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    Madhya Pradesh: प्राइवेट डॉक्टरों के पास पहुंचे रहे राज्य के 70 प्रतिशत रोगी, प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों से दूर हैं मरीज

    By Jagran NewsEdited By: Piyush Kumar
    Updated: Thu, 14 Dec 2023 05:24 PM (IST)

    मध्य प्रदेश में 70 प्रतिशत रोगी निजी डॉक्टरों के पास ही जाते हैं। सरकार के स्तर पर अब तक इस तरह के कोई निर्देश जारी नहीं किए गए कि निजी डॉक्टर जेनरिक और ब्रांडेड दोनों तरह की दवाएं लिखेंगे। सरकारी स्तर पर दूसरी बड़ी कमी यह है कि प्रदेश के बड़े अस्पताल मसलन मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों और जिला अस्पतालों में भी प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र नहीं हैं।

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    मध्य प्रदेश के सभी निजी डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं ही लिख रहे

    शशिकांत तिवारी, भोपाल: प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों में ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 10 गुना तक सस्ती, लेकिन अच्छी गुणवत्ता की जेनरिक दवाएं मिल जाती हैं, बावजूद इसके स्थिति यह है कि मध्य प्रदेश के सभी निजी डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं ही लिख रहे हैं। भले ही मरीज की सामर्थ्य खरीदने की न हो।

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    मध्य प्रदेश में 70 प्रतिशत रोगी निजी डॉक्टरों के पास ही जाते हैं, इसके बाद भी यह स्थिति है। सरकार के स्तर पर अब तक इस तरह के कोई निर्देश जारी नहीं किए गए कि निजी डॉक्टर जेनरिक और ब्रांडेड दोनों तरह की दवाएं लिखेंगे। सरकारी स्तर पर दूसरी बड़ी कमी यह है कि प्रदेश के बड़े अस्पताल, मसलन मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों और जिला अस्पतालों में भी प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र नहीं हैं।

    मध्य प्रदेश में 302 जन औषधि केंद्र

    इन अस्पतालों में लगभग 300 तरह की दवाएं ही नि:शुल्क मिलती हैं। रोगियों को बाकी दवाएं बाजार से ब्रांडेड खरीदनी पड़ती हैं। बता दें, मध्य प्रदेश में 302 जन औषधि केंद्र हैं, जिसमे औसतन 400 तरह की दवाएं ही मिलती हैं, जबकि इन केंद्रों में 1800 तरह की दवाएं और 285 प्रकार के सर्जिकल उपकरण रखे जा सकते हैं। प्रदेश के सभी केंद्र एक वर्ष में कुल लगभग 10 करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं।

    यहां सुधार की जरूरत

    मध्य प्रदेश में जन औषधि केंद्रों में मिलने वाली दवाएं व सर्जिकल उपकरण के लिए कोई वितरण नहीं होने से ऑर्डर देने के एक सप्ताह से 10 दिन में दवाएं मिल पाती हैं।

    कई केंद्र संचालक जन औषधि के अलावा दूसरी जेनरिक दवाएं भी बेचते हैं। वह वही दवा रोगी को देते हैं, जिससे उन्हें अधिक लाभ मिलता है।

    ज्यादा बिकने वाली दवाओं की नियमित आपूर्ति नहीं हो पाती। केंद्रों को आर्डर पर लगभग 80 प्रतिशत दवाएं ही मिल पाती हैं।

    सरकार लोगों को समझाने में नाकाम रही है कि जन औषधि केंद्रों में मिलने वाली दवाएं डब्ल्यूएचओ जीएमपी (गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस) तहत प्रमाणित कंपनियों द्वारा बनाई जाती हैं।

    औषधि प्रशासन की नियमित जांच में भी वह गुणवत्ता में खरी उतर रही हैं।

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