Water Conservation: जन आंदोलन बना 'जल आंदोलन', देवास सहेज रहा 200 करोड़ लीटर पानी; कई पीढ़ियों को मिलेगा लाभ
मध्य प्रदेश में देवास के लोगों ने इस वर्ष वर्षा का पानी जमीन में उतारने का ऐसा जल आंदोलन चलाया कि इस सीजन में 200 करोड़ लीटर पानी जमीन में उतारने का अ ...और पढ़ें

चंद्रप्रकाश शर्मा, देवास। मध्य प्रदेश के देवास शहर की चार लाख आबादी ने जन आंदोलन की एक ऐसी कहानी लिख दी है, जिसका लाभ देवास की आने वाली कई पीढ़ियों को मिलेगा। इस शहर ने इस वर्ष वर्षा का पानी जमीन में उतारने का ऐसा 'जल आंदोलन' चलाया कि इस सीजन में 200 करोड़ लीटर पानी जमीन में उतारने का अद्भुत काम कर दिखाया।
दोगुने उत्साह से चल रहा अभियान
यहां बूंदों को सहेजने की पहल हुई, यह पहल अभियान बनी और अभियान मिशन बन गया। पिछले वर्ष तक वर्षा का जो पानी व्यर्थ सड़कों पर बह जाता था, अब वह सीधा जमीन में जाकर भूजल स्तर बढ़ा रहा है। यह सब सरकारी मदद के बिना जनता की संकल्प शक्ति, प्रयासों और जीवटता से हुआ। वर्षा जल जमीन में जाता देख अभियान अब दोगुने उत्साह से चल रहा है।
.jpg)
इस तरह शुरू हुआ अमृत संचय अभियान
पानी बचाने की यह अनूठी प्रेरणादायक कहानी तब शुरू हुई, जब भूजलविद् डॉ. सुनील चतुर्वेदी ने यह सपना देखा। चतुर्वेदी इस बात से चिंतित थे कि देवास में जलसंकट गहराता जा रहा है और भूजल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। उन्होंने इस चिंता को चिंतन में बदला और 'अमृत संचय' नामक अभियान शुरू किया। वे अपनी टोली के साथ घर-घर, गांव-गांव गए और लोगों को जल का महत्व समझाया। देखते ही देखते यह पहल जन अभियान बन गई।

पांच लोगों से शुरू हुआ आंदोलन
देवास में इसी वर्ष 16 मई से यह अभियान आरंभ हुआ। सबसे पहले पांच लोग जुड़े और जिला प्रशासन से बात कर बताया कि ‘अमृत संचय’ अभियान का उद्देश्य क्या है। पहले तो प्रशासन को लगा कि असंभव सा लगने वाला यह काम कैसे होगा, किंतु जैसे ही टीम ने काम शुरू किया, तो प्रशासन भी सहायक बन गया। अच्छा काम होता देख लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया।
.jpg)
लोगों से जल बचाने की अपील
शहर के विभिन्न सेक्टरों की सूची बनाई, घर, अस्पताल, नर्सिंग होम, वेयरहाउस, फैक्टरियों, गार्डन, होटल, रेस्टोरेंट, सरकारी भवन, निजी व सरकारी स्कूल जैसे बड़े संस्थानों को अभियान से जोड़ा। सबके साथ अलग-अलग बैठक की और छत का पानी जमीन में उतारने के लिए रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के लिए प्रेरित किया। दो माह से भी कम समय में अभियान एक मिशन बन गया और सैकड़ों घरों व प्रतिष्ठानों ने रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया। विभिन्न समाज भी जुड़े और सामाजिक सम्मेलनों में भी जल बचाने की अपील की गई।
सूख चुके कुएं, बोरिंग में आया पानी
पहले ही वर्ष अभियान की सफलता दिखाई देने लगी है। जिन घरों में यह सिस्टम लगाया गया, वहां इसी वर्षा सीजन में कुएं व बोरिंग में पानी आ गया है, जबकि हर वर्ष वर्षा के सीजन के अंत तक इनमें पानी आता था और चंद महीनों में सूख जाता था।

