'बीमारी छिपाई, यह साबित करना बीमा कंपनी की जिम्मेदारी...' क्लेम न देने पर उपभोक्ता आयोग ने सुनाई खरी-खोटी
भोपाल जिला उपभोक्ता आयोग ने बीमा कंपनियों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। आयोग ने कहा कि बीमा कंपनी केवल तभी क्लेम खारिज कर सकती है जब वह साबित कर दे कि उपभोक्ता ने बीमारी से जुड़े तथ्य छिपाए हैं। आयोग ने एक बीमा कंपनी को उपभोक्ता परिवार को पांच लाख रुपये की बीमा राशि ब्याज सहित देने का आदेश दिया क्योंकि कंपनी यह साबित करने में विफल रही कि उपभोक्ता ने जानकारी छिपाई थी।

उपभोक्ता आयोग ने मेडिक्लेम ममाले में सुनाया फैसला (प्रतीकात्मक चित्र)
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल। लोग स्वास्थ्य बीमा इसलिए कराते हैं, ताकि जब कभी भी बीमारी उन्हें घेरे तो इलाज के लिए उन्हें आर्थिक तौर पर परेशान ना होना पड़े। लेकिन कई बार बीमा कंपनियां अलग-अलग बहाने बनाकर क्लेम देने से इन्कार कर देती हैं। ऐसे ही एक मामले में भोपाल जिला उपभोक्ता आयोग ने बीमा उपभोक्ताओं के पक्ष में अहम फैसला सुनाया है, जो कई लोगों के लिए राहत भरा साबित हो सकता है।
आयोग ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि— 'बीमा कंपनी केवल तभी दावा खारिज कर सकती है जब यह साबित हो जाए कि उपभोक्ता ने बीमारी से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य छिपाए हैं। लेकिन इसे साबित करने की जिम्मेदारी बीना कंपनी की ही होगी।'
इसी आधार पर आयोग ने संबंधित बीमा कंपनी को आदेश दिया है कि वह उपभोक्ता परिवार को पांच लाख रुपये की बीमा राशि सात प्रतिशत ब्याज सहित और 15 हजार रुपये मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में दो माह के भीतर अदा करे।
यह है मामला
कोलार रोड मंदाकिनी कालोनी निवासी (स्व.) देवदास सैनी की पत्नी नुरून्निशा और बेटी सीमा सैनी ने 29 जून 2024 को केयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ याचिका लगाई था। शिकायत है कि कंपनी के बीमा एजेंट अंकित सोनी ने साल 2020 में उनके घर आकर मृतक उपभोक्ता को बीमा लेने के लिए राजी किया। उन्हें कहा गया कि यदि कोई तकलीफ हुई तो आपको एक भी रुपया खर्च नहीं करना पड़ेगा। इस आश्वासन के साथ उपभोक्ता का पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा किया गया। अगले साल भी उपभोक्ता ने इसे 15, 450 रुपये का प्रीमियम अदा कर रिन्यू किया।
बीमा अवधि में 23 सितंबर 2021 को तबीयत खराब होने पर देवदास सैनी को भोपाल के निजी अस्पताल में दिखाया तो यहां उन्हें निमोनिया का असर बताया और दवाई देकर भेज दिया गया। नवंबर में तबीयत फिर बिगड़ने पर डाक्टर ने किडनी और यूरिन में इंफेक्शन बढ़ने के कारण भर्ती होने को कहा। यहां भर्ती होने के बाद हालत में सुधार न देखकर मरीज को अन्य अस्पताल में भर्ती किया गया। देवदास सैनी को भर्ती कराने के बाद मेल के द्वारा परिवार ने इसकी सूचना बीमा कंपनी को दी और अस्पताल द्वारा दस्तावेज भी भेजे गए।
इलाज का खर्च बढ़ता गया, लेकिन बीमा कंपनी को बार-बार मेल भेजने के बाद भी कंपनी इसे टालती रही। बीमा का पैसा न मिलने पर परिवार ने उधार लेकर इलाज जारी रखा, लेकिन जनवरी 2022 को उनकी मृत्यु हो गई। परिवार ने आवेदन में जानकारी दी कि उपभोक्ता के इलाज में कुल छह लाख 90 हजार रुपये का व्यय हुआ।
बीमा कंपनी का तर्क
बीमा कंपनी ने क्लेम को खारिज करते हुए तर्क रखा कि उपभोक्ता को पहले से हाई बीपी की बीमारी थी। इसके संबंध में चार वर्ष की वेटिंग पीरियड का एक्सक्लूजन क्लाज बीमा पालिसी में डाला गया है और इसी आधार पर क्लेम खारिज किया गया है। हालांकि, देवदास सैनी की मेडिकल हिस्ट्री में कहीं भी हाई बीपी का जिक्र नहीं था। इलाज के दौरान भी पूर्व में हाई बीपी का जिक्र किसी भी अस्पताल ने नहीं किया था। ऐसे में बीमा कंपनी इस बात को साबित नहीं कर पाई। लिहाजा, आयोग ने कंपनी का तर्क खारिज कर उपभोक्ता परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया।
स्वास्थ्य बीमा या कोई भी बीमा लेते वक्त हर क्लाज को सावधानी से पढ़ना और सारी जानकारी विस्तार में देना बेहद जरूरी है, क्योंकि आपकी जरा सी गलती को आधार बनाकर बीमा कंपनी क्लेम खारिज कर सकती है। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ, जहां मृतक की पत्नी और बेटी के आवेदन के बाद उपभोक्ता आयोग ने उन्हें क्लेम की राशि मय ब्याज और जुर्माने के साथ दिलाई है।
- रणधीर ठाकुर, उपभोक्ता के अधिवक्ता

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