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    Sandhya Verma Story: जीवन ठिठका, लेकिन नवाचार से फिर सजाया संसार

    By Jagran NewsEdited By: Devshanker Chovdhary
    Updated: Tue, 17 Oct 2023 06:40 PM (IST)

    यदि कुछ करने का जज्बा हो तो किसी भी आयु में शुरुआत की जा सकती है। जीवन भले संघर्षमय हो लेकिन सीखने और अलग करने की ललक हो तो राह निकल ही आती है। ऐसा ही कर दिखाया है भोपाल की निवासी संध्या वर्मा ने।

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    संध्या वर्मा अपनी फैक्ट्री में तैयार उत्पादों के साथ। (फोटो सौजन्य- संध्या वर्मा)

    अंजली राय, भोपाल। यदि कुछ करने का जज्बा हो तो किसी भी आयु में शुरुआत की जा सकती है। जीवन भले संघर्षमय हो, लेकिन सीखने और अलग करने की ललक हो तो राह निकल ही आती है। ऐसा ही कर दिखाया है भोपाल की निवासी संध्या वर्मा ने। हमेशा से कुछ रचनात्मक करने की इच्छा को उन्होंने जीवन में संघर्ष के बावजूद जीवित रखा और अवसर मिलते ही उसे पूरा कर दिखाया। कपड़ों की कतरनों से अब संध्या वर्मा ने स्वावलंबन का संसार रचा है। ढाई दर्जन महिलाओं को रोजगार भी उपलब्ध करा रही हैं।

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    वर्ष 1995 में पति से अलग होने के बाद एक वर्ष की बेटी को अकेले संभालना और करियर बनाना संध्या के लिए आसान नहीं था। अनेक उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन डटी रहीं। विज्ञान के क्षेत्र में काम करते हुए नई चीजें सीखीं। जब बेटी को पढ़ा-लिखाकर आत्मनिर्भर बना दिया तो पुराने सपने को साकार किया। लगन और मेहनत के दम पर कपड़े की कतरनों सजावटी और स्टेशनरी के उत्पाद तैयार करने वाली कंपनी खड़ी कर दी। काम को विस्तार देकर एक हजार महिलाओं को रोजगार देने का लक्ष्य बनाया है। सदैव क्रिएशन नाम की उनकी कंपनी का चार वर्ष में टर्नओवर एक करोड़ रुपये के पार हो गया है।

    छोड़नी पड़ी पीएचडी

    संध्या बताती हैं कि पीएचडी शुरू करने मुझे छह महीने ही छोड़नी पड़ा। पति चाहते थे कि मैं घर में रहूं। शिक्षक की नौकरी भी छोड़ी। मन में हमेशा से कुछ नया करने की चाह थी जो अब पूरी हुई है। कठिनाई का स्तर यह था कि जब वर्ष 2004 में भोपाल को स्थाई ठिकाना बनाने का प्रयास किया तो तलाकशुदा एकल मां को को कोई मकान देने तैयार नहीं था।

    बेकार पन्नों पर लिखी कहानी

    संध्या बताती हैं कि शिक्षक की नौकरी करते हुए उन्हें अहसास हुआ कि हर वर्ष हजारों विद्यार्थी प्रोजेक्ट बनाते थे जो बाद में व्यर्थ पड़े रहते थे। उन्होंने इन कागजों को रिसाइकिल करने का विचार किया। फिर कपड़े से भी कागज तैयार करने का प्रशिक्षण लिया। उन्होंने वर्ष 2018 में महिलाओं को प्रशिक्षण देकर काम देना शुरू किया। बेटी अब अमेरिका में डाटा साइंटिस्ट है और व्यवसाय प्रबंधन में मां की मदद करती है।

    ऐसे आया विचार

    संध्या बताती हैं कि वह विज्ञान की शिक्षिका रही हैं। बाद में विज्ञान के क्षेत्र में एक एनजीओ से जुड़ीं। वहीं देखा कि हर वर्ष हजारों विद्यार्थी प्रोजेक्ट बनाते थे जो बाद में व्यर्थ पड़े रहते थे। इन्हीं कागजों को रिसाइकिल करने के बारे में सोचा। विज्ञान के क्षेत्र से होने के कारण स्टार्टअप को लेकर शोध और नवाचार किया। इसी बीच कपड़ों की कतरनों के उपयोग पर भी प्रयोग किया। सघन अध्ययन के बाद हरियाणा से जरूरत के अनुसार मशीनें बनवाईं। शुरू में केवल स्टेशनरी आइटम तैयार होते थे। अब 100 से अधिक उत्पाद तैयार हो रहे हैं।

    दूसरे शहरों से आता कच्चा माल

    संध्या अहमदाबाद, दिल्ली व इंदौर से कपड़े की कतरन मंगवाती हैं। जरूरत के अनुसार कपड़े की कतरन और रद्दी कागज के पल्प को सही अनुपात में मिलाया जाता है। वे कहती हैं कि शुरुआत में केवल शिक्षण संस्थानों में बिक्री हुई थी। अब देश भर से काफी आर्डर मिलते हैं। वे जल्द ही वे अपनी वेबसाइट बना रही हैं, जिससे व्यापार को बढ़ा सकें।