'अमेरिका फर्स्ट' पॉलिसी से शुरू हुआ चीन और रूस के बीच 'ट्रेड वार', हैरत में दुनिया

यदि शुरुआती दौर में ही चीन-अमेरिका का यह व्यापार युद्ध थम गया तो विश्व अर्थव्यवस्था के लिए हितकर होगा। भारतीय लोकतंत्र में विभिन्न सरकारों ने सचेतता का सिद्धांत तभी अपनाया है जब सड़कों पर प्रदर्शन हुए हैं।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Thu, 12 Apr 2018 11:31 AM (IST) Updated:Sat, 14 Apr 2018 10:23 AM (IST)
'अमेरिका फर्स्ट' पॉलिसी से शुरू हुआ चीन और रूस के बीच 'ट्रेड वार', हैरत में दुनिया
'अमेरिका फर्स्ट' पॉलिसी से शुरू हुआ चीन और रूस के बीच 'ट्रेड वार', हैरत में दुनिया

नई दिल्ली [प्रो. लल्लन प्रसाद]। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव के दौरान ‘अमेरिका पहले’ की नीति की घोषणा की थी जिसे वे कार्यान्वित करने में लगे हुए हैं। पहले वीजा पर प्रतिबंध और अब चीन की अमेरिकी बाजार में घुसपैठ कम करने की नीतिया अमेरिकी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देंगे इसमें संदेह नहीं, किंतु इनके दूरगामी प्रभाव न केवल इन दोनों देशों, अपितु पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर पड़ेंगे। गौरतलब है कि चीन अमेरिका का सबसे बड़ा व्यावसायिक साङोदार है। पिछले वर्ष अमेरिका ने चीन से 500 अरब डॉलर से अधिक का आयात किया था, किंतु चीन ने कुल 130 अरब डॉलर का आयात अमेरिका से किया था। चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है। वर्षो से यही स्थिति बनी हुई है। चीनी इस्पात और एल्युमिनियम का अमेरिका सबसे बड़ा खरीदार है। अमेरिकी कंपनियों का इन वस्तुओं का उत्पादन लागत चीन से अधिक है जिससे चीनी स्पर्धा में वे टिक नहीं पाते हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप ने जब पिछले महीने चीनी स्टील और एल्युमीनियम पर क्रमश: 25 प्रतिशत एवं 10 प्रतिशत टैरिफ यानी प्रवेश शुल्क बढ़ाने की घोषणा की तो चीन तिलमिला उठा और उसने जवाबी कार्रवाई की धमकी दी। विश्व में इसे दोनों देशों के बीच टेड वार की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि अमेरिका पूर्ववर्ती शासकों और अधिकारियों की गलत नीतियों के कारण टेड वार पहले ही हार चुका है। वास्तव में पिछले एक वर्ष से ट्रंप प्रशासन चीनी आयात पर प्रतिबंध लगाने के उपायों पर सोच रहा था। चीन के अनुचित व्यापार के तरीकों और बौद्धिक संपदा की चोरी की जांच के लिए उन्होंने एक समिति बनाई थी जिसके नतीजों के आधार पर फरवरी 2018 में अमेरिकी वाणिज्य मंत्रलय ने चीनी स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ बढ़ाने की सिफारिश की।

ट्रंप की घोषणा के जवाब में चीन ने अप्रैल के पहले सप्ताह में 120 अमेरिकी पदार्थो पर शुल्क बढ़ाने का निर्णय किया। उसके तुरंत बाद अमेरिका ने 50 अरब डॉलर के चीनी उत्पादों पर 25 प्रतिशत टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की जिससे अमेरिका को आयात होने वाली 1300 वस्तुएं बढ़ी टैरिफ की गिरफ्त में आएंगी। उसके जवाब में चीन ने 106 अमेरिकी वस्तुओं, जो चीन उससे आयात करता है, पर 25 प्रतिशत टैरिफ बढ़ाने का निर्णय लिया।1चीन और अमेरिका, दोनों देशों ने एक दूसरे से आयात पर जो टैरिफ बढ़ाए हैं उनके कार्यान्वयन की तिथि अभी तक नहीं दी है जो इस बात का संकेत देता है कि आपस में सुलह की गुंजाइश अभी शेष है। हालांकि बाजार में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।

