, लेकिन बाद में उन्होंने उस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
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