मध्य प्रदेश हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह भी कह चुके हैं कि चिकित्सक दवाओं का नाम हिंदी में लिखें तो क्या दिक्कत है। पर्चे में दवाई का नाम लिखने से पहले ‘आरएक्स’ लिखे जाने की जगह ‘श्रीहरि’ लिखने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

भोपाल, संजय मिश्र। मध्य प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जिसने सबसे पहले हिंदी में चिकित्सा शिक्षा की शुरुआत की है। केंद्र सरकार की सहमति से लिया गया शिवराज सिंह चौहान की सरकार का यह दूरगामी निर्णय है। इससे हिंदी का प्रभाव तो बढ़ेगा ही, अंग्रेजी के परिवेश से इतर ग्रामीण जीवन में बुनियादी शिक्षा लेने वाले छात्रों के चिकित्सा की पढ़ाई करने के सपने भी साकार हो सकेंगे। वास् व में चिकित्सा शिक्षा की हिंदी में पढ़ाई इतिहास के करवट लेने जैसा है। जिस देश-प्रदेश में लोगों का सोच यह बन गया हो कि नर्सरी से ही बच्चा अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाई करे, वहां चिकित्सा शिक्षा हिंदी में सुनिश्चित कराने का निर्णय कम चुनौतीपूर्ण नहीं है।
एक तरह से यह युगांतकारी बदलाव की शुरुआत है। हमारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति तो यही है कि हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं में भी शिक्षा और संवाद आरंभ होना चाहिए। इससे न केवल अपनी भाषा, बल्कि देश की एकता भी मजबूत होगी। क्षेत्रीय भाषाओं की राष्ट्रव्यापी स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। भारत की प्रमुख आंतरिक समस्याओं में भाषा विवाद भी एक बड़ी समस्या है। उत्तर-दक्षिण में संवाद की कमी का मुख्य कारण भाषा की समस्या ही है।
लंबे समय से राजनीति इस समस्या का समाधान तलाशने में विफल रही है। यूं कहें कि राजनीति ने भाषा विवाद का अंत करने की कभी ठीक से पहल ही नहीं की। जब भी हिंदी की बात उठी, दक्षिण से विरोध के स्वर उठे। वहां के राजनेता आम जन में हिंदी का डर पैदा करके अपनी राजनीतिक रोटी सेकते। इस तरह भाषा को लेकर उत्तर और दक्षिण हमेशा से दो ध्रुव बने रहे। अब भी वे ऐसे ही हैं, परंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति ने जो रास्ता चुना है, उससे साफ है कि वह दिन दूर नहीं जब उत्तर दक्षिण के बीच भाषा विवाद की सीमारेखा मिट जाएगी। इसकी शुरुआत हो चुकी है।
हिंदी फिल्मों के प्रति दक्षिण के लोगों में उत्साह बढ़ना सकारात्मक संकेत है तो हिंदी क्षेत्र में दक्षिण की क्षेत्रीय भाषाओं में बनी फिल्मों की लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि आम जन भाषा विवाद से बाहर निकलकर संवाद और सहयोग का परिवेश बनाना चाहते हैं। वे भाषा के स्तर पर उत्तर-दक्षिण का भेद मिटाना चाहते हैं। इस कड़ी में मध्य प्रदेश ने चिकित्सा शिक्षा हिंदी में सुलभ कराने की शुरुआत करके इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ा दिया है।
हिंदी में चिकित्सा शिक्षा की पढ़ाई आरंभ करवाते हुए प्रदेश ने देश ही नहीं, बल्कि समग्र विश्व को यह संदेश दिया है कि हर देश को अपनी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में ही रखना चाहिए। इसका संदेश यह भी है कि हमें चिकित्सा शिक्षा के साथ साथ बच्चों की शिक्षा के आरंभिक समय से ही हिंदी के महत्व को स्थापित करना होगा। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 16 अक्टूबर को भोपाल में चिकित्सा शिक्षा की हिंदी पुस्तकों का विमोचन करते हुए कह चुके हैं कि मातृभाषा से ही बेहतर बौद्धिक विकास हो सकता है। उन्होंने कहा था कि सोचने, समझने, तर्क करने, निर्णय पर पहुंचने की बेहतर क्षमता मातृभाषा से पढ़ाई करने पर ही आती है।
पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण करने वाले कई लोग हिंदी में चिकित्सा या इंजीनियरिंग की पढ़ाई को अच्छा नहीं मान रहे हैं, लेकिन शिवराज सरकार ने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति से इस दिशा में नया अध्याय लिख दिया है। आलोचना से डरे बिना दूरदर्शिता का परिचय दिया है। बदलाव धीरे-धीरे ही आता है और प्रदेश ने बदलाव की शुरुआत की है। हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं को आधिकारिक रूप से महत्व देने का निर्णय ले लेना ही काफी नहीं है, बल्कि इसके लिए निरंतर प्रयास करने की भी जरूरत है। देश में आइआइटी जैसी प्रतियोगी परीक्षाएं भी क्षेत्रीय भाषाओं में हो रही हैं, परंतु हिंदी में पुस्तकों की उपलब्धता अभी उस तरह की नहीं है जैसी होनी चाहिए।
चिकित्सा शिक्षा के लिए हाल ही में जिन पुस्तकों का लोकार्पण किया गया है, उनमें हिंदी के नाम पर देवनागरी लिपि का प्रयोग तो हुआ है, परंतु पुस्तक में बहुतायत शब्द अंग्रेजी के ही हैं। ऐसे शब्द भी अंग्रेजी के ही लिखे गए हैं जिनका आसान हिंदी शब्द उपलब्ध है। इससे विद्यार्थियों की समझ तो निश्चित रूप से बढ़ेगी, परंतु हिंदी समृद्ध नहीं हो पाएगी। हमें इसे भी समझना होगा। हिंदी के शब्द अधिक से अधिक लोकप्रिय हों, इसका भी प्रयास करना होगा।
मध्य प्रदेश को हिंदी क्षेत्र कहा जाता है। हिंदी के विकास में इस प्रदेश ने बड़ा योगदान दिया है। यदि देश के विभिन्न राज्यों के प्रशासनिक कामकाज में हिंदी के प्रयोग की समीक्षा करें तो मध्य प्रदेश एवं बिहार ऐसे राज्य के रूप में अधिक प्रभावी दिखते हैं जिन्होंने अंग्रेजी एवं उर्दू के स्थान पर आम जन की समझ में आने वाले हिंदी के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया है। वर्ष 2015 में भोपाल में हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में भी मध्य प्रदेश ने हिंदी को प्रोत्साहन देने का संकल्प व्यक्त किया था। इसके बाद से ही यह आशा जगी थी कि मध्य प्रदेश हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह भी कह चुके हैं कि चिकित्सक दवाओं का नाम हिंदी में लिखें तो क्या दिक्कत है। पर्चे में दवाई का नाम लिखने से पहले ‘आरएक्स’ लिखे जाने की जगह ‘श्रीहरि’ लिखने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। मुख्यमंत्री के अनुरोध के बाद लगभग सभी शहरों में अनेक चिकित्सक इसी अनुरूप पर्चे लिखने लगे हैं। वे श्रीहरि से इसका आरंभ करते हैं। आशा की जा सकती है कि इस दिशा में धीरे धीरे ही सही, परंतु व्यापक परिवर्तन हो सकता है।
[स्थानीय संपादक नवदुनिया, भोपाल]
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