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    एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने खोजा क्षतिग्रस्त नसों की सर्जरी का नया तरीका, कंधे की चोट से अब हाथ की पकड़ नहीं होगी कमजोर

    Updated: Sun, 27 Apr 2025 06:37 PM (IST)

    हादसों की वजह से कंधे में लगी चोट कभी-कभी बहुत तकलीफ दे जाती है। नसों के क्षतिग्रस्त होने के कारण हाथ की पकड़ कमजोर पड़ जाती है। भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल के डाक्टरों ने सर्जरी की एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे क्षतिग्रस्त नसों का आपरेशन इस प्रकार किया जाएगा जिससे हाथ की ताकत कम नहीं होगी वहीं उंगलियों का मूवमेंट भी लौट आएगा।

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    एम्स भोपाल में कंधे की चोट का इस नए तरीके से होगा इलाज (फोटो सोर्स- जेएनएन)

    जेएनएन, भोपाल। हादसों की वजह से कंधे में लगी चोट कभी-कभी बहुत तकलीफ दे जाती है। नसों के क्षतिग्रस्त होने के कारण हाथ की पकड़ कमजोर पड़ जाती है।

    वहीं हाथ की उंगलियां भी ठीक ढंग से मुड़ती नहीं हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल के डाक्टरों ने सर्जरी की एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे क्षतिग्रस्त नसों का आपरेशन इस प्रकार किया जाएगा जिससे हाथ की ताकत कम नहीं होगी, वहीं उंगलियों का मूवमेंट भी लौट आएगा।

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    इस प्रकार से की जाने वाली सर्जरी को एफडीएस (फ्लेक्सर डिजिटोरम सुपरफिशियलिस) टेंडन तकनीक कहा जा रहा है। इसे एम्स भोपाल में बर्न्स एवं प्लास्टिक सर्जरी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. दीपक कृष्णा ने विकसित किया है।

    एम्स में कई मरीजों पर इसका इस्तेमाल करने के बाद इसके नतीजों को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में जारी किया गया है। इस कान्फ्रेंस में दुनिया भर के बड़े-बड़े डॉक्टर आए थे और उन्होंने इस तकनीक की काफी सराहना की है।

    एम्स भोपाल के डॉ. प्रो. मनाल एम. खान ने बताया कि उनके अस्पताल में कंधे की नसों के साथ-साथ नसों से संबंधित कई अन्य चोटों का भी इस तरीके से इलाज शुरू किया गया है।

    कैसे काम करती है यह तकनीक

    सर्जरी के इस नये तरीके में हाथ की हथेली में मौजूद एफडीएस टेंडन नाम की एक स्वस्थ और कार्यरत मांसपेशी को निकालकर कंधे की क्षतिग्रस्त पेशी की जगह प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। यह पेशी हाथ की कलाई और उंगलियों को मोड़ने में मददगार होती है। क्षतिग्रस्त पेशी की जगह प्रत्यारोपित की गई यह पेशी हाथ को अतिरिक्त ताकत और लचीलापन प्रदान करती है।

    पहले ऐसे होता था इलाज

    • नर्व रिपेयर- यदि नस कट गई हो या फट गई हो, तो सर्जन उसे वापस जोड़ने की कोशिश करते थे। यह प्रक्रिया बहुत नाजुक होती है और सफलता की दर चोट की गंभीरता और समय पर निर्भर करती है।
    • नर्व ग्राफ्टिंग- यदि नस का एक बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया हो, तो शरीर के किसी अन्य हिस्से से (आमतौर पर पैर से) एक स्वस्थ नस का टुकड़ा लेकर क्षतिग्रस्त हिस्से को जोड़ा जाता था। यह एक पुल की तरह काम करता है जिससे नसों के दोबारा बढ़ने की उम्मीद रहती है।
    • नर्व ट्रांसफर- इस प्रक्रिया में एक पास की स्वस्थ नस जो कम महत्वपूर्ण कार्य करती है, उसे क्षतिग्रस्त नस से जोड़ा जाता है। यह नई नसों के विकास और संकेतों के संचरण के लिए एक मार्ग बनाता है।
    • टेंडन ट्रांसफर- एफडीएस तकनीक से पहले भी टेंडन ट्रांसफर किया जाता था, लेकिन इसमें अन्य टेंडन का उपयोग होता था, जैसे कि प्रोनेटर टेरेस, पाल्मारिस लान्गस या फ्लेक्सर कारपी उलनारिस। लेकिन, ये टेंडेन बेहतर परिणाम नहीं दे पाते थे।

    डॉ. दीपक कृष्णा, बर्न्स एंड प्लास्टिक सर्जरी विभाग, एम्स भोपाल ने कहा, "क्षतिग्रस्त नसों की सर्जरी में पहले जो तरीके इस्तेमाल किए जाते थे, उनसे मरीजों को उतना फायदा नहीं होता था। इस नई तकनीक से जिन मरीजों का इलाज हुआ, उनके हाथों में बहुत सुधार देखा गया है और वे जल्दी ठीक भी हो रहे हैं।"

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