MP chunav 2023: BJP उम्मीदवारों की चौथे सूची पर सबकी नजर, इनकी दावेदारी पर फंस सकता है पेंच
हीरेंद्र सिंह बंटी को भारतीय जनता पार्टी में लाने के पीछे कहीं न कहीं भाजपा का खेला हुआ दांव ही है। इसकी वजह भी साफ है कि हीरेंद्र कभी किले से जुड़े ह ...और पढ़ें

भोपाल, जेएनएन: आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी की पहली सूची ने चांचौड़ा विधानसभा क्षेत्र में खूब शोरगुल मचाया। हालात ऐसे बने कि बगावत तक की नौबत आ गई। भाजपा पार्टी की पूर्व विधायक ममता मीना बीजेपी छोड़कर‘आप’ की हो गईं। इसी बीच सोमवार रात भाजपा ने दूसरी सूची जारी कर फिर सबको चौंका दिया। दो साल पहले कांग्रेस पार्टी से भाजपा में आए हीरेंद्र सिंह बंटी को आकांक्षी विधानसभा सीट राघौगढ़ से उम्मीदवार बनाया है।
हालांकि, सियासी गलियारों में तभी इस बात के संकेत मिलने लगे थे। जिस पर अब पर भी भाजपा शीघ्र नेतृत्व ने भी अपनी मुहर लगा दी है। जिले के दो विधानसभा क्षेत्रों में नए चेहरों के उम्मीदवारी घोषित होते ही भाजपा संगठन के पुराने चेहरे पशोपेश में पड़ गए हैं कि उन्हें भाजपा संगठन टिकट वितरण में तरजीह देगा या फिर से नए चेहरों को मौका।
आप की सदस्यता लेकर सियासी मैदान में कूदने की तैयारी
दरअसल, भाजपा ने जिले की चार में से दो विधानसभा क्षेत्र चांचौड़ा और राघौगढ़ को आकांक्षी विधानसभा में शामिल किया है। इसके साथ ही उम्मीदवार भी घोषित कर दिए। पहली सूची में चांचौड़ा से प्रियंका मीना को उम्मीदवार बनाया गया। इसके बाद पूर्व विधायक ममता मीना विरोध में उतर आईं। इतना ही नहीं जब पार्टी में उनकी प्रत्याशी बदले जाने की मांग नहीं मानी गई, तो उन्होंने पार्टी को ही अलविदा कहकर आम आदमी पार्टी की सदस्यता लेकर सियासी मैदान में कूदने की तैयारी कर ली हैं।
इसी बीच भाजपा ने सोमवार रात अपनी दूसरी सूची जारी करते हुए राघौगढ़ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह के करीबी और पिछले दो चुनावों में हमकदम बनकर रहे हीरेंद्र सिंह बंटी को प्रत्याशी घोषित कर दिया।
जब बंटी ने थामा भाजपा का दामन
भाजपा प्रत्याशी हीरेंद्र सिंह बंटी की बात करें, तो एक समय था जब वह जयवर्धन सिंह के काफी करीबी हुआ करते थे। इसकी वजह उनके पिता मूलसिंह दादाभाई की आस्था राघौगढ़ किले यानी पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह से जुड़ी थी। यही वजह रही कि मूल सिंह न केवल कांग्रेस जिलाध्यक्ष, बल्कि दो बार विधायक भी चुने गए थे। यहीं सिलसिला नई पीढ़ी जयवर्धन और हीरेंद्र के बीच भी चलता रहा।
लेकिन दो साल पहले कुछ ऐसा घटनाक्रम हुआ कि बंटी ने जयवर्धन का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था, तभी से बंटी को उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा था। अब भाजपा संगठन ने भी भरोसा जताया है।
भाजपा ने बंटी पर खेला दांव
राजनीति के जानकार बताते हैं कि बंटी को भाजपा में लाने के पीछे कहीं न कहीं भाजपा का खेला हुआ दांव ही है। इसकी वजह भी साफ है कि हीरेंद्र कभी किले से जुड़े होने के साथ ही जयवर्धन के भी काफी करीबी रहे हैं। खास बात यह भी कि उन्होंने 2013 और 2018 के चुनाव में जयवर्धन सिंह के लिए मेहनत की। उन्हें राघौगढ़ विधानसभा सीट के पोलिंग बूथ से लेकर हर दांव-पेंच भी मालूम हैं। इससे भाजपा को लगता है कि पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है।
‘किले’ के कब्जे में रही राघौगढ़ विस सीट
राघौगढ़ विधानसभा सीट पर अब तक ‘किले’ का ही कब्जा रहा है, जहां पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, अनुज लक्ष्मण सिंह और समर्थक मूलसिंह दादाभाई के बाद वर्तमान में नई पीढ़ी जयवर्धन सिंह (दिग्विजय सिंह के पुत्र) विधायक हैं। खास बात यह कि भाजपा तमाम प्रयोग करने के बाद भी ‘किले’ का तिलिस्म नहीं तोड़ पाई। इसके लिए भाजपा स्थानीय और बाहरी उम्मीदवारों को भी मैदान में उतार चुकी है, तो 2003 में वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उक्त सीट भाजपा के लिए सपना ही बनी हुई है।
गुना और बमोरी का टिकट फाइनल होना बाकी
भाजपा ने जिले की चार में से दो विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। जबकि गुना और बमोरी के टिकट फाइनल होना बांकी है। यूं तो दोनों ही सीट पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेसी शासन काल से ही पकड़ रही है, लेकिन अब भाजपा में आने के बाद क्या समीकरण बनेंगे, यह तो पार्टी की आने वाली सूची ही तय करेगी। लेकिन इतना जरूर है कि अगली सूची आने से पहले दावेदारों की धड़कनें जरूर बढ़ी गई हैं।
भाजपा ने चांचौड़ा और राघौगढ़ विस सीट को आकांक्षी विधानसभा में शामिल किया है। दोनों ही सीट को जीतने पार्टी की रणनीति तैयार है। राघौगढ़ सीट पर विशेष फोकस है, जिसे हर हाल में जीतेंगे। - धर्मेंद्रसिंह सिकरवार, जिलाध्यक्ष, भाजपा
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