कम खर्च में खारे पानी को भी बनाया जा सकेगा पीने योग्य, पढ़ें कैसे होगा ये कमाल; शोध में मिली सफलता
आने वाले दिनों में खारे पानी को भी अब जल्द ही पीने लायक बनाया जा सकेगा। इसके लिए ज्यादा पैसों की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। पानी को साफ करने के लिए इस्पात संयंत्र में इस्तेमाल के बाद बेकार होकर कचरे में फेंकने योग्य जिंक और कापर आक्साइड के कणों का इस्तेमाल होगा। आइसर और एमएनआईटी जयपुर के विज्ञानियों ने शोध में इस बात की जानकारी दी है।

जेएनएन, भोपाल। अब वह दिन दूर नहीं जब पीने के स्वच्छ पानी के लिए लोगों को परेशान नहीं होना पड़ेगा। खारे पानी को भी अब जल्द ही पीने लायक बनाया जा सकेगा और वह भी बिना किसी बड़े खर्च के। ऐसा इसलिए कि पानी को साफ करने के लिए इस्पात संयंत्र में इस्तेमाल के बाद बेकार होकर कचरे में फेंकने योग्य जिंक और कॉपर ऑक्साइड के कणों का इस्तेमाल होगा।
यह संभव हो सका है हेटेरोजंक्शन फोटोकेटालिस्ट के माध्यम से, जिसे इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एजुकेशन रिसर्च (आइसर) और मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी(एमएनआईटी)जयपुर के विज्ञानियों ने मिलकर तैयार किया है।
कैसे जल को किया जाता है शुद्ध?
हेटेरोजंक्शन फोटोकेटालिस्ट रासायनिक प्रतिक्रिया कर कार्बोनेट्स(जैसे कि कार्बन डाईआक्साइड और कुछ रासायनिक यौगिक) को एसिटिक एसिड में बदल देता है। इस एसिटिक एसिड को भी एक अन्य प्रक्रिया से हटाकर जल को शुद्ध किया जाता है।
शोधकर्ताओं ने इस प्रक्रिया के लिए विभिन्न प्रकाश स्रोतों का भी उपयोग किया है, जिसमें सूरज की रोशनी से लेकर विभिन्न तरंगदैर्ध्य एवं एकल रंग वाले प्रकाश(मोनोक्रोमैटिक लाइट्स) शामिल थे, ताकि प्रक्रिया के लिए सबसे उपयुक्त परिस्थितियां प्राप्त की जा सकें।
खारे जल से बनाया जा सकेगा दूसरा केमिकल
इसके माध्यम से भूमिगत खारे जल (कार्बोनेट युक्त) को शुद्ध कर सकेंगे। इस शोध कार्य के निदेशक और आइसर के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डा. शंकर चाकमा ने बताया कि इस प्रक्रिया के माध्यम से खारे जल से कार्बोनेट को इस्तेमाल करके उससे दूसरा महत्वपूर्ण केमिकल बनाया जा सकता है।
डॉ. चाकमा का कहना है कि एक अनुमान के मुताबिक, जल्द ही दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी पीने के पानी की कमी का सामना करेगी। इसी को ध्यान में रखकर इस शोध को आगे बढ़ाया है। यह शोध भोपाल आईसर के डॉ. शंकर चकमा और एमएनआईटी जयपुर डॉ. सुमित सोनकर और डॉ. मुकेश जैन के मार्गदर्शन में शोधार्थी रोहित फोगाट के नेतृत्व वाले एक एक समूह ने किया है।
इसका प्रकाशन अमेरिका अंतरराष्ट्रीय जर्नल एसीएस सस्टनेबल केमिस्ट्री एंड इंजीनियरिंग में हुआ है। विज्ञानियों का कहना है कि यह शोध पर्यावरणीय स्थिरता और औद्योगिक नवाचार दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। यह इस्पात उद्योग के कचरे को एक मूल्यवान रासायनिक पदार्थ में बदल देगा। इससे कचरे को कम करने, प्रदूषण को घटाने और ऐसिटिक एसिड जैसे रासायनिक पदार्थों का उत्पादन करने का एक बेहतर तरीका बनाने में मदद मिलेगी।
ये है हेटेरोजंक्शन फोटोकेटालिस्ट
गैल्वनाइज स्टील के उत्पादन के दौरान निकले जिंक कणों में कापर कणों को मिलाकर हेटेरोजंक्शन फोटोकेटालिस्ट बनाया जाता है। यह कार्बोनेट युक्त पानी के साथ प्रतिक्रिया कर एसिटिक एसिड बनाता है। यह पानी के साथ प्रतिक्रिया कर कार्बोनेट जैसे खराब तत्वों को बाहर निकाल देता है।
ऐसे काम करेगी यह तकनीक
यह फोटोकेटालिस्ट पावडर के रूप में होगा। इसे कार्बोनेट वाले पानी के कंटेनर में डाल देंगे। इसके बाद मोनोक्रोमैटिक लाइट्स (ग्रीन लाइट्स) 525 नैनोमीटर का उपयोग करने के बाद यह रसायनिक प्रक्रिया होगी। इस प्रक्रिया से करीब चार घंटे में पानी पीने लायक हो जाएगा।
केमिकल इंजीनियरिंग विभाग आईसर के सहायक प्रोफेसर डॉ. शंकर चाकमा ने कहा कि इस शोध में कार्बोनेटेड जल से एसिटिक एसिड बनाया गया है, साथ ही अन्य प्रक्रिया अपनाकर एसिटिक एसिड को हटाकर जल को पीने लायक बनाया जा सकता है।यह अभी तक की काफी सस्ती एवं भविष्य में बड़े पैमाने पर की जा सकने वाली प्रक्रिया है।

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