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    बीना विधायक निर्मला सप्रे की फिर बढ़ी मुश्किलें, सिंघार की याचिका पर MP High Court ने जारी किया नोटिस

    Updated: Fri, 07 Nov 2025 03:23 PM (IST)

    बीना विधायक निर्मला सप्रे की मुश्किलें बढ़ गई हैं, क्योंकि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने उनकी विधायकी रद्द करने के लिए याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष और निर्मला सप्रे को नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी। अदालत ने इस मामले में देरी पर सवाल उठाए हैं।

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    विधायक निर्मला सप्रे व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार।

    डिजिटल डेस्क, भोपाल। मप्र के सागर जिले से बीना सीट से विधायक निर्मला सप्रे की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई हैं। कांग्रेस को छोड़ भाजपा से नाता जोड़ने वालीं हुईं सप्रे के खिलाफ नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार की याचिका पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी।

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    गौरतलब है कि निर्मला सप्रे ने विगत लोकसभा चुनाव के दौरान एक रैली के मंच पर डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में भाजपा का दामन थाम लिया था। इसके बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्रसिंह तोमर के समक्ष उनकी विधायकी निरस्त करने के लिए याचिका दायर की थी। हालांकि, विस अध्यक्ष की ओर से अब तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।

    युगल पीठ ने की सुनवाई

    इस देरी को आधार बनाते हुए उमंग सिंघार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उनकी याचिका पर शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश संजिव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ में सुनवाई हुई। अदालत ने सुनवाई के बाद विधानसभा अध्यक्ष और विधायक निर्मला सप्रे को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है।

    उमंग सिंघार की ओर से अधिवक्ता विभोर खंडेलवाल और जयेश गुरनानी ने पैरवी की, जबकि राज्य की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने पक्ष रखा।

    पूछा तल्ख सवाल

    सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया कि सभापति ने 16 माह बीत जाने के बाद भी दल-बदल याचिका पर निर्णय क्यों नहीं दिया। उन्होंने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने पाडी कौशिक रेड्डी बनाम तेलंगाना राज्य और केशम बनाम मणिपुर राज्य मामलों में स्पष्ट कहा है कि ऐसी याचिकाओं का निपटारा तीन माह के भीतर किया जाना चाहिए।

    सिंघार की ओर से पेश अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि सभापति ने संविधान की दसवीं अनुसूची और अनुच्छेद 191(2) के प्रावधानों का उल्लंघन किया है। उनके अनुसार, यदि कोई विधायक दल बदलता है तो उसकी सदस्यता समाप्त होनी चाहिए, और यदि वह दोबारा पद पर बने रहना चाहता है तो उसे फिर से चुनाव लड़ना आवश्यक है।

    इन तर्कों पर संतुष्ट होकर हाईकोर्ट ने विस अध्यक्ष और निर्मला सप्रे से जवाब तलब किया है। मामले में अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी।