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    हेमंत का MP BJP अध्यक्ष बनते ही पड़ गया चुनौतियों से पाला, नियुक्तियों से विपक्ष की रणनीति को मात देने तक; क्‍या है स्‍ट्रेटजी?

    भाजपा ने विधायक हेमंत खंडेलवाल को मध्य प्रदेश का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। उनके सामने मिशन 2028 विधानसभा चुनाव की तैयारी पार्टी में बढ़ती अनुशासनहीनता पर अंकुश लगाने और सभी को एकजुट रखने जैसी कई चुनौतियां हैं। आरएसएस और मुख्यमंत्री मोहन यादव का समर्थन मिलने के बावजूद कई चुनौतियों से निपटना होगा...

    By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Thu, 03 Jul 2025 01:57 PM (IST)
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    MP BJP अध्यक्ष बने हेमंत खंडेलवाल: मिशन 2028 से बड़ी हैं कई और चुनौतियां। फाइल फोटो

    धनंजय प्रताप सिंह, भोपाल। लंबे समय तक सस्पेंस रखने के बाद चौंकाने वाला नाम सामने रखने की परंपरा भाजपा ने मध्य प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष के निर्विरोध निर्वाचन तक जारी रखी और विधायक हेमंत खंडेलवाल को प्रदेश की कमान सौंप दी है।

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    खंडेलवाल को यह मौका पार्टी के सत्ता में रहते हुए मिला है, लेकिन उनकी चुनौतियां कम नहीं है। खंडेलवाल के सामने मिशन 2028 यानी विधानसभा चुनाव के लिए अभी से तैयारी करने की चुनौती है, तो दूसरी तरफ पार्टी में लगातार बढ़ रही अनुशासनहीनता पर भी अंकुश लगाना है। साथ ही सभी को एकजुट रखना है।

    बैतूल से दो बार के विधायक हेमंत खंडेलवाल से सभी की अपेक्षा पार्टी को वर्तमान स्थिति से आगे ले जाने की रहेगी। यह तभी हो सकता है, जब वे चुनौतियों से पार पा सकें।

    विवादित बयान देने वाले विजय शाह जैसे पुराने नेता हों या फिर नए सभी को अनुशासन में रखना होगा, नहीं तो पार्टी की साख प्रदेश ही नहीं देशभर में बिगड़ेगी। राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने भी प्रदेश भाजपा का उत्कृष्ट प्रदर्शन दिखाना होगा।

    खंडेलवाल पर किसका हाथ?

    खंडेलवाल पर आरएसएस और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने हाथ रखा है, इसलिए इन दोनों की अपेक्षाएं भी हैं। ऐसे में अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में उनके सामने प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से कई चुनौतियां रहेंगी। इनसे कुशलता से पार पा लिया, तो ये उनके लिए यह बेहतरीन अवसर बन जाएगा।

    राजनीति का स्वभाव है कि नए चेहरे से अपेक्षाएं बहुत ज्यादा होती हैं। वह भी भाजपा जैसी बड़ी पार्टी में जहां राष्ट्रीय राजनीति में दखल रखने वाले नेता हों, इन सभी को साधकर चलना होगा। उनकी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे तो नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है।

    खंडेलवाल के लिए क्‍या होगी सबसे चुनौती?

    देखना होगा कि वे कैसे ‘सबके साथ’ और ‘सबका साथ’ के वाक्य पर सही उतरते हैं। नजदीक में आने वाली सबसे बड़ी चुनौती की बात करें तो राजनीतिक नियुक्तियां हैं। निगम, मंडल, बोर्डों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष और जिलों में दीनदयाल अंत्योदय समितियों में पदाधिकारियों की नियुक्तियां होनी हैं। इनकी चर्चा लंबे समय से है, पर अब निर्णय नए अध्यक्ष और सरकार के समन्वय से होना है।

    इसकी प्रक्रिया कब प्रारंभ होगी और किसे मौका मिलता है, इसमें खंडेलवाल की कार्यशैली दिखाई देगी। बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समय की गई नियुक्तियों को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भंग कर दिया था। एक वर्ष से भी अधिक समय से निगम, मंडल और बोर्डों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष नहीं हैं।

    सत्ता और सरकार के बीच बनाना होगा तालमेल

    इसी तरह से सत्ता और सरकार के बीच तालमेल बनाकर रखना भी सामान्य बात नहीं होगी। कारण, भले ही मुख्यमंत्री उनके साथ हैं, लेकिन मंत्रियों की अपनी अपेक्षाएं हैं। इसी तरह से संगठन और कार्यकर्ताओं की अपेक्षाएं भी सरकार से हैं। संगठन का मुखिया होने के नाते खंडेलवाल के सामने यह चुनौती रहेगी कि कार्यकर्ता निराश होकर टूटने न पाएं।

    विधानसभा और लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस से कई बड़े-छोटे नेताओं ने भाजपा का दामन थामा था। इनमें कुछ तो पार्टी में घुल-मिल गए तो कुछ अभी भी अलग-थलग हैं। कोई दायित्व नहीं मिलने पर वे उलझन में हैं।

    पुराने भाजपाई उन्हें आज भी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। कारण, उनके आने से भाजपा के कई नेता हाशिए पर आ गए। ऐसे में पुराने नेताओं को पकड़े रखने और कांग्रेस से आने वालों की अपेक्षाओं को पूरा करना होगा।

    पार्टी में सार्वजनिक या भीतरी विवाद का लाभ लेने का कांग्रेस कोई भी अवसर नहीं छोड़ने वाली है। इसका बड़ा कारण वर्ष 2028 के अंत में विधानसभा और 2029 में लोकसभा चुनाव हैं। दोनों चुनावों में प्रदेश ही नहीं, राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने भी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर दिखाना होगा।

    वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 230 में से 163 और मई 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस की फिर प्रदेश की सत्ता में आने की भरपूर कोशिश रहेगी, तो लोकसभा की सीटें छीनने में भी वह कोई कसर नहीं छोड़ने वाली है।

    विपक्ष को मात देने के लिए खंडेलवाल के पास कितना वक्‍त?

    कांग्रेस ने राहुल गांधी की रणनीति के अनुसार, अभी से अपना संगठन मजबूत करना प्रारंभ कर दिया है। पार्टी पिछले चुनाव में भाजपा द्वारा किए प्रयोगों को अपनाने के साथ अपनी रणनीति पर भी काम कर रही है।

    ऐसे में खंडेलवाल के नेतृत्व वाली उनकी पूरी टीम के सामने पिछला प्रदर्शन बरकरार रखने और आगे बढ़ने की चुनौती रहेगी। अभी उनके पास तीन वर्ष का अवसर भी है।

    मंडल अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक नई टीम है। पार्टी खंडेलवाल के नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ सकती है, इसलिए उनके सामने चुनाव की तैयारियों में बेहतर करने की चुनौती रहेगी। उन्हें सभी अंचल और वर्ग को साधना होगा। प्रदेश का आदिवासी वर्ग सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाता रहा है।

    कांग्रेस इसे पूरी तरह से अपनी ओर खींचने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। छोटी सी घटना भी पूरे आदिवासी वर्ग को नाराज करने के लिए पर्याप्त होती है।

    इसी तरह से कर्मचारी वर्ग, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग की भी अपनी अपेक्षाएं हैं, जिसके लिए वे सरकार से अधिक संगठन की तरफ देखते हैं।

    राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने भी उन्हें अपना संगठन कौशल दिखाना होगा। पिछले लोकसभा चुनावों में प्रदेश भाजपा का शानदार प्रदर्शन रहा। इस कारण राष्ट्रीय नेताओं का भी प्रदेश पर विशेष ध्यान रहा।