Poet Bashir Badr Birthday: 86 वर्ष के हुए पद्मश्री सम्मानित शायर बशीर बद्र, जानें उनके जीवन से जुड़ा दिलचस्प किस्सा
Poet Bashir Badr Birthday शायर बशीर बद्र पिछले साल की तरह इस बार भी अपना जन्मदिन नहीं मनाएंगे। देशभर से उनके चाहने वालों के फोन आ रहे हैं लेकिन कवि के परिजन उन्हें भोपाल न आने की सलाह दे रहे हैं।

भोपाल, जेएनएन। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित शायर बशीर बद्र की कविता में बरसों पहले लिखी यह बात आज के हालात पर एकदम सटीक बैठती है कि, ये नये मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो, कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से... इस प्रसिद्ध उर्दू शायर का आज 86वां जन्मदिन है और कोरोना संक्रमण के कारण सामाजिक दूरी की पाबंदियों को देखते हुए वह लगातार दूसरे साल अपने जन्मदिन पर अपनों से नहीं मिलेंगे। उनके जन्मदिन पर कोई कार्यक्रम नहीं होगा। देशभर से उनके चाहने वालों के फोन आ रहे हैं, लेकिन कवि के परिजन उन्हें भोपाल न आने की सलाह दे रहे हैं। लोगों को इस आपदा की घड़ी में जन्मदिन आनलाइन मनाने और दान करने की सलाह दी जा रही है।
डा. बशीर बद्र की पत्नी डॉ राहत बद्र ने बताया कि कोरोना काल से पहले वह अपना जन्मदिन अपने घर पर मनाते थे और देश भर से उनके प्रशंसक उनके पास आते थे, लेकिन दो साल से ऐसा नहीं है। डाक्टर ने उन्हें किसी बाहरी व्यक्ति से न मिलने की सलाह दी है। हम स्वयं भी गरीबों को खाने-पीने का सामान और गर्म कपड़े दान कर जन्मदिन मनाएंगे। बता दें कि बशीर बद्र का जन्म 15 फरवरी 1936 को फैजाबाद में हुआ था। उनकी गिनती देश के शीर्ष उर्दू शायरों में होती है। फैजाबाद से मेरठ और मेरठ जाने के बाद अब वह पुराने शहर भोपाल (शहीद गेट के पास) के निवासी हैं, जहां वह अपनी पत्नी और बेटे तैयब बद्र के साथ रहते है। वह पिछले कई सालों से डिमेंशिया नाम की बीमारी से पीड़ित हैं। पढ़ने-लिखने की बात तो दूर अब वे अपने परिवार वालों से भी बात नहीं कर पा रहे हैं। उनकी याददाश्त चली गई है।
डा राहत बद्र ने बताया कि डाक्टर के निर्देशानुसार हम तरनम से उनकी ग़ज़लें पढ़ते हैं और सुनाते हैं, तो उन्हें अच्छा लगता है। वे याद करते हैं और कभी-कभी जब वे याद करते हैं तो हमारे साथ गाते हैं। अपनी शायरी बोलने की कोशिश करते हैं। यह उनकी याददाश्त वापस लाने की एक थेरेपी है।
विश्वविद्यालय में उनके लिए अलग से प्रश्न पत्र बनाया गया
डा राहत बद्र ने बताया कि बशीर बद्र जब स्कूल में पढ़ते थे तो उनकी गजलें मशहूर हो जाती थीं। 1969 में जब बशीर बद्र ने अलीगढ़ विश्वविद्यालय में उर्दू में एमए करने के लिए प्रवेश लिया तो वहां के पाठ्यक्रम में उनकी ग़ज़लें पहले से ही पढ़ाई जा रही थीं। जब वे एमए करने गए तो लोगों को पता चला कि मशहूर शायर अभी एमए पास नहीं हुआ है और यूनिवर्सिटी में इस बात की चर्चा थी कि क्या वो अपनी ग़ज़ल पढ़कर वही परीक्षा देंगे। तब उनके प्रोफेसर ने कहा था कि ऐसा नहीं होगा। हम उनके लिए अलग पेपर बनाएंगे। उनकी ग़ज़लें सिखाई जाती रहेंगी, लेकिन वह अपनी ग़ज़लों की परीक्षा नहीं लेंगे। फिर उनके लिए एक अलग पेपर बनाया गया। बशीर बद्र ने पेपर दिया और टाप भी किया, बाद में उन्होंने अलीगढ़ विश्वविद्यालय से ही पीएचडी की।
शेर और ग़ज़ल को दिया नया अंदाज़
डा. बशीर बद्र ने सात साल की उम्र से ही ग़ज़ल लिखना शुरू कर दिया था, लेकिन 1980 के बाद उनकी रचनाएं बहुत चर्चा में आईं। बाद में उन्हें साहित्य में उनके योगदान के लिए 1999 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। उनका पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है। वह आम आदमी के कवि हैं। उन्होंने अपनी शायरी और ग़ज़लों में अपने दर्द, दर्द और भावनाओं को बहुत खूबसूरती और शालीनता से व्यक्त किया है। उनके बारे में भी
कहा जाता है कि उन्होंने उर्दू साहित्य में शायरी और ग़ज़लों को एक नई शैली और स्वर दिया। इसलिए उन्हें महबूब शायर कहा जाता है।
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