एमपी में सभी नियमित कर्मचारी होंगे स्थायी, कैबिनेट की मंजूरी
मध्य प्रदेश सरकार ने शासकीय सेवक (अस्थायी एवं अर्ध-स्थायी सेवा) नियम, 1960 को खत्म कर दिया है। अब प्रदेश में स्थायी और अस्थायी का भेद खत्म होने से सभी ...और पढ़ें

डिजिटल डेस्क, भोपाल। प्रदेश सरकार ने नियमित कर्मचारियों से जुड़े एक अहम फैसले में बड़ा बदलाव करते हुए 1960 के शासकीय सेवक (अस्थायी एवं अर्ध-स्थायी सेवा) नियम को समाप्त करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही अब प्रदेश की नियमित सेवा में स्थायी और अस्थायी का भेद खत्म हो जाएगा और सभी कर्मचारी स्थायी श्रेणी में माने जाएंगे।
इस निर्णय से कर्मचारियों को सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि परिवीक्षा अवधि पूरी होने के बाद स्थायीकरण में होने वाली देरी समाप्त होगी और वेतनवृद्धि का लाभ समय पर मिल सकेगा। यह फैसला वित्त विभाग के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया।
वित्त विभाग के अधिकारियों के अनुसार, मंत्रालय सेवा सहित लगभग सभी विभागों में दो से पांच प्रतिशत तक कर्मचारी अब तक अस्थायी श्रेणी में थे। अस्थायी होने के कारण उन्हें कई बार प्रतिनियुक्ति, अन्य सेवाओं में अवसर और अवकाश संबंधी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता था। कई विभागों में प्रतिनियुक्ति के लिए न्यूनतम पांच वर्ष की नियमित सेवा की शर्त होने से अस्थायी कर्मचारी वंचित रह जाते थे।
अब सीमित अवधि की परियोजनाओं को छोड़कर स्थायी और अस्थायी पदों की पात्रता, सेवा शर्तों और सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली सुविधाओं में कोई खास अंतर नहीं रह गया था। इसके बावजूद अलग-अलग नियम होने से विभागों को इन्हें लागू करने में कठिनाई आती थी और कई मामले न्यायालयों तक भी पहुंचे। इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने यह भेद समाप्त करने का निर्णय लिया।
कार्यभारित और आकस्मिक पद भी होंगे खत्म
कैबिनेट बैठक में वित्त विभाग के उस प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई, जिसके तहत निर्माण विभागों में कार्यभारित और आकस्मिकता के पद समाप्त किए जाएंगे। सरकार का तर्क है कि अब बड़े निर्माण कार्य विभागों के बजाय निर्माण एजेंसियों के माध्यम से कराए जा रहे हैं, इसलिए इन पदों की आवश्यकता नहीं रही। प्रस्ताव के अनुसार, वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों की सेवा पूरी होने के बाद ये पद स्वतः समाप्त हो जाएंगे।
हालांकि सामान्य प्रशासन विभाग ने इस पर आपत्ति जताई थी, लेकिन विस्तृत चर्चा के बाद वित्त विभाग के तर्कों को स्वीकार करते हुए कैबिनेट ने प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। सरकार का कहना है कि पात्र कर्मचारियों के नियमितीकरण में किसी तरह की बाधा नहीं आएगी और न्यायालय के आदेशों का पालन भी सुनिश्चित किया जाएगा।

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