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    पार्किंसन व अल्जाइमर के इलाज में बड़ी कामयाबी, IISER भोपाल के वैज्ञानिकों ने खोज लिया बीमारी का कारण

    Updated: Mon, 23 Dec 2024 06:46 PM (IST)

    IISER Bhopal लाइलाज मानी जाने वाली पार्किंसन और अल्जाइमर जैसी बीमारियों के इलाज को लेकर भारतीय वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च(आइसर) भोपाल के विज्ञानियों ने इन रोगों के होने के निश्चित कारणों का पता लगा लिया है। इससे उम्मीद जगी है कि जल्द ही दोनों रोगों के उपचार के लिए औषधियां विकसित कर ली जाएगी।

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    आइसर की प्रयोगशाला में दीप्तिरंजन लेंका, प्रीतिरंजन साहू, लोकनाथ रत्नाकर और डॉ अतुल कुमार। (बाएं से दाहिने)

    अंजली राय, भोपाल। पार्किंसन और अल्जाइमर को अभी लाइलाज रोग माना जाता है। आम तौर पर यह रोग 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में होने की संभावना होती है। इन दोनों रोगों का अभी कोई स्थाई इलाज नहीं है। सिर्फ इसके लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए दवा और सर्जरी जैसे उपाय किए जाते हैं।

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    इन दोनों ही रोगों को लेकर अभी भी डॉक्टर और विज्ञानी कई शोध कर रहे हैं। वहीं अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च(आइसर) भोपाल के विज्ञानियों ने इन रोगों के होने के निश्चित कारणों का पता लगा लिया है। उनके शोध से यह उम्मीद जगी है कि जल्द ही इन दोनों रोगों के स्थाई उपचार के लिए औषधियां विकसित कर ली जाएगी।

    एक करोड़ से अधिक लोग हैं पीड़ित

    अमेरिकी संस्था पार्किंसन फाउंडेशन के अनुसार विश्व में एक करोड़ लोग पार्किंसन रोग से पीड़ित हैं। महिलाओं के मुकाबले पुरुषों के इसके होने की संभावना डेढ़ गुना ज्यादा होती है। वहीं भारत में अल्जाइमर को लेकर जो आकंड़े हैं। उनके अनुसार 60 वर्ष से अधिक आयु के 7.4 प्रतिशत लोगों को यह रोग होने की संभावना होती है।

    खराब कोशिकाओं की अमरता असल वजह

    आइसर भोपाल में जैव विज्ञान विभाग के डॉ अतुल कुमार पिछले पांच साल से इसपर शोध कर रहे हैं। डॉ अतुल कुमार बताते हैं कि उनके शोध में पता चला है कि हमारे शरीर के एनर्जी सेल्स में मौजूद पार्किन प्रोटीन की बनावट में गड़बड़ी के कारण पार्किंसन बीमारी होती है। प्रोटीन की बनावट में इस गड़बड़ी की वजह से शरीर से खराब हो चुकी कोशिकाओं का मरना बंद हो जाता है। खराब हो चुकी इन कोशिकाओं की अमरता ही पार्किंसन की असल वजह है। इसके उलट अगर सामान्य कोशिकाओं के मरने की दर असामान्य रूप से बढ़ जाए तो अल्जाइमर रोग होता है।

    यूरोपीय और अमेरिकी जर्नल में प्रकाशित हुए शोध

    डॉ अतुल कुमार की देखरेख में शोधार्थी दीप्ति रंजन लेंका, शक्ति, श्रद्धा, प्रीतिरंजन और लोकनाथ की टीम ने ने पार्किन प्रोटीन के सक्रियता की दिशा में दो महत्वपूर्ण निष्कर्ष खोजे हैं। यूरोपियन ईलाइफ जर्नल में प्रकाशित उनके पहले शोध से पता चला कि कैसे एक सक्रिय पार्किन अणु क्षतिग्रस्त माइटोकोंड्रिया को अधिक कुशलता से साफ करने के लिए असक्रिय पार्किन अणुओं को सक्रिय करता है।

    (आइसर की अपनी प्रयोगशाला में दीप्ति रंजन लेंका, प्रीतिरंजन साहू, लोकनाथ रत्नाकर और पीछे खड़े डॉ अतुल कुमार। (बाएं से दाहिने))

    वहीं अमेरिकन जर्नल स्ट्रक्चर में प्रकाशित अपनी दूसरी खोज में उन्होंने पार्किन के एक नए और अधिक शक्तिशाली उत्प्रेरक की पहचान की। उन्होंने दिखाया कि कैसे मानव कोशिकाओं में अन्य समान दिखने वाले अणुओं की तुलना में इस नए एक्टिवेटर को प्राथमिकता मिलती है। इन शोधकर्ताओं ने एक गुप्त तंत्र की भी खोज की है जिसके द्वारा पार्किन में रोग पैदा करने वाला उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) पार्किन गतिविधि को बाधित करता है।

    पांच साल में पहुंच जाएंगे क्लीनिकल ट्रायल तक

    डॉ अतुल कुमार का कहना है, 'अनुवांशिक तौर पर देखें तो जब माता-पिता के जीन बच्चों में आते हैं, तब भी अगर किसी कारण से प्रोटीन की बनावट में गड़बड़ी आती है तो बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है। यदि यह पता चल जाए कि असल गड़बड़ी कहां और कैसे हो रही है तो उसकी दवा की खोज करना आसान हो जाता है। हमारे शोध से यह पता चला है कि कैसे पार्किन पर आनुवंशिक उत्परिवर्तन इसकी गतिविधि को बाधित करता है और इन्हें कैसे ठीक किया जा सकता है। उम्मीद है कि अगले पांच सालों में हम पार्किंसन और अल्जाइमर के सटीक इलाज के लिए क्लीनिकल ट्रायल स्तर तक पहुंच जाएंगे।'

    अभी तक पार्किंसन और अल्जाइमर रोग के स्थाई इलाज के लिए दवाइयां नहीं आई हैं। अगर आइसर ने इन रोगों के होने का कारण तलाश लिया है तो इस बीमारी से निजात पाने के लिए दवाओं को भी जल्द ही खोज लिया जाएगा।

    -डॉ आईडी चौरसिया, वरिष्ठ न्यूरोसर्जन