इस परिणाम से अमृत संचय अभियान टीम के साथ शहरवासियों का भी उत्साह बढ़ा है। उत्साहित लोग दूसरों को प्रेरित करने के लिए अपने घर लगे रूप वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के फोटो और वर्षा का पानी जमीन में उतरने के वीडियो भेजकर अपनी खुशियां एक-दूसरे से साझा कर रहे हैं।
इस तरह बचा रहे 200 करोड़ लीटर पानी
देवास में प्रतिवर्ष औसत वर्षा 40 इंच (लगभग 1 हजार मिमी) होती है। अमूमन एक हजार वर्ग फीट की छत से एक लाख लीटर पानी वर्षाकाल में व्यर्थ बहता है। इसके हिसाब से शहर में अब तक जितने वर्ग फीट छतों पर यह सिस्टम लगाया है, उससे दो सौ करोड़ लीटर पानी सीधे जमीन में जाएगा। घरों की छतों के अलावा अन्य स्थानों पर गिरने वाले वर्षा जल को रिचार्ज पिट, डगवेल रिचार्ज, परकोलेशन टैंक, संकन पौंड, कंटूर ट्रेंचेस आदि तरीकों से जमीन में उतारा जा रहा है। इस तरह इस वर्षा सीजन में कुल करीब 200 करोड़ लीटर पानी जमीन में उतरेगा।
वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पर कितना आया खर्च?
यहां प्रत्येक घर में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने में 4 से 5 हजार का खर्च आया। जिला प्रशासन ने जनहित में फिल्टर तैयार करवा कर न्यूनतम दरों पर उपलब्ध करवाए। प्रशासन ने शहर में कई प्लंबरों को भी काम पर लगाया। देवास कलेक्टर ऋषव गुप्ता ने भी कई जगह चौपाल लगाकर इस अभियान को समर्थन दिया।
स्कूली बच्चों ने साइकिल रैली निकाली, जनप्रतिनिधियों ने अपने प्रभाव क्षेत्र के लोगों को जल सहेजने के लिए तैयार किया, निजी स्कूलों, वकीलों, उद्योग जगत, अस्पताल, होटल, सरकारी स्कूल, वेयर हाउस, मैरिज गार्डन, मंदिर-आश्रम सबने इस बात को माना और अपने-अपने मकान, प्रतिष्ठान की छत पर बरसने वाले बारिश के पानी को विभिन्न तकनीकों से जमीन में उतारा। अवंतिका फूड पार्क और कपारो जैसी बड़ी इंडस्ट्रीज भी साथ आईं और क्रमश: 20 करोड़ व 10 करोड़ लीटर पानी इस इंडस्ट्री ने बचाने का सिस्टम इंस्टाल किया।
इसी देवास में कभी ट्रेन से आया था पानी
एक दौर था जब देवास में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची थी। भूजल स्तर गिरने से वर्ष 1980 से 2000 के बीच यहां ट्रेन से पानी मंगवाना पड़ा था। उसके बाद भी वर्षों तक संकट बना रहा। इसी से उपजी पीड़ा के चलते वर्ष 2024 में शहरवासियों ने यह जन आंदोलन आरंभ किया।
अध्ययन कर रिपोर्ट बनाएगी मप्र काउंसिल
देवास के इस नवाचार पर अब मप्र काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार करेगी। टीम आकर देखेगी कि इतना बड़ा जन आंदोलन बिना सरकारी मदद के कैसे संभव हुआ और इसका देवास के भूजल स्तर पर क्या प्रभाव हुआ। रिपोर्ट को प्रदेश के अन्य मझौले शहरों से साझा किया जाएगा, ताकि वे भी ऐसा कर सकें।
अमृत संचय अभियान सरकार का नहीं जनता का है, इसलिए यह जन आंदोलन बन गया। हमने पानी का महत्व बताया, जन-जन को जागरूक किया और इसे बचाने के तरीके बताए। लोग आज और आने वाली पीढ़ी के लिए जल सहेजने में जुट गए हैं। देवास अब रुकने वाला नहीं। हमने देश-दुनिया को संदेश दिया है कि कैसे कोई शहर पानीदार बन सकता है। अभी यह शुरुआत है। इसके और सुखद परिणाम दिखेंगे।- डॉ. सुनील चतुर्वेदी, भूजलविद् व अमृत संचय अभियान के प्रणेता, देवास
रिचार्ज पिट : भूमि में बनाया वह गड्ढा, जिसमें रेत, गिट्टी, बजरी, छोटे-बड़े पत्थर आदि डाले जाते हैं, ताकि वर्षा का पानी उसमें से फिल्टर होकर जमीन के अंदर जाए।
डगवेल : छोटा कुआं, जिसके माध्यम से छत या सतह से बहने वाले वर्षा जल को एक फ़िल्टर के माध्यम से बड़े कुएं में पहुंचाकर भूमि के अंदर पहुंचाया जाता है।
परकोलेशन टैंक : तालाब का एक प्रकार। वर्षा जल इसमें एकत्रित होकर भूमि के अंदर उतरता रहता है।
संकन पौंड : यह संरचना नालों में बहकर जाने वाले वर्षा जल को रोकने के लिए नालों की सतह या ढलान वाली भू- संरचना पर बनाई जाती है। यह व्यर्थ बहने वाले वर्षाजल को सोख कर भूमि के अंदर पहुंचाती है।
कंटूर ट्रेंच : ढलान वाली भू-सतह से तेजी से बहकर व्यर्थ होने वाले वर्षा जल को ट्रेंच बनाकर पानी की गति को कम किया जाता है। यह संरचना मिट्टी का कटाव कम करने के साथ ही जमीन में नमी का स्तर बढ़ाती है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।