MP में ‘सागर’ से भी गहरी भाजपा की कलह, क्या एक डिनर सच में मिटा देगा भूपेंद्र-गोविंद की दूरी?
सागर में भाजपा के दो दिग्गज नेता गोविंद सिंह राजपूत और भूपेंद्र सिंह, जो लंबे समय से अलग थे, अचानक एक साथ दिखे। प्रदेश अध्यक्ष के हस्तक्षेप के बाद दोनों ने साथ में चाय पी और भोजन किया। हालांकि, कार्यकर्ताओं को इस मेल-मिलाप पर पूरी तरह से भरोसा नहीं है, क्योंकि दोनों नेताओं के बीच पहले काफी मनमुटाव था। देखना यह है कि यह एकता कब तक बनी रहती है।

सागर में मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के निवास पर प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल के साथ भोजन करते मंत्री गाेविंद सिंह राजपूत, पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह, पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव सहित अन्य बड़े नेता।
डिजिटल डेस्क, भोपाल। सागर में भाजपा की राजनीति में बुधवार को एक चमत्कार जैसा दृश्य बना। दो साल से दूर-दूर चल रहे मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह एक ही मेज पर चाय पीते, मुस्कुराते और राजनीतिक भाईचारे का प्रदर्शन करते दिखाई दिए। चमत्कार इसलिए कि स्थानीय कार्यकर्ताओं ने महीनों से इन्हें एक-दूसरे के घर की दिशा में भी मुड़ते नहीं देखा था।
हालांकि इसे मजबूरी भी कह सकते हैं क्योंकि मौका भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल के प्रोटोकॉल का था। उन्होंने बुलाया तो दोनों को जाना पड़ा, साथ बैठना पड़ा। एक-दूसरे के घर जाकर भोजन किया और मौन के साथ सीजफायर को स्वीकृति भी देनी पड़ी।
सागर भाजपा के लिए यह दृश्य किसी ‘साइलेंट फिल्म’ के क्लाइमेक्स जैसा था, मुस्कानें तो बहुत, लेकिन भीतर का संवाद वही पुराना। दो साल की कड़वाहट, सुरखी–जैसीनगर की लड़ाई और मंचों पर हुए कई कटाक्षों के बाद अचानक आई यह ‘मुलायमियत’ देखने योग्य जरूर थी, पर उस पर भरोसा करना फिलहाल कठिन है।
यह तस्वीर जितनी शांत दिखी, उसके पीछे का इतिहास इतना तूफानी है कि कार्यकर्ता भी आधी मुस्कान और आधे संशय में पूछ रहे हैं, ये नजदीकी कितने दिन चलेगी? अगले बयान तक… या अगले विवाद तक?
दो साल की तल्खी- जैसीनगर से सुरखी तक बयान ही बयान
भूपेंद्र और गोविंद के बीच सागर की राजनीति में यह कड़वाहट किसी दिन या हफ्ते में नहीं बनी। जैसीनगर का नाम बदलकर जय शिवनगर करने के विवाद ने तो बस आग में घी डाला। एक तरफ राजपूत का यह कहना कि “सुरखी में दस साल क्या किया?”, तो दूसरी ओर सिंह का दीपावली मिलन वाला बयान। दोनों घटनाओं ने राजनैतिक तापमान इतना बढ़ाया कि उनके बीच ‘दूरी’ अब भूगोल नहीं, मनोदशा बन चुकी है। और समर्थक? वे तो इतने सक्रिय रहे कि सोशल मीडिया पर दो साल से दोनों गुट ऐसे भिड़ते दिखे जैसे सारा प्रदेश चुनावी मोड पर हो।
प्रदेशाध्यक्ष का ‘शांति-आदेश’- और फोटो सेशन ने काम किया
पार्टी के सूत्र बताते हैं कि दौरे से पहले ही खंडेलवाल ने साफ संदेश भेजा था। सागर में खाई नहीं एकता दिखनी चाहिए, नहीं तो संदेश गलत जाएगा। अब यह संदेश कितनी दृढ़ता से दिया गया, यह तो नेता ही जानें, पर नतीजा यह हुआ कि दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के घर वापसी शुरू की, एक ही मेज पर भोजन हुआ, और कार्यकर्ताओं को समझाया गया कि ‘सब ठीक है’। लेकिन सागर के पुराने जानकारों का कहना है कि नेता चाहे जितनी मुस्कानें बांट लें, भरोसा तो व्यवहार में दिखता है, फोटो में नहीं।

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