कंगाली से जूझ रहे पाक में बदलाव पर चर्चा, राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार से सुधरेगी दशा
पाकिस्तान के राजनीति और सामाजिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि देश को संसदीय प्रणाली को छोड़कर राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार को अपनाना चाहिए।
इस्लामाबाद, जेएनएन। राजनीतिक और आर्थिक अनिश्चितता से जूझ रहे पाकिस्तान के राजनीति और सामाजिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि देश को संसदीय प्रणाली को छोड़कर राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार को अपनाना चाहिए। सत्ताधारी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) के शीर्ष नेताओं और कई राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि देश की खराब हालत का प्रमुख कारण उसकी संसदीय प्रणाली है।
उनका मानना है कि राष्ट्रपति प्रणाली देश की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं को हल करने का माध्यम है, जिसमें सांसदों की भूमिका केवल कानून तक ही सीमित होगी। यह स्पष्ट नहीं है कि पहली बार राष्ट्रपति प्रणाली के समर्थन को लेकर चर्चा कैसे और कहां शुरू हुई लेकिन प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा हाल में अपने मंत्रिमंडल में बड़े पैमाने पर फेरबदल से पहले ही इस चर्चा को गति मिली। इस फेरबदल में देश के वित्त और स्वास्थ्य मंत्री को हटा दिया गया है। हालांकि विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है।
'प्रणाली बदलने से लोकतंत्र को कोई नुकसान नहीं'
पीटीआइ के बड़े नेता और सिंध के गर्वनर इमरान इस्माली का कहना है कि 'राष्ट्रपति प्रणाली की सरकार से लोकतंत्र को कोई हानि नहीं है। यह सिर्फ दूसरी तरह की सरकार होती है। जो देश के लिए ज्यादा मजबूती से काम करेगी। अगर देश के लोग राष्ट्रपति प्रणाली को चाहेंगे तो लोकतंत्र को जारी रखने के लिए इसकी शर्तों के बारे में चर्चा होगी।'
दो-तिहाई बहुमत के साथ संविधान में होगा संशोधन
इस्माइली का यह बयान देश के कानून मंत्री फारूख नसीम द्वारा जनमत संग्रह के माध्यम से राष्ट्रपति प्रणाली को लाने के संकेत दिए जाने के एक दिन बाद आया है। इस बदलाव के लिए दो-तिहाई बहुमत के साथ संविधान में एक संशोधन की आवश्यकता होगी। अगर राष्ट्रपति प्रणाली संवैधानिक तरीके से अपनाया जाए तो यह लोकतांत्रिक भी होगा। अगर देश के लोग राष्ट्रपति प्रणाली चाहेंगे तो सरकार उनकी मांगों को स्वीकार करेगी। नसीम ने कहा कि कानून में इस तरह के बदलाव के लिए संसद के संयुक्त सत्र से प्रधानमंत्री को मंजूरी मिल सकती है।
उत्तर पश्चिम के प्रांत खैबर प्खतूनख्वा में पीटीआइ के गर्वनर शाह फरमान का कहना है कि यदि एक जनमत संग्रह होता है तो वे राष्ट्रपति प्रणाली के पक्ष में अपना वोट डालेंगे। मेरी संस्कृति और संशोधन के अनुसार मुझे लगता है कि संसदीय प्रणाली की तुलना में राष्ट्रपति प्रणाली बेहतर और अधिक कुशल होगी। संसदीय प्रणाली में आपको बहुमत बनाए रखने के लिए बहुत सारे समझौते करने पड़ते हैं और इसके कई नकारात्मक पहलू होते हैं।
जिन्ना के हस्तलिखित नोट से ली प्रेरणा
इस दलील को आगे बढ़ाने के लिए देश के कुछ पूर्व मंत्री और टेक्नोक्रेट 10 जुलाई, 1947 में लिखित मुहम्मद अली जिन्ना के एक हस्तलिखित नोट को उद्धृत करते हैं। उनके अनुसार, हस्तलिखित नोट में जिन्ना ने लिखा था कि 'सरकार के संसदीय रूप ने इंग्लैंड में संतोषजनक काम किया और उसके अलावा कहीं और नहीं। उन्होंने कहा कि सरकार का राष्ट्रपति का रूप (अमेरिकी मॉडल) पाकिस्तान के लिए अधिक अनुकूल है।'
हालांकि, एक प्रसिद्ध पाकिस्तानी वकील और सीनेटर एसएम जफर ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि उनके शोध में जिन्ना का ऐसा कोई भी नोट या बयान नहीं मिला है, जिससे यह संकेत मिले कि उन्होंने पाकिस्तान को सरकार के अमेरिकी मॉडल को अपनाने की इच्छा जताई थी।
विपक्षी दलों ने किया किया विरोध
इस साल की शुरुआत में विपक्षी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने चेतावनी देते हुए कहा था कि कि देश में राष्ट्रपति प्रणाली को शुरू करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। यद्यपि पीपीपी नेतृत्व ने यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा कि कि राष्ट्रपति प्रणाली लाने की कोशिश कौन कर रहा था। उनका परोक्ष रूप से मतलब था कि खान के नेतृत्व वाली सरकार स्थापना के साथ (सेना के एक संदर्भ का हवाला देते हुए) इसको लेकर प्रयास कर रही है।
पूर्व राष्ट्रपति और पीपीपी के सह अध्यक्ष आसिफ अली जरदारी ने कहा कि यहां की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है। पाकिस्तान में दैनिक आधार पर नए प्रयोग किए जा रहे हैं। वे इसे लाने के किसी भी प्रयास को रोकेंगे।' मुख्य विपक्षी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और संसद में सभी धार्मिक दलों ने भी राष्ट्रपति प्रणाली को लेकर कोई भी कदम आगे बढ़ाने को विरोध किया है। हालांकि अपने निर्माण के बाद से पाकिस्तान ने दोनों प्रणालियों की सरकार को लेकर प्रयोग किया है।