यह व्यापार यु़द्ध चलेगा या बंदर घुड़की ही रह जाएगा? राष्ट्रपति ट्रंप की उत्तर कोरिया नीति से इस संभावना को बल मिलता है कि वे शुरू में तीखे प्रहार करते हैं फिर नरम पड़ने लग जाते हैं। चीन संभवत: इस स्थिति से परिचित होने के कारण उनकी बातों का प्रतिवाद नपे तुले शब्दों में कर रहा है। स्थिति को अपनी ओर से आग देने से बच रहा है, क्योंकि यदि व्यापार युद्ध हुआ तो उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। अमेरिका में भी उद्योगपति और बड़ी कंपनियां आशंकित हैं, क्योंकि उन्होंने बड़े पैमाने पर चीन में निवेश किया है। जो अमेरिकी उद्योग चीनी स्टील व एल्युमीनियम आयात करते हैं उन्हें डर है कि उनकी उत्पाद लागत बढ़ जाएगी। शुरू में ही चीन अमेरिका का यह व्यापार युद्ध थम गया तो विश्व अर्थव्यवस्था के लिए हितकर होगा, किंतु यदि यह आगे बढ़ा तो दुनिया के बहुत सारे देश इसकी चपेट में आ जाएंगे, विशेषकर बड़े औद्योगिक देश जापान, कोरिया, जर्मनी और यूरोपीय देश जिनका दोनों देशों के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार है।

चीन जिन हाईटेक वस्तुओं का निर्माण करता है उनमें उसका अपना भाग बहुत कम है। अधिकांश कच्चा माल, प्रोसेस्ड वस्तुएं, मशीनरी और तकनीक विदेशी कंपनियां लाती हैं जो दुनिया के बहुत से देशों से खरीदी जाती हैं। वे सभी देश जो इन कंपनियों को माल सप्लाई करते हैं इस टेड वार से प्रभावित होंगे। सप्लाई चेन से देश एक-दूसरे से ऐसे जुड़े हैं कि व्यापार नीति में कहीं भी परिवर्तन होगा तो उनके ऊपर असर पड़ेगा। 1930 की विश्वव्यापी मंदी की शुरुआत अमेरिका से ही प्रारंभ हुई थी। अमेरिकी टैरिफ एक्ट 1930 के अंतर्गत जब वहां सरकार ने विदेशी आयात पर टैरिफ बढ़ाने शुरू किए और अपने उद्योगों के संरक्षण की नीति तेजी से लागू की तो विश्व के कई देश बुरी तरह प्रभावित हुए। सभी देशों ने वैसी ही नीति अपनानी शुरू की। फलस्वरूप विश्व बाजार में भयानक मंदी आई। आखिरकार सरकारों ने यह अनुभव किया कि व्यापार युद्ध सबके लिए घातक है। यह टैरिफ वार विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की नीतियों की अवहेलना है।

चीन और अमेरिका के संबंध यदि बिगड़े तो भारत को अपनी व्यापार रणनीति पर दोबारा विचार करना होगा। दोनों ही देशों के साथ भारत एक बड़ा व्यापारिक साझेदारी है। चीन और भारत के बीच 70 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार है। चीन भारत को 60 अरब डॉलर के लगभग निर्यात करता है और भारत चीन को मात्र 10 अरब डॉलर के आसपास। चीन के प्रति भारत की व्यापार नीति जरूरत से ज्यादा उदार रही है। इसका परिणाम है चीन के साथ भारत का बढ़ता घाटा।1भारत अमेरिका का 9वां बड़ा व्यापारिक साङोदार है। दोनों देशों के बीच साल 2016 में 114 अरब डॉलर का व्यापार हुआ है जो चीन से दो गुना है। भारत ने अमेरिका से 67 अरब डॉलर का माल आयात किया बाकी व्यापार सेवाओं का है। भारत का व्यापार घाटा 30 अरब डॉलर का है जो चीन से बहुत कम है। भारत और अमेरिका के संबंधों में पिछले कुछ वर्षो में तेजी से सुधार हुए हैं। जाहिर है अमेरिका के साथ व्यापार बढ़ाने की बड़ी संभावना है। कुल मिलाकर व्यापार युद्ध की स्थिति में भारत अमेरिका के व्यापारिक संबंधों में गति आ सकती है जो दोनों देशों के हित में होगा।

[बिजनेस एवं इकोनोमिक्स विभाग के पूर्व प्रमुख व डीन, डीयू]

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