गुरुत्वीय तरंगें खोलेंगी डार्क मैटर के रहस्य, पता चलेगी ग्रहों की सटीक स्थिति
विज्ञानियों के अनुसार अभी हम ब्रह्मांड के दो प्रतिशत हिस्से को जान सके हैं। माना जाता है कि ब्रह्मांड का 23 प्रतिशत हिस्सा डार्क मैटर के रूप में है। जबकि 75 प्रतिशत हिस्सा डार्क एनर्जी के रूप में है जिसके बारे में कुछ पता नहीं है। ऐसे में गुरुत्वाकर्षण तरंगों के माध्यम से हम डार्क मैटर को अधिक जान पाएंगे।

अंजली राय, भोपाल: भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आइसर) के विज्ञानियों ने जापान और यूरोप के अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान दलों के साथ मिलकर गुरुत्वीय तरंगों के 25 वर्ष के डाटा पर अध्ययन कर बड़ा निष्कर्ष निकाला है। इस शोध ने न केवल महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की थ्योरी को गणितीय रूप में सही साबित किया है बल्कि अंतरिक्ष के बारे में जानने के मनुष्य के साधनों में प्रकाश और एक्सरे तरंगों के अलावा गुरुत्वीय तरंगों का नया आयाम भी जोड़ा है।
इसकी मदद से भविष्य में अंतरिक्ष के बारे में अधिक जानकारी मिलने के साथ कई ग्रहों की सटीक स्थिति भी पता चलेगी। गुरुत्वीय तरंगों से ब्रह्मांड के सबसे बड़े रहस्यों में शामिल डार्क मैटर को जानने का रास्ता भी खुल गया है। विज्ञानियों का कहना है कि मनुष्य जब अंतरिक्ष में लंबी यात्राएं करेगा, तब इन आंकड़ों की मदद से समय गणना सहित कई स्तरों पर मदद मिलेगी।
ब्लैक होल से निकलती है गुरुत्वीय लहर
वर्ष 1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि अंतरिक्ष में किसी भी वस्तु को आकर्षित करने वाले गुरुत्वाकर्षण का असली कारण उसका द्रव्यमान और आकार होता है जो उसके आसपास के पिंडों में गति पैदा कर देता है। विज्ञानियों का कहना है कि हमारे सूर्य से करोड़ों गुना भारी विशालकाय नाचते हुए ब्लैक होल टकराकर ऐसी गुरुत्वीय तरंगों को जन्म देने का कारण माने जाते हैं।
यह ब्लैक होल के जोड़े हमारे ब्रह्मांड की चादर में लहरें पैदा करते हैं। खगोलशास्त्री इनको नैनो हर्ट्ज ग्रैविटेशनल वेव्स कहते हैं, क्योंकि इनकी वेवलेंथ लाखों करोड़ किलोमीटर तक होती है। ऐसे अनेकों विशालकाय ब्लैक होल जोड़ों का एक शोर हमारे ब्रह्मांड में निरंतर गूंजता रहता है।
इन्हीं गुरुत्वीय तरंगों को अब दर्ज कर लिया गया है। इस डाटा का आठ वर्ष तक गहन अध्ययन करने से आंइस्टीन की थ्योरी सिद्ध हुई जिससे पता चला कि ब्लैक होल से निकली गुरुत्वीय तरंगों के कारण ब्रह्मांड में कंपन होता रहता है और इसी कंपन के कारण आकाशगंगा बनी। विज्ञानी कहते हैं, इस शोध के परिणामों ने गुरुत्वीय लहरों के वर्णक्रम में एक नया रास्ता खोल दिया है।
छह रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग
आइसर के दल के प्रमुख डा. मयूरेश सुर्निस बताते हैं कि इस शोध के लिए विज्ञानियों ने विश्व के छह सबसे संवेदनशील रेडियो टेलीस्कोप का प्रयोग किया। इसमें भारत का सबसे बड़ा टेलीस्कोप यूजीएमआरटी भी शामिल है। इसकी मदद से पल्सर तारे पर अध्ययन की मदद से गुरुत्वीय तरंगों से हुए कंपन को नैनो सेकेंड में मापा जा सका।
पल्सर तारा काफी भारी होता है और जब यह ऊर्जा पैदा नहीं कर पाता है तो उसका सिर्फ केंद्र बचता है। शोध में पल्सर तारे से गुरुत्वीय तरंगें निकलते समय उनकी गति का अध्ययन किया गया। इससे पूरी प्रक्रिया को समझने में आसानी हुई। एटामिक क्लाक को जब गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में लाया जाता है, तब समय आनुपातिक रूप से लंबा खिंच जाता है।
पल्सर भी घड़ी जैसा ही है। हम यह भी कह सकते हैं कि भविष्य में मनुष्य जब तारों के बीच यात्रा करेगा, तब यह डाटा समय की सटीकता और ग्रहों के सटीक स्थान की जानकारी देने में सहायक होगा।
बिना प्रकाश ब्रह्मांड को समझ सकेंगे
अभी तक हम ब्रह्मांड को केवल प्रकाश के माध्यम से समझ पाते हैं। अंतरिक्ष को जानने के लिए प्रकाश के अतिरिक्त रेडियो, गामा तरंगें भेजकर रहस्यों को जानने की कोशिश की जाती है, लेकिन इस शोध के बाद उन पिंडो, पदार्थों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे जो प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते हैं।
इस अध्ययन के क्रम में जैसे-जैसे अधिक वर्षों का डाटा उपलब्ध होगा, उतने लंबे समय तक सूर्य की परिक्रमा करने वाले ग्रह के पथ की गणना कर उसकी सटीक स्थिति पता की जा सकेगी। वर्तमान में हम बृहस्पति को नासा के एयरक्राफ्ट जूनो के माध्यम से जानते हैं, लेकिन अब तक मिली जानकारी बेहद कम है।
बृहस्पति को सूर्य की एक परिक्रमा करने में 12 वर्ष लगते हैं। यह सीमा 25 वर्ष के डाटा की उपलब्धता की सीमा के अंदर है। ऐसे में इस ग्रह की सटीक स्थिति पता चल सकेगी। इसी तरह शनि को सूर्य की एक परिक्रमा करने में 29.5 वर्ष लगते हैं, अगले पांच वर्ष जब डाटा 30 वर्ष का हो जाएगा, तब शनि के बारे में भी अधिक सटी जानकारी उपलब्ध हो सकेगी।
अभी केवल दो प्रतिशत हिस्से की जानकारी
विज्ञानियों के अनुसार अभी हम ब्रह्मांड के दो प्रतिशत हिस्से को जान सके हैं। माना जाता है कि ब्रह्मांड का 23 प्रतिशत हिस्सा डार्क मैटर के रूप में है। जबकि 75 प्रतिशत हिस्सा डार्क एनर्जी के रूप में है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं है। ऐसे में गुरुत्वाकर्षण तरंगों के माध्यम से हम डार्क मैटर को अधिक जान पाएंगे।
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