अपमान के डर से अपने आपको दलित नहीं बताते थे सलूजा
जागरण ब्यूरो, भोपाल। गुना के विधायक राजिंदर सिंह सलूजा समाज में अपमान होने के डर से यह जाहिर नहीं करते थे कि वह दलित हैं। सिर्फ इसीलिए उन्होंने अनुसूचित जाति वर्ग को प्राप्त होने वाले लाभ लेने की चेष्टा भी कभी नहीं की। सलूजा ने यह खुलासा छानबीन समिति की जांच में किया है। मगर राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने इस तर्क को नहीं माना और पूरी पड़ताल करने के बाद पाया कि सलूजा ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित गुना सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने की खातिर गलत सर्टिफिकेट दिया था। उनकी जाति अनुसूचित वर्ग में शामिल नहीं है।
छानबीन समिति ने विधायक सलूजा के जाति प्रमाणपत्र की सच्चाई जांचने के लिए गुना पुलिस को उनके बयान लेने की जिम्मेदारी सौंपी थी। सूत्रों ने बताया कि समिति की रिपोर्ट में यह बात दर्ज है कि पुलिस अधिकारी के सवाल के जवाब में सलूजा का कहना था कि समाज में अपमान न हो, इस डर से ही वह किसी को अपनी जाति नहीं बताते थे।
इस मामले में सबसे ज्यादा हैरान करने वाली स्वीकारोक्ति जाति प्रमाणपत्र जारी करने वाले अधिकारी डीके जैन की रही। उन्होंने छानबीन समिति को दिए बयान में इस बात को माना कि उनसे कई गलतियां हुई। राजस्व प्रकरण में सूचना पत्र कैसे जारी होता है, इसकी जानकारी उनको नहीं थी। वह यह भी नहीं जानते थे कि न्यायालयीन प्रकरण में किसी अन्य शाखा से सूचना पत्र जारी नहीं किया जाता। न ही न्यायालयीन प्रकरणों में फैक्स के जरिए सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाना था। जैन के गलती मानने के बाद ही छानबीन समिति ने अपनी रिपोर्ट में उन्हें सलूजा के पक्ष में जाति प्रमाण पत्र जारी करने का दोषी बताया है। समिति ने कहा, सिर्फ शपथ पत्र के आधार पर स्थायी जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा सकता।
इधर, अपनी विधायकी को खतरे में देख सलूजा तरह-तरह के तर्क रख रहे हैं। उन्होंने मीडिया से कहा है कि यह जरूरी नहीं कि हर दलित आरक्षण का लाभ ले। वह सक्षम थे, इसलिए दलितों के लिए चलाई जाने वाली तमाम योजनाओं पर कभी दावा नहीं किया।
उनका कहना है कि वह सिख धर्म के हैं और उनकी जाति सांसी ही है। पंजाब में सांसी दलित में दर्ज हैं। जहां तक छानबीन समिति की रिपोर्ट का प्रश्न है तो उसमें कई खामियां हैं। रिपोर्ट में यह तो बताया गया है कि वह सांसी जाति के नहीं हैं, लेकिन यह नहीं बताया गया कि असल में उनकी जाति कौनसी है। भाजश के टिकट पर चुनाव जीते सलूजा का यह आरोप भी है कि पुलिस ने उनके पक्ष में रिपोर्ट दी थी पर छानबीन समिति ने उसे नहीं माना। मगर वह हार मानने वाले नहीं हैं और कानूनी लड़ाई को लड़ेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद अनुसूचित जाति जनजाति विभाग की राज्यस्तरीय छानबीन समिति ने जांच रिपोर्ट तैयार कर ली है। जिसे कोर्ट में पेश किया जाना है। इस बीच पता चला है कि प्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय ने भी जांच रिपोर्ट मांगी है, ताकि अगली कार्रवाई के लिए उसे चुनाव आयोग के पास भेजा जा सके।
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