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    KACHRA CAFE से कचरे का होगा समाधान, भोपाल में प्लास्टिक और E-Waste को निस्तारित करने की शानदार पहल

    KACHRA CAFE भोपाल में प्रति माह करीब 500 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें 200 टन तो प्रतिबंधित प्लास्टिक है। इलेक्ट्रानिक लोहा सीसे के कचरे और कबाड़ के साथ कागज की रद्दी भी बड़ी मात्रा में कचरे के ढेर के साथ पहुंचती है। कचरा संग्रहण और सेग्रिग्रेशन केंद्रों पर इसे अलग करना बड़ा खर्चीला हो जाता है।

    By Jagran News Edited By: Piyush Kumar Updated: Tue, 17 Jun 2025 06:49 PM (IST)
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    भोपाल नगर निगम स्वच्छता समाधान केंद्र ने कचरा कैफे को खोलने की पहल की है।(फोटो सोर्स: जागरण)

    अमित मिश्र, भोपाल: शहरी स्वच्छता के लिए जैविक-अजैविक कचरे का मिश्रित ढेर बड़ी चुनौती बना हुआ है। यह नगर निगम के संसाधनों पर बोझ जैसा है। घरों से निकलने वाले कचरे को अलग-अलग करके देने की प्रवृत्ति विकसित नहीं हो पाई है। ऐसे में भोपाल नगर निगम स्वच्छता समाधान केंद्र के तौर पर एक अनोखे कचरा कैफे को खोलने की पहल की है।

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    भोपाल के अलग-अलग तीन हिस्सों दस नंबर मार्केट की फुलवारी, बिट्टन मार्केट और बोट क्लब पर इसे बनाया जा रहा है। यहां प्लास्टिक, कागज, इलेक्ट्रानिक कचरे के बदले भोजन या खानपान और दैनिक उपयोग का सामान मिलेगा।

    अगर कोई इसके बदले नकदी लेना चाहे तो यह कैफे बाजार दर से पांच रुपया अधिक कीमत देकर उसे खरीदेगा। उदाहरण के तौर पर अगर एक किलो प्लास्टिक कचरा बाजार में 15 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा है तो कचरा कैफे उसे 20 रुपया प्रति किलोग्राम की दर से खरीदेगा।

    कचरा कैफे नाम के इस स्वच्छता समाधान केंद्र का संचालन स्व-सहायता समूह की महिलाएं करेंगी। इस कैफे में आने वाले निराश्रित जरूरतमंद अगर थोड़ा-बहुत कचरा भी लाते हैं, तो उन्हें वहां से छोले-चावल जैसे व्यंजन खाने को मिल जाएंगे। इसके अलावा वे कचरे के बदले कैफे में उपलब्ध खानपान और दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीद सकेंगे। इस पहल से "कमाओ और खाओ" की भावना को भी बल मिलेगा।

    प्रतिमाह 500 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है

    नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि भोपाल में प्रति माह करीब 500 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें 200 टन तो प्रतिबंधित प्लास्टिक है। इलेक्ट्रानिक, लोहा, सीसे के कचरे और कबाड़ के साथ कागज की रद्दी भी बड़ी मात्रा में कचरे के ढेर के साथ पहुंचती है।

    कचरा संग्रहण और सेग्रिग्रेशन केंद्रों पर इसे अलग करना बड़ा खर्चीला हो जाता है। कचरा कैफे के जरिये यह कचरा अलग-अलग इकट्ठा होगा और वेंडरों के जरिए आसानी से रिसाइकिल या विनष्टीकरण संयंत्रों तक पहुंचा दिया जाएगा।

    कैफे में इस तरह की वस्तुएं मिलेंगी

    इस अनोखे कैफे में पका हुआ भोजन और नाश्ता उपलब्ध होगा। इसके अलावा वहां दाल, चावल, आटा, मोटा अनाज, नमक, तेल, अचार, पापड़, बड़ी, नमकीन, बोतलबंद पानी, टेराकोटा, कपड़े, सजावटी सामान और पर्यावरण अनुकूल वस्तुएं भी उपलब्ध होंगी। इनका उत्पादन भी स्व-सहायता समूह ही करेंगे।

    मोबाइल एप से भी जुड़ पाएंगे लोग

    इस पहल से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए कचरा कैफे एक मोबाइल एप भी लांच कर रहा है। इससे जुड़े लोग घर बैठे कचरा बेच सकेंगे। कैफे की आरआरआर (रिड्यूस, रियूज, रिसाइकिल) मोबाइल वैन घर पर जाकर कचरा खरीदेगी। इसके बदले विक्रेता को कूपन दिया जाएगा। यह कूपन कैफे लाकर नकद लिया जा सकेगा, या उतनी कीमत की खरीददारी में प्रयोग हो सकेगा।

    स्वच्छता एंबेसडर,  अंजीता सभलोक ने बताया कि यह केंद्र केवल कचरा प्रबंधन तक सीमित नहीं रहेगा। यह पर्यावरण के प्रति जन जागरूकता, महिला सशक्तीकरण और रोजगार सृजन का भी माडल बनेगा। 

    नगर निगम भोपाल की महापौर,  मालती राय ने जानकारी दी कि नगर निगम इस महत्वपूर्ण परियोजना पर काम कर रहा है। ‘कचरा कैफे की शुरुआत इसी महीने 10 नंबर मार्केट के फुलवारी और बोट क्लब पर शुरू करने जा रहे हैं। हमें उम्मीद है कि इसके जरिए शहर के लोग कचरे के प्रति अधिक जागरूक होंगे।फोटो :

    करनाल में भी भरपेट भोजन के बदले पर्यावरण संरक्षण की गारंटी

    हरियाणा के करनाल में पर्यावरण को प्लास्टिक से बचाने के लिए सुमन डांगी ने तीन वर्ष पहले एक विचार पर कार्य करना शुरू किया। उन्होंने प्लास्टिक व अन्य अनुपयोगी सामान खरीदने वालों बात की और कहा कि यदि वह उनसे प्लास्टिक खरीदते है तो वह गरीबों को भोजन करा देंगी। एक स्क्रैप कारोबारी ने सुमन को बताया कि वह आधा किलोग्राम अनुपयोगी प्लास्टिक बोतल या अन्य सामान लेने पर 25 रुपये देगा। एक थाली की कीमत 10 रुपये है। 15 रुपये की बचत होती है।

    सुमन ने एकता स्वयं सहायता समूह बनाया और इसे 50 हजार रुपये का ऋण दिलाया। जो अब अनाज मंडी में अटल- किसान मजदूर कैंटीन संचालित करती है। अब यहां महीने में 1,500 किलोग्राम से ज़्यादा प्लास्टिक एकत्रित होती है जिसे निस्तारित कर दिया जाता है। इससे पर्यावरण संरक्षण भी होता है और जरूरतमंदों को भरपेट भोजन भी।