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    Taste Of Indore: इंदौरी 'बम कचौरी' का हर कोई है दीवाना, देखते ही आपके मुंह में भी आ जाएगा पानी

    By Babita KashyapEdited By:
    Updated: Sat, 11 Jun 2022 01:44 PM (IST)

    Indori Bum Kachori इंदौरी खानपान की बात हो और बम कचौड़ी का जिक्र न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता। मूंग दाल भरी इन कचौरियों को सिगड़ी की धीमी आंच पर मूंगफली के तेल में तला जाता है। पत्र पत्रिकाओं में भी इन कचौरियों का उल्‍लेख मिलता है।

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    Taste Of Indore: स्‍वाद से लोगों के दिलों पर राज करने वाली यह कचौरी आज भी सिगड़ी पर बनती है

    इंदौर, जेएनएन। शैक्षणिक संस्थान के पूर्व छात्रों के बैठक समारोह में संस्थान, शिक्षकों और दोस्तों के बारे में बात करना सामान्य बात है, लेकिन अगर उनकी बातों में एक विशेष कचौरी का जिक्र है, तो समझ लें कि बद्रीभैया की बात (बम की कचौरी) हो रही है। 1962 से अपने खास स्वाद से लोगों के दिलों पर राज करने वाली यह कचौरी आज भी सिगड़ी (अंगीठी) पर बनाई जाती है और इसे बनाने वाले कारीगर बाहर नहीं बल्कि परिवार के सदस्य होते हैं। आज के उत्कृष्ट बाल विनय मंदिर, श्री गोविंदराम सेकसरिया प्रौद्योगिकी और विज्ञान संस्थान, सेंट राफेल, श्री गुजराती समाज विद्यालय की पत्रिकाओं में भी कहीं न कहीं इस कचौरी का उल्लेख है। यह मूंग दाल कचौरी कई दशकों से इंदौरियों के दिलों पर राज कर रही है।

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    कैसे हुआ कचौरी का नामकरण

    60 के दशक में बद्रीलाल शर्मा अपनी पत्नी भंवरीबाई के साथ राजस्थान के कोलार गांव के इंदौर में बस गए। खाने के शौकीन इस शहर में उन्होंने भी कमाई का यह तरीक़ा देखा और दोनों ने घर पर ही कचौरी बनाना शुरू कर दिया, जिसे बद्रीलाल साइकिल पर बेचा करते थे। इन स्कूलों के अलावा वल्लभ नगर, रेसकोर्स रोड आदि में जब साइकिल पर कचौरी बेचते थे तो 'बम' कहकर आवाज लगाते थे। धीरे-धीरे कचौरी की पहचान बम कचौरी के नाम से हुई, जो आज तक कायम है।

    सिगड़ी वाली कचौरी

    इतवारिया बाजार में जब साइकिल यात्रा एक दुकान के रूप में स्थिर हो गई तो इसे इतवारिया की कचौरी के रूप में एक और पहचान मिली। घरों में एलपीजी गैस स्‍टोव देखने वाली पीढ़ी इसे सिगड़ी वाली कचौरी कहकर संबोधित करने लगी। बाद में नलिया बाखल में एक और दुकान शुरू की गई और इस तरह दाल कचौरी को कई नामों से जाना जाने लगा। 10 पैसे में बिकने लगी कचौरी का भाव आज 15 रुपये प्रति पीस हो गया है।

    इंदौरियों के प्‍यार ने बनाया स्‍पेशल

    बद्रीलाल के पुत्र रामेश्वर, अशोक और महेश सिगड़ी पर बनी कचौरी की परंपरा आज भी निभा रहे हैं। अशोक ने बताया कि मूंग दाल को उबालने के बाद बेसन, मालवी लाल मिर्च और घर में तैयार गरम मसाले डालकर सिगड़ी पर ही कचौरी का मसाला तैयार हो जाता है। कचौरी को मूंगफली के तेल में सिगड़ी की मध्यम आंच पर तल कर तैयार किया जाता है। इसमें कोई खास मसाला नहीं है, बस इंदौरियों के प्यार ने इसे खास बना दिया है। मुझे याद है नरेंद्र तिवारी, गोपीकृष्ण गुप्ता, मैत्री पद्मनाभन 'बड़ी टीचर', रामेश्वर पटेल, अशोक पाटनी, पंकज सांघवी, लक्ष्मणसिंह गौर खुद इस कचौरी को खाते थे और दूसरों को भी यहां लाते थे।