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    Bhopal Iztema: देश के बंटवारे के बाद मुस्लिमों का पलायन रोकने हुआ था भोपाल में पहला इज्तिमा, दिलचस्प है इतिहास

    By Mohd. Abrar KhanEdited By: Ravindra Soni
    Updated: Fri, 14 Nov 2025 04:13 PM (IST)

    भोपाल में आलमी तब्लिगी इज्तिमा का 78वां आयोजन शुरू हो गया है। यह धार्मिक समागम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आयोजन है। इसकी शुरुआत 1948 में मुस्लिमों के पलायन को रोकने के लिए हुई थी। पहले इज्तिमा में 500 से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। मौलाना इमरान खान नदवी ने लोगों को समझाया कि भारत हमारी मातृभूमि है। आज इस इज्तिमा में दुनिया भर से लाखों मुसलमान शामिल होते हैं।

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    डिजिटल डेस्क, भोपाल। राजधानी में आलमी तब्लिगी इज्तिमा के 78वें आयोजन का शुक्रवार सुबह आगाज हो गया। इसी के साथ चार दिनी तकरीरों का सिलसिला भी शुरू हो गया। हज के बाद यह धार्मिक समागम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आयोजन है।प्रदेश में इसकी शुरुआत स्वतंत्रता आंदोलन 1947 के दौरान शुरू हुई। इस दौरान बंटवारे में हो रहे मुस्लिमों के बड़े पलायन को रोकने के लिए तब्लीगी इज्तिमा का पहला आधिकारिक आयोजन वर्ष 1948 में ताजुल मसाजिद में किया गया था।

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    तब और अब के आयोजनों और इसके इतिहास को लेकर नवदुनिया ने ताजुल मसाजिद के अमीर और मप्र में तब्लीगी जमात के संस्थापक मौलाना इमरान खान नदवी के बेटे प्रोफेसर मौलाना मोहम्मद हस्सान खान से बातचीत कर इस ऐतिहासिक आयोजन के बारे जाना। बातचीत का सिलसिला कुछ यूं चला...

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    पहला तब्लीगी इज्तिमा किस पृष्ठभूमि में आयोजित हुआ था?
    - 1947 में आजादी के बाद पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल था। संदेश भेजने का कोई सही साधन नहीं था, इसलिए अफवाहें तेजी से फैलती थीं। लोग कहने लगे कि सब पाकिस्तान चले गए। भोपाल उस वक्त नवाबी रियासत थी और आसपास के इलाकों में मुसलमानों की संख्या काफ़ी थी। यह खबर फैली कि रियासतें खत्म होने वाली हैं और सबको यहां से जाना पड़ेगा। जब यह बात उलेमाओं तक पहुंची तो हमारे वालिद मौलाना मोहम्मद इमरान खान नदवी अजहरी ने मौलाना मिस्कीन साहब के साथ मिलकर तय किया कि लोगों को एकजुट कर उनमें भरोसा जगाया जाए और यह बताया जाए कि देश छोड़ना हल नहीं है। इसी मकसद से 1948 में ताजुल मसाजिद की अधूरी पड़ी इमारत में पहला तब्लीगी इज्तिमा आयोजित किया गया। उस वक्त करीब 500 से ज्यादा लोग इकट्ठा हुए। उस इज्तिमा ने लोगों के दिलों में भरोसा जगाया।

    उस पहले इज्तिमा का नेतृत्व किसने किया और उसका असर क्या रहा?
    - इज्तिमा के मुख्य संयोजक मौलाना इमरान खान नदवी अजहरी थे। वे उस समय ताजुल मसाजिद के प्रमुख उलेमा और तब्लीग की मुहिम को आगे बढ़ाने वाले शख्सियतों में से थे। उन्होंने लोगों को समझाया कि भारत हमारी मातृभूमि है, इसे छोड़ना नहीं।

    ताजुल मसाजिद में मरकज की बुनियाद कैसे रखी गई?
    - जी हां। इज्तिमा के बाद हमारे वालिद मौलाना इमरान साहब ने ताजुल मसाजिद की अधूरी इमारत की तामीर का काम आगे बढ़ाया। उन्होंने मौलाना सैयद सुलेमान रिजवी के साथ मशविरा कर दारुल उलूम की स्थापना की योजना बनाई। 1949 में मस्जिद शकूर खान में अस्थायी एक मरकज स्थापित हुआ और 1950 में यह मरकज ताजुल मसाजिद में स्थानांतरित कर दिया गया। इस मरकज के तीन मुख्य उद्देश्य दीन की तालीम, तब्लीगी जमात का प्रचार, मुसलमानों को पलायन से रोकना था।

    मौलाना इमरान साहब का तब्लीगी आंदोलन से क्या संबंध था?
    - मौलाना इमरान खान नदवी अजहरी लखनऊ के दारुल उलूम नदवतुल उलेमा में हुआ करते थे। वहीं उनकी मुलाकात मौलाना मोहम्मद इलियास कांधालवी, जो संस्थापक तब्लीगी जमात थे, से हुई थी। मौलाना इलियास साहब ने उन्हें मध्य भारत में तब्लीग की केंद्रीय जिम्मेदारी सौंपी थीं।

    तब्लीगी जमात की शुरुआत कब और कैसे हुई थी?
    - तब्लीगी जमात की नींव 1926 में मौलाना इलियास कांधलावी ने हरियाणा के मेवात क्षेत्र में रखी थी। मौलाना इलियास ने गांव-गांव जाकर लोगों को नमाज और इस्लामी जीवन के महत्व का एहसास कराया। भोपाल का इज्तिमा उसी आंदोलन की रूहानी विरासत है।

    आज भोपाल के इज्तिमा का देश-दुनिया में क्या स्थान है?
    - कभी यह इज्तिमा ताजुल मसाजिद के अहाते में कुछ लोगों से शुरू हुआ था। 13 लोगों से यह सिलसिला शुरू हुआ था। आज 78वें आयोजन में दुनिया भर से 13 लाख मुसलमान शामिल हो सकते हैं । यह हमारी मिट्टी की मोहब्बत, दीन की दावत और इंसानियत की एकता की जीवंत मिसाल है।