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    Harda Fire Blast: परिवार का आखिरी सहारा था आशीष, जन्मदिन के अवसर पर थम गईं सांसें; भावुक हुए दिव्यांग पिता

    Updated: Sun, 11 Feb 2024 01:42 AM (IST)

    मध्य प्रदेश में हरदा जिले के नजदीक बरखेड़ा की पटाखा फैक्ट्री में छह फरवरी को जब विस्फोट हुआ था तब आशीष अपने पिता को अस्पताल से दिखाकर लौटा ही था। वह उन्हें स्कूटर से उतारकर व्हीलचेयर पर बैठने में मदद कर रहा था तभी विस्फोट हुआ और पत्थर मिसाइलों की तरह उड़ने लगे। एक पत्थर आशीष के सिर पर लगा और वह उछलकर जमीन पर गिर गया।

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    Harda Fire Blast: परिवार का आखिरी सहारा था आशीष, जन्मदिन के अवसर पर थम गईं सांसें; भावुक हुए दिव्यांग पिता

    आशीष दीक्षित, नर्मदापुरम। आशीष जब एक महीने का था, तभी एक दुर्घटना ने मुझे बिस्तर पर बैठा दिया। दो महीने की उम्र में पहली बार उसने मेरी अंगुली थामी थी, तब मुझे लगा था कि अब सहारा मिल गया। उसने बचपन से मुझे व्हीलचेयर पर बैठे देखा। बहुत कठिन समय में, वह बड़ा हुआ। खेलने-कूदने की उम्र में मेरा सहारा बन गया। दौड़-दौड़कर मुझे सामान लाकर देता।

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    बेटे को याद कर भर आईं पिता की आंखें

    कुछ बड़ा हुआ तो दुकान आने-जाने और बैठने में मदद करने लगा। वह मेरी उम्मीद था। उसे देखकर लगता था कि एक ना, एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा। मेरा हाथ थामने वाली वह अंगुलियां धीरे-धीरे मजबूत हो ही रही थीं कि भगवान ने उन्हें मुझसे छीन लिया। अब मैं किसके सहारे जिऊंगा। बेटे आशीष की बात करते-करते संजय राजपूत का गला रुंध गया। माहौल पर खामोशी हावी हो गई। बेहद गमगीन माहौल में शनिवार को सिवनी मालवा के शिवपुर ग्राम में आशीष का अंतिम संस्कार कर दिया गया।

    अपने पिता को अस्पताल से दिखाकर लौटा था आशीष

    मध्य प्रदेश में हरदा जिले के नजदीक बरखेड़ा की पटाखा फैक्ट्री में छह फरवरी को जब विस्फोट हुआ था, तब आशीष अपने पिता को अस्पताल से दिखाकर लौटा ही था। वह उन्हें स्कूटर से उतारकर व्हीलचेयर पर बैठने में मदद कर रहा था तभी विस्फोट हुआ और पत्थर मिसाइलों की तरह उड़ने लगे। एक पत्थर आशीष के सिर पर लगा और वह उछलकर जमीन पर गिर गया। संजय के हाथ में भी पत्थर लगा। पहले दोनों को नर्मदापुरम के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन हालत बिगड़ने पर आशीष को गुरुवार रात भोपाल एम्स पहुंचाया गया, जहां शुक्रवार रात उसने दम तोड़ दिया।

    हरदा पटाखा फैक्ट्री विस्फोट में हुई 13वीं मौत

    यह हादसे में हुई 13वीं मौत थी। दिव्यांग पिता के आंसू तभी से नहीं थम रहे। परिवार का दुख इस बात ने और बढ़ा दिया है कि नौ फरवरी को जन्मदिन के दिन आशीष की सांसें थमीं। नौ फरवरी, 2014 को जन्मा आशीष शुक्रवार को ही 10 वर्ष का हुआ था। संजय इसलिए भी लाचार महसूस कर रहे हैं, क्योंकि आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने के चलते उन्होंने अपने बड़े बेटे आयुष को बहन के पास रहने भेज दिया था। वह उन्हीं से हिला-मिला है, जबकि आशीष होश संभालने के समय से ही उनका सहारा बना हुआ था।

    'मै व्हीलचेयर पर आया तो मेरा सहारा बन गया'

    संजय ने बताया कि मैं ड्राइवर था। फरवरी 2014 में आशीष का जन्म हुआ और मार्च 2014 में बुदनी के पास हुई दुर्घटना में मेरे शरीर का निचला हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। दूसरों की नजरों में भले ही मेरे शरीर ने साथ देना बंद कर दिया, लेकिन आशीष ने मुझे बचपन से इसी तरह पाया था। मैं ऐसा ही उसका पापा था। वह गंभीर था और परिवार के दर्द व मेरी समस्या को समझता था। मैं दुकान पर बैठे थक जाता तो आशीष दुकान भी संभाल लेता था। बेटे के जाने के बाद तो समझ ही नहीं आ रहा है कि अब हम क्या करेंगे।

    फैक्ट्री के दो मैनेजर गिरफ्तार

    पटाखा फैक्ट्री धमाके के चौथे दिन शनिवार को दो और आरोपितों को गिरफ्तार किया गया है। अब तक मामले में पांच आरोपितों की गिरफ्तारी हो चुकी है। पुलिस के मुताबिक, दोनों आरोपित आशीष तमखाने व अमन तमखाने फैक्ट्री में मैनेजर का काम करते थे। दोनों सगे भाइयों पर मजदूरों से काम कराने के साथ ही प्रबंधन की भी जिम्मेदारी थी। दोनों को रविवार को न्यायालय में पेश किया जाएगा। जिन तीन आरोपितों की पहले गिरफ्तारी हो चुकी है, उनमें राजेश उर्फ राजू अग्रवाल, सोमेश अग्रवाल, रफीक खान उर्फ मन्नी शामिल हैं। शनिवार को सोमेश अग्रवाल को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे फिर 15 फरवरी तक पुलिस रिमांड पर लिया गया है।

    एनजीटी का आदेश, शासन सख्त नीति बनाए

    जबलपुर में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने शनिवार को हरदा में हुए हादसे के मद्देनजर शासन को सख्त नीति बनाकर स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) तय करने का आदेश दिया, ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में यह भी कहा कि एनजीटी के पास पूर्व में जमा 20 लाख रुपये को हरदा हादसे के पीड़ितों पर खर्च किया जाए। पर्यावरण व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, रेवेन्यू और शहरी विकास के प्रमुख सचिवों की कमेटी खर्च की जिम्मेदारी लें और तीन सप्ताह के भीतर एक्शन प्लान बनाकर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

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