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    Gopashtami 2022: गोवंश आधारित आर्थिकी से लिख रहे स्वावलंबन की पटकथा, गाय और गोबर से स्कूल बना आत्मनिर्भर

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Pokhriyal
    Updated: Mon, 31 Oct 2022 05:46 PM (IST)

    सनातन संस्कृति में गोमाता आस्था संग आत्मनिर्भरता का आधार भी रही हैं। गोपाष्टमी पर गोवंश की पूजा के साथ उनके संरक्षण औऱ संवर्धन का संकल्प लिया जाता है। इस अवसर पर पढ़िए दो नवाचार जहां गोवंश आधारित आर्थिकी से स्वावलंबन और संरक्षण की नई परिभाषा लिखी जा रही हैः

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    Gopashtami 2022: गोकाष्ठ से 20 रुपये लाख की आय

    आनंद दुबे, भोपालः मध्य प्रदेश की राजधानी के केरवा डैम रोड स्थित शारदा विद्या मंदिर आवासीय विद्यालय अपनी गोशाला के गोबर से आत्मनिर्भर बन गया है। स्कूल परिसर में बनी गोशाला में गिर नस्ल के 250 गोवंशी हैं। इनके गोबर से तैयार गैस से स्कूल के कर्मचारियों, विद्यार्थियों के लिए भोजनशाला में भोजन पकता होता है। गोबर गैस को बायो सीएनजी में परिवर्तित करके स्कूल के वाहन भी चलाए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त पंचगव्य से 25 तरह की आयुर्वेदिक औषधियां तैयार की जाती हैं। गोकाष्ठ, उपले तैयार होते हैं। त्यौहार के अवसर पर यहां गोबर से गणेश जी की मूर्ति, दीपावली के मौके पर गोबर के दीपक के अलावा मोबाइल फोन रखने के स्टैंड भी बनाए जाते हैं, जो बिक्री के लिए उपलब्ध रहते हैं। इस आमदनी से स्कूल प्रबंधन का खर्च चलाने में सहायता मिलती है।

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    गुरुकुल की तर्ज पर संचालित हो रहे स्कूल परिसर में कामधेनु गोशाला से प्रतिदिन चार टन गोबर निकलता है। विभिन्न दवाओं में प्रयोग करने के लिए प्रतिदिन 60 लीटर गोमूत्र एकत्र किया जाता है। गोशाला, गैस प्लांट और गोउत्पाद प्रोजेक्ट के प्रबंधक प्रकाश मंडलोई बताते हैं कि स्कूल में वर्ष 2001 में गोपालन शुरू किया गया था। शुरुआत में यहां 45 घनमीटर क्षमता का गोबर गैस प्लांट लगाया गया। पांच वर्ष पहले यहां 100 घनमीटर क्षमता का बायो सीएनजी गैस प्लांट स्थापित किया गया। इस प्लांट से प्रतिदिन 50 किलो बायो सीएनजी का उत्पादन होता है। जिसका प्रयोग दो वाहन चलाने में किया जा रहा है।

    600 विद्यार्थी, 250 कर्मचारी

    आवासीय विद्यालय में चौथी से लेकर 12 वीं कक्षा तक के 600 विद्यार्थी पढ़ते हैं। 250 कर्मचारी भी काम करते हैं। इनमें से 50 स्कूल परिसर में निवास करते हैं। बायो गैस से लगभग दो हजार रोटियां रोज पकाई जाती हैं। यहां से प्रतिदिन 450 लीटर दूध का उत्पादन होता है। जो सुबह–शाम विद्यार्थियों को वितरित कर दिया जाता है।

    वर्ष में उपले, गोकाष्ठ से 20 रुपये लाख की आय

    दोनों गैस प्लांट से निकले गोबर से काष्ठ और उपले बनाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त गोमूत्र के अर्क, पंचगव्य से विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियां भी बनाई जाती हैं। गोशाला में तैयार उत्पादों के मार्केटिंग प्रबंधक नरेंद्र कुमार डंडोरे ने बताया कि वर्ष भर में सिर्फ उपले और गोकाष्ठ से 20 लाख रुपये की आमदनी होती है। गोबर से तैयार खाद 1,500 रुपये प्रति ट्राली की दर से बेची जाती है। यहां गोबर से श्री गणेश, माता लक्ष्मी की मूर्तियां बनाई जाती हैं। गोबर के दीपक के अलावा मोबाइल फोन रखने का स्टैंड (सौ रुपये प्रति नग) भी तैयार कर बेचा जाता है। इसके अतिरिक्त करीब ढाई एकड़ में गोशाला से मिली खाद से जैविक पद्धति से सब्जियां और औषधीय पौधों की खेती भी की जाती है।

    ऐसे बनती है बायो सीएनजी

    बायो गैस प्लांट में गोबर गैस को कंप्रेशर की मदद से सघन दबाव के जरिए शुद्ध करके एक बड़े सिलेंडर में जमा कर लिया जाता है। इसके बाद उससे 14-14 किलो क्षमता वाले सिलेंडरों में भरने के बाद गैस किट लगे वाहनों में प्रयोग किया जाता है।