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    Navratri 2022: घट स्थापना का क्यों है विशेष महत्व, चतुर्ग्रही योग में आज हो रही है मां के दुर्गा की कलश स्थापना

    By JagranEdited By: PRITI JHA
    Updated: Mon, 26 Sep 2022 11:38 AM (IST)

    शक्ति आराधना का पर्व शारदीय नवरात्रि प्रारंभ होने जा रहा हैज्योतिषाचार्य के अनुसार आज शुभ योग यानी चतुर्ग्रही योग बन रहा है कन्या राशि मे सूर्य बुध शुक्र व चंद्र एक साथ रहेंगे। मां दुर्गा के भक्त इन नौ दिनों में उपवास रखते हुए मां शक्ति की साधना करते हैं।

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    घट स्थापना का क्यों है विशेष महत्व,चतुर्ग्रही योग में आज हो रही है मां के दुर्गा की कलश स्थापना

    ग्वालियर, जागरण ऑनलाइन डेस्क। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना या घट स्थापना का विशेष महत्व होता है। ये प्रतिपदा के दिन शुभ मुहूर्त में विधि विधान से की जाती है। शारदीय नवरात्रि पर देवी दुर्गा की पूजा और साधना की जाती है। इसके अलावा देवी के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार आज शुभ योग यानी चतुर्ग्रही योग बन रहा है, आज कन्या राशि मे सूर्य, बुध, शुक्र व चंद्र एक साथ रहेंगे। मां दुर्गा के भक्त इन नौ दिनों में उपवास रखते हुए मां शक्ति की साधना करते हैं।

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    नवरात्रि की प्रतिपदा

    जानकारी हो कि नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि 26 सितंबर को सुबह 03 बजकर 23 मिनट से शुरू हो गई जो 27 सितंबर को सुबह 03 बजकर 08 मिनट पर खत्म होगी। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 26 सितंबर को सुबह 6 बजकर 11 मिनट से लेकर 7 बजकर 38 मिनट तक हीं रहा । इसके अलावा शुभ चौघरिया सोमवार सुबह 09:18 से 10:48, इस दिन अभिजीत मुहूर्त में आज दोपहर 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 54 मिनट पर किया जा सकता है। लाभ दोपहर 03:18 से 04:48 तक, अमृत शाम 04:48 से 06:18 तक। मालूम हो कि राहुकाल प्रातः 7:38 से प्रातः 09:08 तक होने के कारण राहुकाल में कोई भी शुभ कार्य वर्जित होते है।

    कलश स्थापना

    नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है। घटस्थापना के लिए कुछ सामग्री आवश्यक होती है जैसे चौड़े मुंह का मिट्टी का एक बर्तन, पवित्र मिट्टी, कलश, जल, आम या अशोक के पत्ते, सुपारी, जटा वाला नारियल, साबुत चावल, जौ, लाल वस्त्र, पुष्प, सप्त धान्य सामग्री ।

    मालूम हो कि नवरात्रि के प्रथम दिन शुभ मुहूर्त में ईशान कोण में घट अर्थात मिट्टी का घड़ा स्थापित किया जाता है। जहां घट स्थापित करना है वहां एक चौकी रख कर उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और फिर उस पर दुर्गा मां की तस्वीर या मूर्ति रखे। वहीं, इस मूर्ति के दाहिनी ओर गंगा जल छिड़क कर, मिट्टी के पात्र में पहले थोड़ी सी मिट्टी डालें और फिर जौ डालें। एक परत मिट्टी की फिर बिछा दें और जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें। जल से पात्र भर कर इस पात्र को स्थापित करके पूजन करें। कलश में गंगा जल भरें और इसमें आम के पत्ते, सुपारी, हल्दी की गांठ, दुर्वा, पैसे और आम के पत्ते डालें।

    जानकारी के अनुसार दुर्गा की मूर्ति के दाईं तरफ कलश को स्थापित करके दीप जलाकर पूजा करें। कलश पर मौली बांधे, मौली बंधा नारियल रखें। यदि कलश के ऊपर ढक्कन लगाना है तो ढक्कन में चावल भर दें और यदि कलश खुला है तो उसमें आम के पत्ते रखें। अब मां दुर्गा का आह्वान करते हुए आवाहन करें कि 'हे समस्त देवी-देवता, आप सभी 9 दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों।'

    शैलपुत्री की पूजा

    मालूम हो कि मां शैलपुत्री की पूजा के साथ ही तमाम पूजा पंडाल एवं घरों में सादर नवरात्रि उत्सव शुरू हो गया है। तमाम शहरों में आज बड़े ही धूमधाम के साथ नवरात्रि उत्सव मनाया जा रहा है। नवरात्रि का आज पहला दिन होने से विभिन्न मंदिरों में भक्तों की खासी भीड़ देखी गई। सुबह सुबह के समय लोगों ने मंदिर जाकर दीप प्रज्ज्वलित कर मां के साथ विभिन्न देवी देवताओं की पूजा अर्चना किए हैं।

    जानकारी के मुताबिक मां दुर्गा के नौ रुपों में पहला रुप है शैलपुत्री का। नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना के साथ देवी के इसी रुप की पूजा की गई है। मां का यह रुप सौम्य और भक्तों को प्रसन्नता देने वाला है। ऐसी मान्यता है कि देवी पार्वती पूर्व जन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थी। दक्ष के यज्ञ कुंड में जलकर देवी सती ने जब अपने प्राण त्याग दिए तब महादेव से पुनः मिलन के लिए उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रुप में जन्म लिया।