पिघल रही ग्रीनलैंड की Ice Sheet , मात्र एक दिन में पिघला 40 लाख ओलंपिक पूल के बराबर बर्फ

महीनों अधिक तापमान रहने के बाद वैज्ञानिकों ने बताया कि गुरुवार को ग्रीनलैंड की आइसशीट में से बड़ी मात्रा में बर्फ पिघला है।

By Monika MinalEdited By: Publish:Sat, 03 Aug 2019 04:51 PM (IST) Updated:Sat, 03 Aug 2019 04:52 PM (IST)
पिघल रही ग्रीनलैंड की Ice Sheet , मात्र एक दिन में पिघला 40 लाख ओलंपिक पूल के बराबर बर्फ
पिघल रही ग्रीनलैंड की Ice Sheet , मात्र एक दिन में पिघला 40 लाख ओलंपिक पूल के बराबर बर्फ

ग्रीनलैंड, एजेंसी। ग्रीनलैंड की आइस शीट से मात्र 24 घंटे में ही गुरुवार को 1100 करोड़ टन बर्फ पिघल कर समुद्र में चला गया जिससे वहां का जलस्‍तर बढ़ने की आशंका है। पिघलने वाली बर्फ की मात्रा 40 लाख ओलंपिक स्‍विमिंग पूल के बराबर है।

जानें ओलंपिक स्‍विमिंग पूल का आकार

ओलंपिक स्‍विमिंग पूल की लंबाई लगभग 164 फीट, चौड़ाई 82 फीट और गहराई 6 फीट होती है। पूल में कुल 660,253.09 गैलन पानी आ सकता है।

आमतौर पर गर्मियों में ग्रीनलैंड की बर्फ पिघलती है लेकिन यह प्रक्रिया मई के अंत में शुरू होती है, इस साल यह मई के शुरुआत में ही आरंभ हो गई। यह जानकारी डेनिस मेट्रोलॉजिकल इंस्टीट्यूट की जलवायु वैज्ञानिक रुथ मोट्राम की ओर से दी गई।

आर्कटिक पहुंच गई गर्म हवाएं

मोट्राम ने बताया केवल जुलाई महीने में 19 हजार 700 करोड़ टन बर्फ की आइस शीट पिघल गई जो 8 करोड़ ओलंपिक स्विमिंग पूल के पानी के बराबर है। इस प्रकार इस साल इसकी संभावित पिघलने की दर 6 से 7 हजार करोड़ टन है। पिछले हफ्ते गर्म हवाएं आर्कटिक तक पहुंच गई थीं। वैज्ञानिकों ने बताया कि 1950 के बाद से ग्रीनलैंड में इस साल सबसे ज्यादा बर्फ की चादर पिघली हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि पूरे विश्व में अभी तक दर्ज आंकड़ों में जुलाई महीना सबसे ज्यादा गर्म रहा।

जलवायु परिवर्तन से पिघल रहे ग्‍लेशियर

जलवायु परिवर्तन वर्तमान में एक बड़ी वैश्विक समस्या है और इसी का परिणाम है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिडा (यूएसएफ) के प्रोफेसर टिम डिक्सन के मुताबिक, ग्लेशियरों को पिघलने से रोकने के लिए एक मॉडल तैयार करना बड़ी चुनौती है। एक चीज जिससे हम अंजान हैं, वो यह है कि भविष्य में समुद्र का जलस्तर कितना बढ़ेगा और ग्रीनलैंड की बर्फ कितनी तेजी से पिघलेगी।

इन चीजों का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने 2016 में एक प्रयोग शुरू किया। उन्होंने उस वर्ष की गर्मियों में एक नया राडार सिस्टम लगाया, ताकि ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझा जा सके। शोधकर्ताओं के मुताबिक, उन्होंने अपने इस अध्ययन में ऐसी बहुत सी जानकारियां एकत्र कीं, जिनके आधार पर ग्लेशियरों के पिघलने के कारणों और उनकी दर का पता चल सका। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उनके इस अध्ययन की मदद से भविष्य में ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर को पिघलने से रोकने में मदद मिल सकती है।

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